वादों की पोटली में खुशियां तलाशते मतदाता
चुनाव का मौसम हो तो नेता अपनी पीठ पर वादों की पोटली बांधकर लाते हैं.
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मतदाताओं को रिझाने के लिए वादों की पोटली खोलने में वे जरा भी देरी नहीं करते लेकिन उनके पास रानी बउ की इस बात का जवाब शायद ही होगा कि उसका राशन कार्ड कब बनेगा. रानी बउ अकेली ही ऐसी नहीं हैं जो नेताओं से उम्मीद लगाए हैं.
ऐसे लोगों में जुगल कुशवाहा भी शामिल हैं जो मजदूरी से अपना जीवन चलाते हैं. बउ और जुगल जैसे लोगों की एक बड़ी तादाद है जो नेताओं की वादों की पोटली में अपनी खुशियां तलाशने उनकी रैलियों और सभाओं में पहुंचते हैं.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान ललितपुर में राहुल गांधी की सभा में सबसे पीछे बैठी 68 वर्षीय बउ की आंखों में उम्मीद साफ पढ़ी जा सकती थी. उन्हें अपना वर्षो पुराना सपना पूरा होने की उम्मीद है. बउ को आस है कि राशन कार्ड बनने के साथ ही उन्हें विधवा पेंशन भी मिलने लगेगी.
ललितपुर के तुबन मैदान में आयोजित सभा में दीगर लोगों के साथ बुजुर्ग रानी बउ भी पहुंचीं थीं. चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई हैं, हाथ कांपते हैं, चलने-फिरने के लिए सहारे की जरूरत पड़ती है लेकिन उन्होंने मदद की उम्मीद नहीं छोड़ी है.
राजनीति और राजनेताओं के वादों की हकीकत से बेखबर बउ को भरोसा है कि आज उसका भाग्य बदल सकता है. सभा शुरू होने से पहले गुमसुम बैठी बुजुर्ग महिला सभा स्थल से लेकर मंच को देखती है.
वह कहती है कि यहां राहुल गांधी आ रहे हैं, इसलिए उसे उम्मीद है कि अब उसका राशन कार्ड बन ही जाएगा.
रानी बउ को अपना राशन कार्ड बनवाने की आस यूं ही नहीं जगी है. इसकी वजह है क्योंकि राहुल ने बुंदेलखण्ड के कई दौरे किए हैं और गरीबों के घरों में खाना-खाने के अलावा रात्रि विश्राम भी किया है, इसलिए सबको लगने लगा है कि राहुल चाहें तो उनकी हर परेशानी दूर कर सकते हैं.
उसे यह नहीं मालूम कि चुनाव के मौसम में नेता कुछ देने नहीं बल्कि अपने दल के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने आए हैं.
राहुल की इसी रैली में पहुंचे जुगल को भी राहुल से उम्मीदें हैं. वह कहते हैं, "राहुल युवा नेता हैं, इसलिए उन पर भरोसा है कि वह जो कह रहे हैं, उसे पूरा करेंगे."
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