चुनाव लड़ना है जनाब का मनपसंद शगल
कुछ लोगों के लिए चुनाव लड़ना जीने और मरने का सवाल हो सकता है,लेकिन इन जनाब के लिए चुनावी मैदान में कूदना इनका शगल है.
के श्याम बाबू सुबुद्धि (फाइल फोटो) |
के श्याम बाबू सुबुद्धि 27 बार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव लड़ चुके हैं, यह दीगर है कि उन्हें जीत आज तक नसीब नहीं हुई, लेकिन इससे इनके हौंसले कभी कम नहीं हुए.
78 वर्ष के श्याम बाबू इस बार भी अपने इस शौक को पूरा करने के लिए बेरहमपुर और अस्का लोकसभा सीटों से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं और अपने अंदाज में चुनाव प्रचार भी शुरू कर चुके हैं. यहां 10 अप्रैल को मतदान होगा.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं नामांकन पत्र भरने के पहले दिन 15 मार्च को बेरहमपुर से और उसके अगले दिन अस्का से अपना पर्चा भर दूंगा.’’
देश में सबसे ज्यादा चुनाव लड़ने का रिकार्ड बनाने का इरादा रखकर इस अनोखे अभियान में जुटे श्याम बाबू ने कहा, ‘‘जब मैं चुनाव लड़ता हूं तो निश्चित रूप से जीतने की उम्मीद भी रखता हूं..इस बार भी मेरी जीत की संभावना बहुत ज्यादा है क्योंकि लोग बाकी लोगों से तंग हो चुके हैं.’’
होम्योपैथी के डाक्टर उम्मीद भले ही जीत की रखते हों, लेकिन हकीकत यह है कि उन्होंने आज तक लोकसभा के 17 और विधानसभा के 10 चुनाव जो लड़े हैं, उन सब में उनकी जमानत जब्त हुई है.
श्याम बाबू का यह शौक बहुत पुराना है. उन्होंने सबसे पहले 1957 में पूर्व मंत्री और सियासी दिग्गज बृंदावन नायक के खिलाफ चुनावी बिगुल फूंका था. उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव, पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक और जेबी पटनायक विभिन्न चुनावों में उनके प्रतिद्वंद्वी रह चुके हैं.
प्रचार के लिए वाहनों और इश्तहार, पोस्टरों की मदद न लेने वाले श्याम बाबू स्थानीय मतदाताओं से वोट मांगने के लिए अपनी साइकिल पर निकलते हैं और ज्यादा दूर जाना हो तो बस या ट्रेन से जाते हैं.
उनका कहना है, ‘‘मैं अंतिम सांस तक लड़ता रहूंगा. मैं चुनाव प्रक्रिया को सुधारना चाहता हूं और इसे धन बल के प्रभाव से मुक्त करना चाहता हूं.’’
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