उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव:परवान चढ़ी वंशवाद की बेल

Last Updated 18 Jan 2012 10:06:28 PM IST

लोकतंत्र में भी राजशाही परम्परा को जीवंत रखते हुए अपनी सियासी विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने की उत्सुकता साफ नजर आ रही है.


उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव के लिये टिकट वितरण में जम्हूरियत के तकाजों के मुगालते में दल की सेवा करने वाले कार्यकर्ताओं को अनेक स्थानों पर दरकिनार कर ‘बड़े नेताओं’ के रिश्तेदारों को कुर्सी की दौड़ के लायक समझा गया.

वंशवाद की बेल को सींचने के इल्जाम को लेकर निशाने पर चढी कांग्रेस के बाद अब समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी ‘राजा का बेटा ही राजा बनेगा’ के राजशाही दस्तूर को आगे बढ़ाया है. इन दलों के प्रत्याशियों की सूचियां इसकी गवाह हैं.

यह परम्परा इस बात का बरबस एहसास कराती है कि लोकतांत्रिक ढांचे वाले राजसी कुनबों के हर हुक्म के आगे शीश नवाना ही पार्टी पर आस्था रखकर उसके लिये काम करने वाले कार्यकर्ताओं की नियति बन गयी है.

लोकतांत्रिक व्यवस्था के चलते वजूद में आकर सूबे के सियासी फलक पर छा जाने वाली बसपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर की पडरौना सीट से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उन्होंने अपने बेटे उत्कर्ष उर्फ अशोक मौर्य को रायबरेली की ऊंचाहार तथा बेटी संघमित्रा को एटा की अलीगंज सीट से बसपा का टिकट दिलवाया है.
     
बसपा के सांसद और क्षेत्रीय समन्वयक जुगल किशोर ने लखीमपुर खीरी जिले के कस्ता विधानसभा क्षेत्र से अपने बेटे सौरभ को पार्टी का टिकट दिलवाया है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान (एनआरएचएम) में घोटाले के संदिग्ध और मायावती सरकार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्र अपनी पत्नी शिखा मिश्र को कानपुर की महाराजगंज सीट से बसपा का टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं.
    
सकिंदराराऊ सीट से चुनाव लड़ रहे राज्य के ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय ने अपने भाई विनोद उपाध्याय को बुलंदशहर की डिबाई सीट से बसपा का टिकट दिलवाया है, वहीं परिवहन मंत्री राम अचल राजभर ने अपने बेटे संजय राजभर को अकबरपुर सीट से चुनाव मैदान में उतारा है.

यह सिलसिला यहीं नहीं थमता, वंशबेल की जड़ें ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का नारा देने वाली भाजपा तक पैवस्त हैं. लखनऊ से पार्टी के सांसद लालजी टंडन ने लखनऊ उत्तरी विधानसभा सीट से अपने बेटे गोपाल टंडन को चुनाव का टिकट दिलवाया है.

इसके अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता रामजी सिंह मऊ से अपने बेटे अरिजीत सिंह को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे हैं. वहीं अनेक आपराधिक मामलों में आरोपी आजमगढ़ के पार्टी सांसद रमाकांत यादव न सिर्फ अपनी पत्नी को बल्कि बेटे, भतीजे तथा अनेक समर्थकों को टिकट दिलवा चुके हैं.

कांग्रेस में केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा अपने बेटे राकेश वर्मा की चुनावी नैया पार कराने में जुटे हैं. उन्होंने राकेश को बाराबंकी की दरियाबाद
विधानसभा सीट से कांग्रेस का टिकट दिलवाया है.

कांग्रेस के सांसद जगदम्बिका पाल ने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिये अपने बेटे अभिषेक को बस्ती सदर सीट से पार्टी का टिकट दिलवाया है और वह उन्हें चुनाव जिताने के लिये बेहद सक्रिय हैं.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने अपने भाई शेखर बहुगुणा को जबकि केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अपनी पत्नी लुइस को टिकट
दिलवाया है.

इसके अलावा कांग्रेस सांसद हषर्वर्धन के बेटे राज वर्धन, पार्टी नेता राजेशपति त्रिपाठी के बेटे ललितेशपति, रामलाल राही की बहू मंजरी तथा पूर्व सांसद जितेन्द्र के बेटे जय सिंह को टिकट दिया गया है.
    
कार्यकर्ताओं के दम पर प्रदेश की सियासत में प्रमुख ताकत बनकर उभरी सपा परिवारवाद को आगे बढ़ाने की होड़ में फिलहाल आगे नजर आ रही है.

सपा नेता पूर्व मंत्री रेवती रमण सिंह के बेटे उज्ज्वल रमण सिंह, नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल, पार्टी सांसद बाल कुमार के भतीजे वीर सिंह तथा कई अन्य प्रमुख नेताओं और सांसदों की संतानों एवं रिश्तेदारों को चुनाव का टिकट दिया गया है.
    
यह सच है कि लोकतंत्र में अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलवाने में वैसे तो बुराई नहीं है लेकिन मेहनत पर वंश को तरजीह दिया जाना जम्हूरी मुल्क में राजशाही सोच के वर्चस्व का एहसास कराने के साथ-साथ अपने अगुवा की नीयत पर उन लोगों के विास को दरका देता है जो अपनी-अपनी पार्टियों की सेवा में जी-जान से जुटे हुए हैं.



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