बिहार में हैं 1.5 लाख एचआईवी मरीज!
बिहार में एचआईवी पॉजीटिव मरीजों की संख्या लगभग 1.5 लाख है. यह चौंकाने वाला आंकड़ा बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति का है.
एचआईवी |
समिति ने यह आंकड़ा उन जगहों से जुटाया है जहां रक्तदान की मुहिम चलायी गयी. दरअसल जुलाई 2014 तक बिहार राज्य एड्स नियंतण्रसमिति ने विभिन्न स्रेतों से 78223 लोगों के रक्त के नमूने की जांच की, जिसमें कुल 116 लोगों (लगभग .148 प्रतिशत) के एचआईवी पॉजीटिव से ग्रस्त होने की बात सामने आयी.
अगर राज्य की आबादी 10 करोड़ 42 लाख मान ली जाये, तो यहां वैसे लोग जिन्हें खुद भी मालूम नहीं कि वे एचआईवी से पीड़ित हैं, उनकी संख्या औसतन 1.5 लाख के करीब पहुंच जाएगी. नाको का ही एक आंकड़ा है कि बिहार में एचआईवी पीड़ित लोगों का औसत प्रतिशत 0.53 है.
हालांकि विभिन्न जिलों में इसके प्रतिशत में भिन्नता भी है. सीतामढ़ी में 3.70, पूर्वी चंपारण में 2.28, खगड़िया में 1.89, पूर्णिया में 1.81, किशनगंज में 1.52, पश्चिमी चंपारण में 1.26, मधुबनी में 1.26, मुजफ्फरपुर में 1.07 है.
हेपेटाइटिस ‘बी’ की स्थिति तो और भी दयनीय है. वर्ष 2014 जुलाई तक 78223 लोगों के जो रक्त के नमूने लिये गये उनकी जांच करने पर 1163 व्यक्तियों में इस रोग की पहचान की गयी है.
यानी 1.48 प्रतिशत लोग इस रोग से ग्रस्त हैं. अगर आबादी के हिसाब से देखा जाये तो वैसे लोग जिन्हें खुद हेपेटाइटिस ‘बी’ से ग्रस्त होने की बात मालूम नहीं है, उनकी संख्या लगभग 15 लाख है.
हेपेटाइटिस ‘सी’ से पीड़ित लोगों की स्थिति भी कमोबेश वैसी ही है. जुलाई 2014 तक के मिले रक्त के नमूने में 114 लोगों में इस रोग के लक्षण मिले हैं.
यानी बिहार की कुल आबादी में छिपे हुए हेपेटाइटिस ‘सी’ पीड़ितों की संख्या 1.40 लाख है. ये वैसे लोग हैं, जिन्हें खुद नहीं मालूम कि वे एचआईवी, हेपेटाइटिस ‘बी’ या ‘सी’ की गिरफ्त में आ चुके हैं.
हैरत की बात यह है कि यह आंकड़ा किसी एक वर्ष का नहीं, बल्कि वर्ष 2008 से लेकर जुलाई 2014 तक के आंकड़े कमोबेश यही कहानी कह रहे हैं. राष्ट्रीय एड्स नियंतण्रसमिति (नाको) की मानें, तो रक्त संक्रमण से फैलने वाली बीमारियां की वजह अज्ञानता है. जागरूकता अभियान में कमी के कारण अक्सर सुदूर गांवों में जांच किये बगैर जरूरतमंद मरीजों को रक्त चढ़ा दिया जाता है.
ऐसी कई बीमारियां हैं जिनसे पीड़ित लोगों को तत्काल रक्त चढ़ाने की जरूरत है. इसके अलावा शल्य चिकित्सा के दौरान, सड़क दुर्घटना के शिकार मरीजों, एनेमिक और रक्त कैंसर के मरीजों तथा हीमोफीलिया या थैलेसीमिया के मरीजों की जान बचाने के लिए रक्त की जरूरत पड़ती है.
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