भाजपा की राह इस बार आसान नहीं

Last Updated 31 Aug 2015 12:27:02 PM IST

ऐतिहासिक गांधी मैदान में हुई स्वाभिमान रैली में जुटी भीड़ के तेवर ने यह साफ कर दिया कि इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को चौतरफा हमले झेलने होंगे.


अमित शाह (फाइल)

भाजपा गठबंधन का संघर्ष कांग्रेस के साथ समाजवाद के तमाम उन चिन्तकों से होने जा रहा है जो विचारधारा में समानता रखते हुए भी अपनी-अपनी कार्यशैली के कारण अलग-अलग दल बना कर राजनीतिक राह तलाशते रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अब तक के कार्यकाल के दौरान बिहार पहला ऐसा राज्य है जहां विधानसभा के चुनाव में भाजपा गठबंधन को चुनौती देने के लिए चार दलों की ताकतें एकजुट हो गई हैं.

संभव है महगठबंधन की संख्या बढ़ कर पांच भी हो सकती है. अगर समय रहते राष्ट्ऱीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा) भी सेक्युलर गठबंधन के नाम पर वापस आ जाये, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं.

नमो की टीम ने अब तक तीन राज्यों झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में जो संघर्ष किया उसमें महागठबंधन की शक्ल में कोई राजनीतिक विकल्प सामने नहीं था.

हरियाणा विधानसभा चुनाव में चौटाला के साथ जदयू ने जरूर गठबंधन किया, मगर यह कई कारणों से मजबूत नहीं था. वहीं झारखंड में राजद, कांग्रेस और झामुमो का एक मजबूत गठबंधन बन सकता था, पर वहां के नेताओं ने यह होने नहीं दिया, लिहाजा वहां इसका लाभ भाजपा को मिला और वह सरकार बनाने में कामयाब हुई.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को कांग्रेस या कि राकांपा की अलग-अलग रणनीति का सामना करना पड़ा. यही वजह भी रही कि गठबंधन में शामिल शिवसेना से किनारा करने की भाजपा हिम्मत जुटा सकी.

गांधी मैदान में हुई स्वाभिमान रैली के बाद भाजपा का संघर्ष अब केवल महागठबंधन के नेताओं के तथाकथित सेक्युलरवाद और विकास के मुद्दों पर सीमित नहीं रहा.



रैली में शामिल कई दिग्गज नेताओं ने अपने संबोधनों में लड़ाई को विकास के मुद्दों से खींचकर जातिवाद के संघर्ष के मुहाने पर ला खड़ा किया है. खास कर विकास के पैरोकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जंगलराज-2 को मंडल राज-2 करार देते हुए विधानसभा की जंग को जातीय घेरे की तरफ ले जाते दिखे.

अपने पूरे भाषण का सबसे ज्यादा समय उन्होंने लालू प्रसाद के चेहरे को चमकाने में दिया. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने तो अपने भाषण में यदुवंशी, उसकी एकजुटता और साथ में दलितों, पिछड़ों और अतिपिछड़ों की ताकत का इजहार करते दिखे.

लालू ने तो यहां तक कह डाला कि दो पिछड़ों का बेटा मिल गया, अब भाजपा की खैर नहीं. मगर इस जातीय अवधारणा के प्लेटफार्म पर विकास का मुद्दा गौण तो दिखा ही, व्यक्तिगत हमला भी महागठबंधन के नेताओं का मूल अस्त्र रहा. कांग्रेस व राजद के कार्यकाल में ‘‘पिछड़ा रहा बिहार’ जैसा जुमले जदयू के तमाम नेताओं के भाषण में गायब रहा जो आज से महज तीन साल पहले उनके हमले का मूल अस्त्र हुआ करता था.
 

चंदन


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