चुनाव आयोग की सख्ती:नदारद है झंडे-बैनरों का जलवा

Last Updated 18 Jan 2012 01:51:58 PM IST

विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बाद भी झंडे, बैनर, टोपियां, सरोपा, बिल्ले और नेताओं के कटआउट-पोस्टर का थोक बाजार ठंडा है.


व्यापारियों का कहना है कि चुनावी सीजन के बावजूद उनके पास नाममात्र के आर्डर आए हैं और वे भी कुछ बड़े राष्ट्रीय दलों से. छोटी पार्टियां तो आर्डर देने की हिम्मत ही जुटा नहीं पा रही हैं.

वहीं इसके अलावा बड़े पैमाने पर आर्डर रद्द हो रहे हैं. कुछ उम्मीदवार या उनके समर्थक आर्डर देने के बाद आयोग के डर से माल ही नहीं उठा रहे हैं.

सदर बाजार में कभी चुनाव प्रचार सामग्री का कारोबार करने वाले व्यापारियों की संख्या 50 थी, जो आज सिमटकर 15 पर आ गई है. व्यापारी बताते हैं कि पिछले कुछ साल में प्रचार सामग्री की मांग लगातार घट रही है. इस बार चुनाव में तो मांग बेहद निचले स्तर पर आ गई है. ऐसे में बहुत से व्यापारियों ने धंधा ही बदल लिया है.

व्यापारियों का कहना है कि कभी चुनाव का मौका हजारों परिवारों के लिए रोजी-रोटी का जरिया बनता था. व्यापारियों को जहां धड़ाधड़ आर्डर मिलते थे, वहीं हजारों गरीब परिवार झंडे-बैनर बनाकर, पोस्टर चिपकाकर या जगह-जगह विभिन्न उम्मीदवारों के प्रचार बैनर टांगकर अपने के लिए कई महीनों की रोटी का जुगाड़ कर लेते थे.

पिछले कई साल से चुनाव प्रचार सामग्री का कारोबार करने वाले सदर बाजार के व्यापारी कृष्णा प्रिंटर्स के गुलशन खुराना ने कहा, ‘‘चुनाव का मौका व्यापारियों के लिए तो कमाई का मौका होता ही था, साथ ही इस तरह की सामग्री बनाने वाले कारीगरों के परिवारों तथा पोस्टर चिपकाने और बैनर टांगने वाले लोगों के लिए भी रोजगार का अच्छा अवसर प्रदान करता था.’’

जानकार बताते हैं कि चुनाव के मौके पर प्रचार सामग्री का धंधा करने वाले व्यापारी करोड़ों रुपये का कारोबार कर लेते थे, लेकिन अब धीरे धीरे यह आंकड़ा सिमटकर लाख रूपये तक आ गया है.

खुराना ने कहा कि प्रचार सामग्री की मांग काफी सीमित है. थोड़े बहुत जो आर्डर आ भी रहे हैं वे सिर्फ कुछ बड़ी पार्टियों के हैं. छोटे दलों की ओर से कोई ग्राहक बाजार में आ नहीं रहा.

इसी तरह एक अन्य व्यापारी अनिल भाई ने बताया कि आर्डर मिलने की बात तो दूर, कई उम्मीदवार आयोग की सख्ती देखने के बाद अपने आर्डर रद्द करा रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक प्रत्याशी ने तीन लाख रुपये की प्रचार सामग्री का आर्डर और 50,000 रुपये एडवांस दिए थे. लेकिन अब यह प्रत्याशी अपना माल उठाने ही नहीं आ रहा है.

कनफेडरेशन आफ सदर बाजार ट्रेडर्स एसोसिएशन के महासचिव देवराज बवेजा ने कहा कि चुनाव का मौका कभी समारोह जैसा होता था, लेकिन आज वैसी बात नजर नहीं आती. लोग अपने घरों पर विभिन्न पार्टियों के झंडे लगाते थे, बच्चे बिल्ला बांट रहे प्रत्याशियों के समर्थकों के पीछे भागते थे, लेकिन अब सब बदल गया है.

खुराना ने कहा कि दिल्ली के व्यापारियों को पंजाब से बड़ी संख्या में आर्डर मिलते थे, लेकिन फिलहाल अभी तक बाजार में न तो कोई उम्मीदवार आया है और न ही कोई आर्डर आ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि बड़े राजनीतिक दल तो टीवी या अन्य माध्यमों से प्रचार कर सकते हैं, पर छोटे दलों के उम्मीदवारों के लिए यह सख्ती काफी परेशानी पैदा करने वाली है.











 



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