जो रात में भानगढ़ किले के अंदर जाता है तो वापस नहीं आता
राजस्थान में ‘भुतहा किला’ के नाम से प्रसिद्ध भानगढ़ किले के बारे में लोगों का कहना है कि ‘रात में किले पर भूतों पर वास होता है, जो रात में किले के अंदर जाता है तो वापस नहीं आता.’
भानगढ़ को दंतकथाओं ने बनाया ‘भुतहा किला’ |
भानगढ़ किले के बारे में सुना है कि अंधेरी रात में लोगों ने वहां पर भूतों का तांडव देखा है. किले से तरह-तरह आवाजें आती हैं. यही वजह रही होगी कि रात में वहां पर किसी के जाने की अनुमति नहीं है.
भ्रमण के दौरान हम लोगों ने इन सभी बातों पर विशेष ध्यान दिया. जो सामग्री वहां पर देखने को मिली, उससे तो ऐसा लगता है कि प्रतिबंध के बावजूद रात में वहां पर असामाजिक तत्व व तांत्रिक जाते रहते होंगे.
यहां की खासियत की वजह से ही भानगढ़ में करण-अजरुन व ट्रिप टू भानगढ़ समेत कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है. ‘भुतहा किला’ के नाम से जाने-जाने वाले भानगढ़ किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था. भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मान सिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रियासत बना लिया. माधो सिंह के सुजान सिंह, छत्र सिंह और तेज सिंह तीन बेटे थे.
परिस्थितियां ऐसी बनीं कि माधो सिंह के बाद छत्र सिंह को भानगढ़ का शासक बनाया गया. छत्र सिंह के बेट अजब सिंह ने अपने नाम से अजबगढ़ बसाया.
कहा जाता है कि अजब सिंह का एक बेटा काबिल सिंह अजबगढ़ और दूसरा हरी सिंह भानगढ़ में रहा. हरी सिंह के दो बेटों ने औरंगजेब के दबाव में कर मुस्लिम धर्म अपना लिया और औरंगजेब की कृपा से भानगढ़ के शासक बने रहे. बाद में महाराजा सवाई जयसिंह ने अपना वर्चस्व कायम करते हुए भानगढ़ पर कब्जा कर लिया. भानगढ़ की बनावट ऐसी थी कि जहां राजसी वैभव, भव्य महल, सुसज्जित बाजार, तवायफों की कोठी होने की बात सामने आती हैं वहीं गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगला देवी, कृष्ण केशव मंदिर भी हैं.
बताया जाता है कि 1783 तक यह किला पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था. भानगढ़ के बारे में एक दंतकथा के अनुसार राजकुमारी रत्नावती अपूर्व सुंदरी थी. पूरे राज्य में उसकी सुंदरता के चर्चे थे. इसी राज्य में सिंघिया नाम का तांत्रिक उसकी सुंदरता पर मोहित था और किसी भी कीमत पर उसे पाना चाहता था.
जब राजकुमारी के श्रृंगार के लिए उसकी दासी बाजार में इत्र लेने आई तो तांत्रिक ने दासी को लालच देकर उस इत्र को वशीकरण मंत्र से जादुई बना दिया. जिसके लगाते ही राजकुमारी वशीभूत हो खुद तांत्रिक के पास आ जाती, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. दासी ने राजकुमारी को तांत्रिक वाली बात बता दी तो राजकुमारी ने गुस्से में उस इत्र की शीशी को एक चट्टान पर पटक दिया.
इत्र के गिरते ही चट्टान लुढ़कती हुई तांत्रिक पर जा गिरी. जिस पर तांत्रिक ने मरते समय उस नगरी व राजकुमारी को अनाथ होने का शाप दे दिया, जिससे यह नगर ध्वस्त हो गया. तभी से इस किले में भूतों के वास की बात कही जाती है.
भानगढ़ से संबंधित एक किंवदंती यह भी है कि यहां बालूनाथ योगी की तपस्या स्थली थी. योगी ने इस शर्त पर भानगढ़ के किले को बनाने की सहमति दी थी कि कभी किले की परछाई उसकी तपस्या स्थली पर नहीं पड़नी चाहिए.
कहा जाता है कि माधो सिंह के वंशजों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया तथा किले का निर्माण ऊपर की ओर जारी रखा. बताया जाता है कि एक दिन किले की परछाई तपस्या स्थली पर पड़
गई, जिससे क्रोधित होकर बालूनाथ ने भानगढ़ को शाप देकर ध्वस्त कर दिया. यहां बालूनाथ की समाधि आज भी उस घटनाक्रम को दर्शाती प्रतीत होती है.
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