पंजाब की जंग जीते कैप्टन, जन्मदिन का मिला खास तोहफा
चुनाव को \'\'महाजंग\'\' करार देने वाले कैप्टन अमरिन्दर सिंह पंजाब विधानसभा चुनाव की जंग जीत गए और सत्तासीन शिरोमणि अकाली दल को हाशिये पर धकेलते हुए एवं दिल्ली से बाहर पांव पसारने के आप के सपनों पर तुषारापात करते हुए कांग्रेस को लंबे अरसे बाद सत्तासीन करने में सफल रहे.
कैप्टन अमरिन्दर सिंह (फाइल फोटो) |
कैप्टन अमरिन्दर सिंह कुछ ऐसे विरले राजनेताओं में शामिल माने जाते हैं जिन्होंने भारत पाकिस्तान युद्ध का सीधे मोर्चे पर मुकाबला किया है. शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल द्वारा वर्ष 2007 और वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने के उनके प्रयासों को विफल करने के बाद अंतत: कैप्टन साहब ने सफलता का स्वाद चखा.
कांग्रेस के इस कद्दावर नेता को यह जीत अपने 75वें जन्मदिन पर मिली है और उनके लिये इससे शानदार जन्मदिन का तोहफा और कुछ नहीं हो सकता था.
किसी जमाने में अकाली दल के नेता रहे और पटियाला घराने के उत्तराधिकारी कैप्टन पार्टी से इस्तीफा देने के कुछ महीने बाद सेना में फिर से शामिल होने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध लड़ा था. युद्ध की समाप्ति के बाद उन्होंने एक विजेता सैनिक के रूप में सेना से फिर से इस्तीफा दे दिया था.
पंजाब कांग्रेस प्रमुख और पटियाला से पूर्व सांसद प्रणीत कौर के पति कैप्टन अमरिन्दर सिंह का जन्म पटियाला के दिवंगत महाराजा यादविन्दर सिंह के घर हुआ था.
लारेंस स्कूल, स्नावर और दून स्कूल देहरादून में अपनी शुरूआती स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद सिंह जुलाई 1959 में खड़गवासला में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हो गए और दिसंबर 1963 में वहां से स्नातक डिग्री हासिल की.
1963 में भारतीय सेना में कमीशन हासिल करने के बाद उन्हें सिख रेजीमेंट की दूसरी बटालियन में नियुक्त किया गया जिसमें उनके पिता और दादा पहले ही अपनी सेवाएं दे चुके थे. कैप्टन ने इस बटालियन में रहते हुए दो साल तक फील्ड एरिया भारत तिब्बत सीमा पर अपनी सेवाएं दी. वह पश्चिमी कमान के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल हरबक्श सिंह के एड डी कैंप नियुक्त किए गए.
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