इस गांव में 23 फरवरी को कभी नहीं सजी डोली
एक गांव, जहां अब तक कोई ऐसा अवसर नहीं आया जब 23 फरवरी को इस गांव में किसी दुल्हन की डोली सजकर आयी हो अथवा गांव से साजन के घर गयी हो.
(फाइल फोटो) |
उत्तराखंड में ऊधम सिंह नगर जिले मल्सा गिरधरपुर गांव में छह दशक से अब तक कोई ऐसा अवसर नहीं आया जब 23 फरवरी को इस गांव में कोई विवाह समारोह हुआ हो.
ज्योतिषियों के अनुसार हर साल अक्सर 23 फरवरी को विवाह का योग होता है. गांव में रिश्ते के लिए दूसरे गांव का कोई व्यक्ति इस तिथि को बारात लाने की बात करे तो उन्हें परंपरा का हवाला देकर मना कर दिया जाता है.
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह परंपरा 1953 से चल रही है. मल्सा गिरधरपुर गांव को खुशहाल बनाने वाले बाबा तुलसीदास ने इसी दिन गांव में शरीर त्यागा था. कहते हैं कि बाबा तुलसीदास विभाजन के बाद यहां आकर बस गए थे. वे बाल ब्रह्मचारी थे. गांव के बुजुर्गों का कहना है कि बाबा एक पेड़ के नीचे रात-दिन धूनी पर बैठते थे. उनके पास सिर्फ एक चिमटा हुआ करता था.
गांव के निवासी तथा राज्य के पूर्व चिकित्सा-स्वास्थ्य मंत्री तिलकराज बेहड़ा का कहना है कि, जबसे उन्होंने होश संभाला है गांव में इस दिन विवाह समारोह संपन्न होते नहीं देखे. मल्सा गिरधरपुर गांव के तीन हजार लोग बाबा की याद में इस दिन अनूठे यज्ञ को संपन्न कराने की परम्परा में व्यस्त रहते हैं.
मल्सा गिरधरपुर गांव के लोग 23 फरवरी को गांव जरूर आते हैं. इस बहाने गांव के लोगों का साल में एक बार गांव आना-जाना अनिवार्य हो जाता है. इस दौरान रिश्तेदार और दूसरे गांव के लोग भी बड़ी संख्या में गांव में आते हैं और मेले का माहौल होता है. गांव में इस दिन सरकारी अथवा अर्धसरकारी सभी संस्थान भी बंद रहते हैं. स्कूल भवन में बाहर से आने वाले लोगों के रहने की व्यवस्था की जाती है.
वैदिक रिति रिवाज और मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ सम्पन्न होने के बाद भण्डारा होता है. मनोरंजन के लिए सत्संग, प्रवचन के साथ ही राजा हरीशचन्द्र तथा कुन्ती पुत्र कर्ण के चरित्र पर आधारित नाट्य मंचन होता है. इसके अलावा गांव में नि:शुल्क चिकित्सा जैसे कार्यक्रमों के साथ ही अन्य प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं.
लोगों के बीच यह गांव अब तुलसी धाम के नाम से मशहूर है. तुलसी धाम के महंत राजेन्द्र कुमार ने बताया कि बाबा की याद में होने वाले कार्यक्रम में हरिद्वार, ऋषिकेश, वृंदावन, नेपाल, द्वारिका, अयोध्या आदि से साधु-संत हर साल यहां पहुंचते हैं. उनका कहना है कि इस बार 23 फरवरी को मुख्यमंत्री हरीश रावत को यज्ञ में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया है.
खटीमा स्थित वरिष्ठ पंडित जगदीश शासी तथा खटीमा प्रिंटिंग प्रेस के मालिक महेश जोशी का कहना है कि गांव की आबादी महज ढाई तीन हजार है लेकिन यज्ञ के दिन यहां 30 हजार से अधिक लोग पहुंच जाते हैं. यह संख्या निरंतर बढ़ रही है.
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