राज मिस्त्री है यह महिला...
दरंभगा की सुनीता मर्दों की बराबरी कर भवन निर्माण क्षेत्र में बतौर राज मिस्त्री काम कर तीन बच्चों की परवरिश कर रही है.
सुनीता (फाइल) |
भारत के 66वें गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और दुनिया ने भारत की सैन्य शक्ति में \'नारी शक्ति\' को देखा, वहीं बिहार के दरभंगा जिले के ग्रामीण क्षेत्र में नारी शक्ति के रूप में पहचान बना चुकी सुनीता तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद नारी शक्ति का परिचय देते हुए महिलाओं को राह दिखा रही हैं.
अपने बच्चों का पालन पोषण करने के लिए 33 वर्षीया सुनीता न केवल पुरुष वर्चस्व वाले भवन निर्माण क्षेत्र में बतौर राज मिस्त्री काम करती हैं, बल्कि दो बच्चे की मां होने के बावजूद दरभंगा रेलवे स्टेशन पर मिली एक लावारिस बच्ची का भी पिछले पांच वर्षों से लालन-पालन कर रही हैं. सुनीता को उसके पति ने छोड़ दिया है.
बिहार के सीतामढ़ी जिले के पकटोला गांव में देवनारायण मुखिया के घर जन्मी सुनीता का विवाह मात्र 13 वर्ष की आयु में हो गया था.
विवाह के बाद सुनीता के दो बच्चे भी हुए, परंतु विवाह के 12 वर्ष बाद उसके जीवन में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा.
सुनीता के पति और कुम्हरा विशुनपुर निवासी शिवजी दिल्ली रोजगार की तलाश में गया.
दो-चार महीने तक तो दोनों की बात हुई, परंतु उसके बाद शिवजी ने सुनीता से नाता तोड़ लिया. अपने ही पति द्वारा मुंह मोड़ लेने के बाद सुनीता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, परंतु वह विचलित नहीं हुई.
वर्ष 2004 में अपने दो छोटे बच्चों और खुद का पेट भरने के लिए रोजी-रोजगार की तलाश में दरभंगा शहर पहुंच गई और यहां आकर उसने मजदूरी करना शुरू किया.
मजदूरी करने के दौरान ही उसे महसूस हुआ कि इसमें कम पैसे मिलते हैं, जबकि एक राज मिस्त्री को ज्यादा मजदूरी मिलती है, इसके बाद उसने राज मिस्त्री बनने को ठान ली.
शुरुआत में इस क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व होने के कारण उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, परंतु अपने बुलंद इरादे और मंजिल पाने की चाह के कारण सुनीता विचलित नहीं हुई.
आज सुनीता शहर के छपकी, मिर्जापुर, रहमगंज, लक्ष्मीसागर सहित विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे निर्माण कार्यो में राजमिस्त्री का काम कर रही हैं.
सुनीता की दरभंगा में \'नारी शक्ति\' के रूप में पहचान होने लगी है. आज कई महिला मजदूर उनके साथ काम कर राज मिस्त्री का काम सीख रही हैं.
सुनीता बताती है कि उसके बच्चे बड़े हो रहे हैं, जिस कारण उनके पढ़ाई का खर्च भी बढ़ रहा है. सुनीता की पुत्री नौवीं कक्षा, जबकि पुत्र आठवीं कक्षा का विद्यार्थी है.
सुनीता कहती हैं, "मैं अपनी पुत्री को खूब पढ़ाना चाहती हूं, ताकि जिंदगी में अगर उसे मेरे जैसी स्थिति से गुजरना पड़े तो उसे परेशानी का सामना न करना पड़े."
सुनीता एक अनाथ बच्ची का भी लालन-पालन कर रही है. सुनीता बताती है कि दरभंगा रेलवे स्टेशन के पास पांच वर्ष पूर्व एक अनाथ बच्ची लावारिस हालत में मिली थी.
स्थानीय लोग लड़की होने के कारण उसे गोद लेना नहीं चाह रहे थे. सुनीता ने अपनी ममता और मानवीय संवेदना का परिचय देते हुए उस बच्ची को अपने घर ले आई और उसका पालन-पोषण करना शुरू कर दिया.
सुनीता बताती है कि आज यह लड़की भी मेरी बेटी की तरह हो गई है. सुनीता के पास न तो अपना घर है और न ही उसे सरकार द्वारा किसी योजना का लाभ मिल रहा है, परंतु सुनीता के पास अपने बच्चों को कुछ बनाने की चाह उसे हर दिन नई राह दिखाती है.
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