सूखे कद्दू से झारखंड के कलाकार ने दिखाई कलाकारी
झारखंड के कलाकार मार्कंडेय जवारे की सूखे कद्दू से बनाई गई अंगविन्यास को बखूबी दर्शाने वाली अलंकृत मूर्तियां उनकी विशेष कला है.
सूखे कद्दू से दिखाई कलाकारी |
फिलहाल दिल्ली में उनकी इस कला को ललित कला अकादमी में लगी एक प्रदर्शनी में देखा जा सकता है.
झारखंड के देवघर से संबंध रखने वाले जवारे अपनी इस कला को ‘पुतरू कृति’ कहते हैं. इसके नामकरण की वजह वह अपनी मां को बताते हैं. उनकी मां उन्हें प्यार से पुतरू (बेटा) कहकर बुलाती थी जिस वजह से उन्होंने इस कला का नाम पुतरू रखा जो उनके तरफ से मां को दी गई श्रद्धांजलि है.
वे मूर्तियों का निर्माण बहुत से गांवों से एकत्र की गई तस्वीरों के आधार पर करते हैं. कद्दू से बनने वाली इस कला के बारे में उन्होंने कहा, ‘मूर्तियां कद्दू के खोल से बनाई जाती हैं जिन्हें 2 साल से भी ज्यादा विभिन्न रासायनिक पदाथरें की मदद से सुखाया जाता है जिस वजह से वे कठोर हो जाते हैं और फिर उन्हें मनचाहे आकार में ढाला जाता है.’
उनका कहना है कि कद्दू से बनी उनकी इन हल्की कलाकृतियों की काफी मांग रहती है.यहां के नगरवासी भी उनकी इस अनोखी कला की प्रशंसा कर रहे हैं.
मूर्तियों के अलावा पेंटिंग्स ने भी उन्हें एक अनोखे चित्रकार के रूप में प्रसिद्धि दिलाई है. उनकी चित्रकारी में चमकदार स्पष्टता होती है और उनकी पेंटिग्स ऐसी दिखाई देती हैं जैसे कि उन्हें पेड़ों की छाल पर बनाया गया हो. जावरे का कहना है कि उन्होंने कहीं से भी कोई विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया है और खुद से ही सब कुछ सीखा है.
इस प्रदर्शनी में उनके द्वारा बनाई गई एक औरत की पेंटिंग जिसके आंख से गिरते आंसू को उन्होंने मोती के समान दर्शाया है और बुद्ध तथा रविंद्र नाथ टैगोर की कृतियां भी हैं.
बुद्ध की कृति में उन्होंने बुद्ध को पीपल के पेड़ के पीछे छिपा हुआ दिखाया है और इसे भी उन्होंने कद्दू के खोल से बनाया है. जावरे (60) इससे पहले कुछ वर्षों तक ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी के साथ जुड़े रहे हैं.
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