पटना निगमायुक्त के निलंबन पर रोक
पटना उच्च न्यायालय ने पटना नगर निगम के आयुक्त कुलदीप नारायण के निलंबन पर सोमवार को रोक लगा दी.
पटना हाईकोर्ट |
हाईकोर्ट का यह आदेश सूबे की मांझी सरकार के लिए झटका माना जा रहा है.
न्यायाधीश वीएन सिन्हा और न्यायाधीश प्रभात कुमार झा की खंडपीठ ने नरेन्द्र मिश्र की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद नारायण को निलंबित करने के बिहार सरकार के आदेश पर रोक लगा दी. अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह लगता है कि नारायण का निलंबन गलत है और यह पक्षपातपूर्ण कार्रवाई प्रतीत होती है. न्यायाधीशों ने कहा कि नारायण उच्च न्यायालय के आदेश से अवैध निर्माणों से संबंधित मामलों को देख रहे थे जबकि सफाई और अन्य काम को देखने का जिम्मा दो अतिरिक्त आयुक्त कपिल अशोक तथा सीता चौधरी को दिया गया था. ऐसे में सफाई में गड़बड़ी को लेकर नारायण को निलंबित करने का क्या औचित्य है.
क्या सरकार ने दोनों अतिरिक्त आयुक्तों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई की है. अदालत ने कहा कि निगमायुक्त ने गत वर्ष 13 अप्रैल को कार्यभार संभाला था. इससे पहले के किये कायरे को उन्हें ही दोषी क्यों ठहराया जायेगा. सफाई की जिम्मेवारी अतिरिक्त आयुक्त कपिल अशोक के जिम्मे है. उन्हें क्यों नहीं निलंबित किया गया. सरकार ने फॉगिंग मशीन नहीं खरीदने, अवैध निर्माण होने, संपतचक में कूड़ा निपटारे का मशीन अभी तक नहीं लगाने आदि के आधार पर निलंबित किया है. क्या ये सब निगमायुक्त नारायण के आने के बाद ही हुआ है. उन्होंने सरकार से इससे संबंधित पूरी फाइल मंगलवार को अदालत में पेश करने का आदेश दिया.
खंडपीठ ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय ने आठ जुलाई 2013 को नारायण के स्थानांतरण के आदेश पर रोक लगा दी थी और इसपर सर्वोच्च न्यायालय ने भी मुहर लगा दी थी. नारायण इसके बाद से उच्च न्यायालय के आदेश से काम कर रहे थे. राज्य सरकार के आदेश से ऐसा लगता है कि उसने अदालत के आदेश की अवमानना की है. उन्होंने कहा कि यह मामला काफी गंभीर है इसलिए इसपर मंगलवार को सुनवाई होगी. न्यायालय ने निगमायुक्त के खिलाफ कई वकीलों के अशोभनीय टिप्पणी करने पर भी फटकार लगायी और कहा कि वे इस केस में किस हैसियत से बोल रहे हैं. सभी वकील अदालत के अधिकारी हैं पर बोलने के लिए याचिकाकर्ता व विपक्ष के वकील को ही अनुमति दी जाती है.
पीठ ने कहा कि सरकार ने पक्षपात करते हुए निगमायुक्त को निलंबित किया है जबकि वे हमारे आयुक्त हैं. उनके स्थानांतरण पर कोर्ट ने रोक लगायी है. उनके खिलाफ ठोस आधार था तो सरकार ने निलंबित करने से पहले कोर्ट से अनुमति क्यों नहीं ली. कोर्ट नदी की मोड़ दी गयी धारा को अपने रास्ते लाने का काम कर रहा है. वह निगमायुक्त ने निलंबन के मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई करेगा. तबतक निगमायुक्त के निलंबन संबंधी 12 दिसम्बर के प्रस्ताव पर रोक लगाती है. पीठ ने इसके साथ ही आयुक्त के निलंबन पर रोक लगा दी और सुनवाई 16 दिसम्बर के लिए स्थगित कर दी. इससे पूर्व नारायण के वकील एचएस हिमकर ने कहा कि पटना में पिछले चाल साल में दस नगर निगम आयुक्त को बदला गया है.
