पिछले 30 वर्षो से रसोइये पृथ्वी सिंह नेगी के जीवन में कोई खास बदलाव नहीं
पिछले 30 वर्षो के दौरान बहुत कुछ बदला, मगर पृथ्वी सिंह नेगी के जीवन में कोई खास बदलाव नहीं आया.
नौकरी 30 साल की, पगार 240 रुपये |
यह मामला उत्तराखंड के श्रीनगर के इंटर कॉलेज में तैनात रसोइये की है. 1985 में नौकरी शुरू करने पर उसकी 240 रुपये प्रतिमाह की पगार 2014 में भी वहीं ठहरी हुई है. यह पगार भी उन्हें हर माह नहीं, बल्कि एक साल में मिलती है.
इस बीच 65 वर्ष पूरे होने पर उन्हें वृद्धावस्था की पेंशन मिलने लगी है, मगर इससे उनके परिवार को सहारा नहीं मिल पाया. प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी भले अकुशल श्रमिक की 211 रुपये और कुशल श्रमिक की 350 रुपये हो, मगर राइंका श्रीनगर के छात्रावास में तैनात पृथ्वी सिंह नेगी को अब भी शिक्षा विभाग प्रतिमाह 240 रुपये मानदेय दे रहा है.
टिहरी-गढ़वाल के बडियारगढ़ के पृथ्वी सिंह नेगी ने 22 सितम्बर 1985 को राजकीय इंटर कॉलेज श्रीनगर के छात्रावास में नौकरी शुरू की थी. तब से लेकर अब तक वे रोजाना 70 छात्रों को तीन वक्त का भोजन बनाते हैं. इसके बदले में उन्हें महज 240 रुपये की पगार दी जाती है. इसी रुपये में उन्हें अपना परिवार चलाना पड़ता है.
चेहरे पर उदासी के साथ वे बताते हैं, ‘यदि गांव में खेतीबाड़ी नहीं होती तो परिवार को चलाना भी मुश्किल हो जाता.’ पृथ्वी सिंह के दिल में कसक है तो इस बात का कि शिक्षा विभाग ने कभी उनके परिश्रम का मूल्यांकन करने की जरूरत महसूस नहीं की.
वे कहते हैं कि भले रोजगार गारंटी में मजदूरी की रकम बढ़ा दी गई हों, मगर इतने वर्षो में उनकी पगार एक पैसे नहीं बढ़ी है. अच्छा हुआ उम्र जो बढ़ती गई और अब वृद्धा पेंशन तो मिलने लगी है.
पृथ्वी सिंह नेगी की पगार पर छात्रावास अधीक्षक ने बताया कि छात्रों को जब छात्रवृत्ति प्राप्त होती है तो उसी के साथ रसोइये की पगार भी दी जाती है. उधर, मानवाधिकार कार्यकर्ता कुशलानाथ ने इसे श्रम कानूनों का उल्लंघन बताते हुए शिक्षा विभाग से रसोइये की पगार बढ़ाने की मांग की है.
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