आडवाणी मोदी को भाजपा अध्यक्ष बनवाना चाहते 

Last Updated 20 Jan 2010 10:42:38 PM IST




नयी दिल्ली। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने खुलासा किया है कि भाजपा के लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी नरेंद्र मोदी को बतौर पार्टी अध्यक्ष देखना चाहते थे। लेकिन मोदी ने फिलहाल दिल्ली आने में रूचि नहीं दिखाई। गुजरात के 50 वर्ष पूरे होने के कार्यक्रम संपन्न होने तक उन्होंने राज्य में ही रहने की इच्छा जताई। सुषमा ने कहा कि मोदी के इंकार करने पर ही नितिन गडकरी का नाम सामने आया, जिसपर सहमति बन गई। उन्होंने कहा कि नितिन गडकरी रबड़ स्टैंप अध्यक्ष साबित नहीं होंगे, न ही भाजपा जैसी पार्टी का अध्यक्ष रबड़ स्टैंप हो सकता है। सुषमा ने यह भी कहा कि अटलजी की सहमति से आडवाणी को एनडीए का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। लोकसभा में विपक्ष की नेता बनने के बाद सुषमा स्वराज ने पहला टीवी इंटरव्यू हमारे सहयोगी चैनल ‘समय’ को दिया। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश- क्या आप पार्टी अध्यक्ष बनना चाहती थीं ? मैंने स्वयं कभी कुछ नहीं चाहा। जब भी पार्टी ने कोई जिम्मेदारी दी, उसे मैंने बिना हिचक स्वीकार किया। जब मुझे दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया, तो मैंने उसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए जब बेल्लारी भेजा गया, तब भी मैंने गर्व महसूस किया। इस बार भी पार्टी अध्यक्ष या नेता विपक्ष बनना चाहा नहीं था। वैसे आडवाणीजी ने लोकसभा में नेता विपक्ष बनने का संकेत मुझे आम चुनाव में हार के बाद मई में ही दे दिया था। यानी पिछले वर्ष 16 मई को ही तय हो गया था कि आप लोकसभा में नेता विपक्ष बनेंगी ? आडवाणीजी ने अपना मत दे दिया था, तय तो सब के बीच मिल कर होता है। अगर आप पार्टी अध्यक्ष होती तो 2014 के चुनाव में सारी चीजें आपके हाथ में होती? देखिए, भाजपा में कभी भी एक व्यक्ति के हाथ में सारी चीजें नहीं होती। यहां सामूहिक नेतृत्व की पद्धति है, सब मिलकर तय करते हैं। नितिन गडकरी को उनकी क्षमताओं के आधार पर अध्यक्ष बनाया गया और मुझे मेरी क्षमताओं के आधार लोकसभा में नेता। दोनों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभानी है। आपको लगता है कि आरएसएस के दखल से अध्यक्ष बने नितिन गडकरी रबर स्टैंप साबित होंगे ? पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि नितिनजी को आरएसएस ने थोपा है या अपनी ओर से तय किया है, यह धारणा बिलकुल निराधार है। अगर मैं कहूं कि यह बिलकुल असत्य है तो भी गलत नहीं होगा। उनका नाम भाजपा के भीतर से ही उभर कर आया और इतनी बड़ी पार्टी का अध्यक्ष रबर स्टैंप हो, इसका तो सवाल ही नहीं उठता है। नितिनजी का अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व है, जिसे उन्होंने खुद विकसित किया है। क्या नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह से बेहतर अध्यक्ष साबित होंगे? देखिए कभी किसी की तुलना नहीं करनी चाहिए। इतने अध्यक्ष रहे, इनमें कौन अच्छा-कौन खराब रहा, इसका कोई मतलब नहीं है। राजनाथजी की अध्यक्षता में हमने कई चुनाव जीते, इस लिहाज से वे कम अच्छे अध्यक्ष नहीं थे। आडवाणीजी चाहते थे कि दिल्ली-फोर में से या फिर मोदी अध्यक्ष बने, कहां गड़बड़ हो गई ? पहली बात तो डी-फोर जैसी कोई चीज नहीं, यह मीडिया के दिमाग की उपज है। मेरे और अरूण जेटली के पास पहले से जिम्मेदारी थी, वेंकैया नायडू अध्यक्ष रह चुके थे। जहां तक नरेंद्र मोदी का सवाल है तो हर व्यक्ति की अपनी एक योजना होती है, अपना एक कैलेंडर होता है। गुजरात जयंती का यह 50वां साल है, मोदीजी खुद अभी गुजरात नहीं छोड़ना चाहते थे। वैसे नितिन गडकरी के नाम पर भी तो आडवाणीजी ने ही मुहर लगाई। तो यह माने कि 2012 में नरेंद्र मोदी की ताजपोशी होगी? यह सवाल हाइपोथेटिकल है। उनके बारे में अभी से तय करना उचित नहीं होगा। आपको लगता है कि आज की तारीख में नितिन गडकरी से बेहतर अध्यक्ष मोदी होते ? ये भी हाइपोथेटिकल सवाल है। नरेंद्रजी के अपने गुण हैं, वे विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। लेकिन नितिनजी भी कम नहीं हैं। उन्होंने अपने प्रशासनिक और संगठन कौशल का परिचय पहले ही दे रखा है। उनको थोड़ा समय दीजिए, फिर देखिएगा।



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