औरंगाबाद के इस गांव में एक भी शख्स नहीं है साक्षर
औरंगाबाद के मदपुर क्षेत्र का लंगुराही गांव बिहार का एक मात्र ऐसा गांव है जहां या तो नक्सलियों की हुकुमत चलती है या फिर पुलिस की.
फाइल फोटो |
इस गांव में एक भी ऐसा शख्स नहीं है जिसे साक्षर कहा जा सके. कहने का तात्पर्य यह है कि गांव की एक महिला ही है जो मात्र कक्षा छः तक पढ़ी है जिसे पढ़ने का मौका मिला अपने मायके में.
पढ़नेवालों में 10 वर्षीय एक बालक भी है जो गांव का होते हुये भी सिर्फ इसलिए पढ़ पाया क्योंकि वह अपने ननिहाल में रहकर पढ़ता है. गांव में सरकार की चलाई जा रही कोई भी योजनायें नजर नहीं आती. यहां के ग्रामीण जिला प्रशासन के न तो किसी अधिकारी को जानते हैं और न ही पहचानते हैं.
यदि गांव में कोई आता भी है तो या तो वह पुलिस या फिर नक्सली ही होते हैं. इस गांव न तो विद्यालय है और न ही पीने का पानी. सरकार के सारे दावे इस गांव में फेल नजर आ रहे हैं.
गौरतलब है कि मदनपुर प्रखंड से 13 किलोमीटर दुर कई पहाड़ियों के बीच बसा अतिनक्सल प्रभावित लंगुराही गांव आज भी बुनियादी सुविधा के लिये तरस रहा है.
सीआरपीएफ और जिला पुलिस के द्वारा चलाये जा रहे सामुदायिक पुलिसिंग का लाभ इन्हें तो मिलता ही है परन्तु वो भी उंट के मुंह में जीरा के समान है. ग्रामीण बताते हैं कि आज तक इनके गांव में प्रशासन का एक भी अदना कर्मचारी नहीं आया. ऐसे में स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं से वंचित इस गांव के लोगों के जीवन में व्याप्त कष्ट को आसानी से समझा जा सकता है.
ग्रामीण बताते हैं कि आजादी के बाद भी ऐसा लगता है कि हम आजाद नहीं है. क्योंकि जीने के लिये जिन साधनों का होना अनिवार्य होता है वो आजतक इन्हें नसीब नहीं हो सका है.
सबसे बड़ी परेशानी उस वक्त हो जाती है जब नक्सली आते हैं और जबरन इनसे खाने की मांग करते हैं. यहां के बच्चे स्कुल न होने के कारण पढ़ाई से वंचित हैं. हालाकि ग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुये औरंगाबाद पुलिस कप्तान ने इनकी दशा को सुधारने की पहल तो की है और जिला पदाधिकारी को यहां की समस्याओं को पत्र के माध्यम से अवगत कराया है.
ग्रामीणों की समस्यायें कब दुर होगी वो अभी भविष्य के गर्त में है. ऐसे में कहा जा सकता है कि तख्त बदले ताज बदले. बदल रहे हैं हाकिम और हुक्काम भी. अगर नहीं कुछ बदला है तो वह है लंगुराही गांव की तकदीर.
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