बाधाओं को पार कर आगे बढ़ रहा बिहार

Last Updated 24 Sep 2014 05:46:21 AM IST

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने बिहार की आर्थिक गतिशीलता को बढ़ाया जिसके फलस्वरूप इसकी विकास दर भारत की सबसे तेज विकास दर वाले राज्यों में से एक है.


बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (फाइल फोटो)

अंग्रेजों के बीच हिंदी में गरजे बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मंगलवार को बिहार के विकास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काल से ही बिहार के साथ भेदभाव होता रहा है. आजादी के बाद की सरकारों ने भी बिहार के साथ भेदभाव किया.

इसके बावजूद नीतीश कुमार ने पिछड़े बिहार का विकास किया. उन्होंने कहा कि हमने बिहार की आर्थिक गतिशीलता को बढ़ाया जिसके फलस्वरूप इसकी विकास दर भारत की सबसे तेज विकास दर वाले राज्यों में से एक है.  इस आर्थिक गतिशीलता को कायम रखने, इसे और अधिक समावेशी एवं टिकाऊ बनाने के लिए हमें आप जैसे शोधकर्ताओं के सहयोग की आवश्यकता है. अत: मैं यहां उपस्थित महानुभावों से बिहार के विकास में सक्रिय योगदान करने का आह्वान करता हूं.

उन्होंने लंदन में बिहार की सफलता की कहानी को हिंदी में सुनाकर देश का मान बढ़ाया. बिहार में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और इसके पुनर्निर्माण के साथ यहां हुए परिवर्तन का श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देते हुए  मांझी ने कहा कि इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि दशक पूर्व तक बिहार के शासन की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं रही है लेकिन इसे बिहार के पिछड़ेपन का मुख्य कारण मानना गलत होगा. बिहार का शेष भारत की प्रगति से पथ-विमुख होना हाल की परिघटना नहीं है.

बिहार का प्रति व्यक्ति वाषिर्क व्यय देश में लगातार सबसे कम रहा है. बिहार में समाज आज भी अर्ध सामन्ती व्यवस्था से प्रभावित है तथा सामन्तवादी मानसिकता एवं प्रचलनों का आज भी संस्थाओं पर गहरा प्रभाव है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जब भारत आजाद हुआ तब आधारभूत संरचना,  औद्योगीकरण तथा सामाजिक विकास के सूचकांक में बिहार सबसे निचले पायदान पर था. यह परिस्थिति तब और गम्भीर हो गयी जब भारत सरकार ने राज्यों को गरीबी से उबारने हेतु सही रणनीति की बजाय कुछ त्रुटिपूर्ण नीतियां अपनायीं जिसके कारण गरीब राज्यों जैसे बिहार तथा समृद्ध राज्यों जैसे महाराष्ट्र, पंजाब एवं तमिलनाडु के बीच विकास की खाई और बढ़ गयी. 

बिहार के विभाजन के साथ खनिज पदार्थ एवं अवस्थित संस्थायें झारखंड में चली गयीं जबकि अविभाजित बिहार का लगभग 75 प्रतिशत लोक ऋण का भार वर्तमान बिहार के हिस्से में आ गया. वर्ष 2005 में जब हमारी सरकार सत्ता में आई उस समय बिहार को एक असफल राज्य के उदाहरण के रूप में देखा जाता था. विधि व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त थी, कल्याणकारी योजनाओं का लाभ गरीबों तक शायद ही कहीं पहुंचता था.

हमारी सरकार ने इन संस्थात्मक अवरोधों को हटाते हुए राज्य को क्रियाशील बनाया. उन्होंने कहा कि नई सरकार के सत्ता में आने के पश्चात तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जब सरकार की तीन प्राथमिकताओं के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कहा- सुशासन, सुशासन, सुशासन. सुशासन हमारी विकास की कहानी का मूल मंत्र है. सुशासन की नीति पर आधारित विशिष्ट कार्यक्रमों का सफल कार्यान्वयन और उनका निरंतर सूक्ष्म अनुश्रवण पर ही बिहार की विकास गाथा आधारित है.

2006 में बिहार सरकार ने नि:शुल्क दवा उपलब्ध कराने तथा 2009 में सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर मरीजों को नि:शुल्क रेडियोलॉजी एवं पैथोलॉजी जांच संबंधी सेवा उपलब्ध कराने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. बिहार में सड़कों तथा पुल-पुलियों का जाल बिछाया गया है. 2008 में कृषि का पहला रोड मैप क्रियान्वित किया गया.  राज्य में गेहूं एवं चावल की औसत उत्पादकता वर्ष 2011-12 में राष्ट्रीय औसत उत्पादकता से भी ऊपर हो गई. हमने धान (224 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) तथा आलू (729 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) के उत्पादन में विश्व कीर्तिमान स्थापित किया. महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय नगर निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया है.

हमने बिजली की कमी की चुनौती को स्वीकार किया और विद्युत संयंत्रों के आधुनिकीकरण और विस्तार के अलावा, कई नयी तापविद्युत परियोजनाओं की स्थापना का काम शुरू किया है. बिहार देश का सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है. अत: उद्योगों के लिए जमीन की उपलब्धता एक बड़ी समस्या है. हम भूमि के और अधिक सहज अधिग्रहण की नीति एवं प्रक्रियाओं के निर्माण पर काम कर रहे हैं. आने वाले वर्षों में बिहार खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के केंद्र के रूप में स्थापित होगा.



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