न्यायिक नियुक्तियों में उच्चतम मानकों का पालन किया जाना चाहिए: राष्ट्रपति
स्वतंत्र न्यायपालिका को लोकतंत्र की आाधारशिला करार देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि न्यायाधीशों के चयन और उनकी नियुक्ति प्रक्रिया में उच्चतम मानकों का पालन किया जाना चाहिए.
पटना हाई कोर्ट के शताब्दी समारोह का उद्घाटन करते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी |
पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘न्यायाधीशों के चयन एवं उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया में उच्चतम मानकों का पालन किया जाना चाहिए. हमें इस मामले में थोड़ी जल्दबाजी दिखानी चाहिए लेकिन गुणवत्ता पर कोई समझौता किए बगैर.’’
प्रणब ने ऐसे समय में यह टिप्पणी की है जब राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की स्थापना के मुद्दे पर विवाद हुआ है. आयोग के गठन के बाद अब तक न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कोलेजियम प्रणाली का अंत हो जाएगा.
एनजेएसी कानून के लागू होने से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका अहम हो जाएगी.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में लोकप्रिय कदमों की घोषणा की तीव्र इच्छा हो सकती है लेकिन इससे व्यक्तियों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसे में न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों में दखल को रोके.
पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘दबाव और तनाव’’ के मामले आएंगे, लेकिन किसी भी स्थिति में न्यायपालिका की आजादी को बचाए रखना है.
प्रणब ने देश की अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मुकदमों और न्यायाधीशों की कमी समस्या का जिक्र किया और यह भी कहा कि इससे फैसलों की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि बिहार की अलग-अलग अदालतों में 20 लाख से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं जिनमें 1.25 लाख मामले तो सिर्फ पटना उच्च न्यायालय में लंबित हैं.
राष्ट्रपति ने त्वरित न्याय देने के लिए नई प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल अदालतों में करने पर जोर दिया.
उन्होंने अधीनस्थ न्यायपालिका में आधारभूत संरचना में सुधार के लिए ज्यादा संसाधन मुहैया कराने की जरूरत पर भी जोर दिया.
राष्ट्रपति ने एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट और उसकी हेडलाइन का जिक्र किया जिसमें न्यायपालिका की स्वायत्ता पर जोर दिया गया था.
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में बताया गया था कि पटना उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश सर एडर्वड मेनार्ड डेसचैंप्स चेमियर ने बिहार के तत्कालीन उप-राज्यपाल सर एडवर्ड गेइट एवं कार्यपालिका के अन्य पदाधिकारियों को एक मार्च 1916 को हुए न्यायिक सत्र के उद्घाटन का न्योता भेजने से इनकार कर दिया था. भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग तक को इससे दूर रखा गया था.
राष्ट्रपति ने पटना उच्च न्यायालय के गौरवशाली इतिहास का भी जिक्र किया जहां देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और भारत की संविधान सभा के पहले अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा ने वकालत की थी.
उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश- न्यायमूर्ति भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा, न्यायमूर्ति ललित मोहन शर्मा और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा- तरक्की पाकर भारत के मुख्य न्यायाधीश पद संभाल चुके हैं.
इस मौके पर बिहार के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, भारत के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय कानून मंत्री डी वी सदानंद गौड़ा, उनके कैबिनेट सहयोगी रविशंकर प्रसाद और पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी भी मौजूद थे.
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