Bribes for vote case: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, संसद या विधानसभा में वोट करने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने पर चलेगा केस

Last Updated 04 Mar 2024 12:53:39 PM IST

Bribes for vote case: सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को 1998 के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें एमपी/एमएल को संसद या राज्य विधानसभा में वोट करने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने पर आपराधिक मुकदमे से छूट दी गई थी।


सुप्रीम कोर्ट

अपने फैसले में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि सांसद/विधायक वोट देने या किसी विशेष तरीके से भाषण देने के लिए रिश्वत लेने पर अदालत में मुकदमा चलाने से छूट का दावा नहीं कर सकते।

संविधान पीठ में न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना, एम.एम. सुंदरेश, पी.एस. नरसिम्हा, जे.बी. पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने पिछले साल अक्टूबर में इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 1998 के पीवी नरसिम्हा राव के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि संसद और विधानसभा के सदस्य विधायिका में वोट या भाषण के लिए संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत छूट का दावा कर सकते हैं।

1998 के अपने फैसले में पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 105 की पृष्ठभूमि में सांसदों को संसद में कही गई किसी भी बात या दिए गए वोट के संबंध में आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट प्राप्त है। इसी तरह की छूट राज्य विधानमंडल के सदस्यों को अनुच्छेद 194(2) द्वारा मिली हुई है।

सुनवाई के दौरान, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने दलील दी थी कि सांसदों/विधायकों को दी गई छूट उन्हें रिश्वत लेने के लिए आपराधिक मुकदमे से नहीं बचा सकती।

2019 में, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3-न्यायाधीशों की पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की सदस्य सीता सोरेन के सुप्रीम का दरवाजा खटखटाने के बाद इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया था।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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