उन्होंने कहा कि सरकार की यह कार्रवाई पक्षपातपूर्ण तथा बिल्डरों के दबाव में लिया गया प्रतीत होता है. हिमकर ने कहा कि नारायण पूरी कर्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी से मुकदमों का निपटारा कर रहे हैं. 196 मामले में आदेश पारित कर चुके हैं और जल्द ही कई मामले में आदेश पारित करने वाले हैं. इस स्थिति में उन्हें निलंबित कर दिया गया. उन्होंने कहा कि कई वर्ष पहले मुखर्जी वाले मामले में भी अवैध निर्माण हटाने को कहा गया था. उस समय जब अदालती आदेश का पालन किया जाने लगा तो तुरंत-तुरंत निगमायुक्त बदल दिया गया जिसके कारण आज तक अवैध निर्माण पर रोक नहीं लगी.
उन्होंने न्यायालय को कुछ वर्ष के लगभग 10 निगमायुक्तों की सूची पेश की जिन्हें अवैध निर्माण पर रोक लगाने की कवायद करने के कारण दो महीने से लेकर एक साल के भीतर स्थानांतरित कर दिया गया था. प्रधान अपर महाधिवक्ता ललित किशोर ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि सरकार ने उचित कार्रवाई की है. नगर निगम सफाई और अन्य कायरे में शिथिलता बरत रहा था जिसके कारण सरकार ने यह कदम उठाया है. कपिल अशोक एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं और वे कुलदीप नारायण से बेहतर हैं.
उन्होंने कहा कि निलंबन आदेश को जनहित याचिका पर खंडपीठ नहीं सुन सकता है. प्रधान अपर महाधिवक्ता ने कहा कि कपिल अशोक एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं और वे कुलदीप नारायण से बेहतर हैं. वे विवादित बहुमंजिली इमारतों से संबंधित निगरानी मुकदमें तेजी से निपटायेंगे. न्यायालय ने कहा कि नारायण ने अब तक लगभग 196 मुकदमें का निपटारा किया है. अभी वे बहुत से मुकदमों का निपटारा करने वाले हैं. धीमी गति से मुकदमों का निपटारा करने के कारण न्यायालय भी दु:खी है. फिर भी कोर्ट ने उनके स्थानांतरण पर रोक लगा रखी है. इस स्थिति में आपने उन्हें कोर्ट से पूछे बगैर निलंबित कर दिया. यह पक्षपातपूर्ण रवैया दिखता है.
पीठ ने सरकार की तरफ से पेश प्रधान अपर महाधिवक्ता ललित किशोर से कहा कि वे शहरी विकास विभाग के उस फाइल को पेश करें जिसमें निगमायुक्त के निलंबन संबंधी टिप्पणी की गयी है. उसने न्यायालय के ही एक अन्य पीठ के उस आदेश को पेश करने को कहा जिसमें निलंबन के मामले की सुनवाई जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान नहीं की जा सकती है. प्रधान अपर महाधिवक्ता ने न्यायालय ने कहा कि कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने संपतचक मामले में निगमायुक्त के निलंबन पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है.
पीठ ने कहा कि निलंबन के मामले की सुनवाई जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान नहीं की जा सकती. उस पीठ को निलंबन आदेश की प्रति सौंप दी गयी है. उस पीठ को निलंबन के सभी आधार बता दिये गये हैं. न्यायालय ने कहा कि वे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की पीठ से संपतचक मामले की फाइल पेश करने को नहीं कह सकते. बेहतर है कि वे उक्त पीठ का आदेश ही पेश कर दें. प्रधान अपर महाधिवक्ता ने इसके लिए एक दिन का समय मांगा. न्यायालय ने कहा कि ठीक है वे मंगलवार को उक्त आदेश की प्रति पेश कर दें, तबतक निलंबन पर रोक लगा दी जाती है.
आदेश की प्रति आने के बाद रोक वापस ले लिया जाएगा. अपर महाधिवक्ता ने सुनवाई स्थगित करने की पुरजोर कोशिश की लेकिन न्यायालय नहीं माना और कहा कि वे यथास्थिति बरकरार रखने को नहीं कहेंगे. बिल्डरों के वकील ने भी नारायण पर कई आरोप लगाये. गौरतलब है कि 12 दिसम्बर को नगर विकास मंत्री सम्राट चौधरी की अनुशंसा पर बिहार सरकार ने लंबे समय से विवादों में रहे पटना के नगर निगम आयुक्त कुलदीप नारायण को निलंबित कर दिया था.
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