बिहार में एससी और एसटी को प्रोन्नति में कोटा नहीं

Last Updated 31 Jul 2015 06:59:21 AM IST

सरकारी सेवा में कार्यरत अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा.


पटना उच्च न्यायालय

पटना उच्च न्यायालय ने यह मांग करनेवाली राज्य सरकार की अपील बृहस्पतिवार को खारिज कर दी. 

मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी व न्यायमूर्ति सुधीर सिंह की पीठ ने कहा कि एकल पीठ ने शीर्ष अदालत के एन नागराजन वाले फैसले को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय सुनाया था. उसने शीर्ष अदालत के फैसले को सभी तरह से ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय दिया था. इस तरह से एकल पीठ के फैसले में कोई त्रुटि नहीं है. इसे बरकरार रखा जाता है. पीठ ने इसके साथ ही राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.  अदालत ने कहा कि एससी-एसटी वालों को नियुक्ति के समय ही 17 फीसद आरक्षण का लाभ दे दिया जाता है. इसलिए प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देना सही नहीं है. 

एकल पीठ ने 4 मई के अपने फैसले में राज्य सरकार की 21 अगस्त, 2012 की उस अधिसूचना को निरस्त कर दी थी जिसमें एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने की बात कही गयी थी. न्यायालय ने इस मामले में सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश 22 जुलाई को सुरक्षित रख लिया था. याचिकाकर्ता सुशील कुमार एवं अन्य की तरफ से वरीय अधिवक्ता विनोद कंठ व अधिवक्ता विध्यांचल सिंह ने पक्ष रखते हुए कथा था कि एकल पीठ ने शीर्ष अदालत के फैसले को आधार बनाकर अपना फैसला दिया है.

उसके फैसले में कोई त्रुटि नहीं है. एकल पीठ का फैसला सही है. उसे निरस्त नहीं किया जाये. आरक्षण का समर्थन करने वाले अनुसूचित जाति एवं जन जाति संगठन के अखिल भारतीय परिषद की तरफ से अधिवक्ता दीनू कुमार ने भी पक्ष रखा था. इस मामले में सरकार की अपील पर सुनवाई 21 मई से शुरू हुई थी.

राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति व जनजाति को प्रोन्नति में आरक्षण न देने के एकल पीठ के आदेश के खिलाफ 18 मई को अपील दाखिल की थी और पीठ के आदेश को निरस्त करने की मांग की थी. एकल पीठ ने 4 मई को सरकार की 21 अगस्त, 2012 की उस अधिसूचना को निरस्त कर दिया था जिसमें अनुसूचित जाति व जनजाति को प्रोन्नति में आरक्षण देने की बात कही गयी थी.

अपील में कहा गया है कि सरकार ने शीर्ष अदालत द्वारा तय मानदंड के अनुरूप आंकड़े दिये हैं, वे सही हैं. शीर्ष अदालत ने पिछड़ापन व किसी नौकरी में प्रतिनिधित्व को आधार बनाया था. अनुसूचित जाति व जन जाति पिछड़े हैं और उनकी नौकरी में संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं है. एकल पीठ ने शीर्ष अदालत के विपरीत फैसला दिया है. एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर सरकार की अधिसूचना को सही ठहराया जाये.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment