देश के नाम राष्ट्रपति का संबोधन: जरूरतमंदों के लिए त्याग करें अमीर लोग

Last Updated 25 Jan 2018 09:12:16 PM IST

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को अमीरों को परोपकारी व दानशील बनने की नसीहत दी. देश के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने परोपकार और दान की युगों पुरानी भारतीय संस्कृति का जिक्र किया और सुविधा संपन्न लोगों से जरूरतमंदों व वंचितों के लिए त्याग करने की अपील की.




राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन किया.

कोविंद ने कहा कि 21वीं सदी में डिजिटल अर्थव्यवस्था, जीनोमिक्स, रॉबोटिक्स और ऑटोमेशन युग की सच्चाई है और इसे अपनाने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि नि:स्वार्थ भावना वाले नागरिकों और समाज से ही एक नि:स्वार्थ भावना वाले राष्ट्र का निर्माण होता है. स्वयंसेवी समूह बेसहारा लोगों और बच्चों, और यहां तक कि बेघर पशुओं की भी देखभाल करते हैं. वे किसी के कहने पर नहीं, बल्कि अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर ऐसा करते हैं.

संपन्न परिवार स्वेच्छा से अपनी सुविधा का त्याग कर देता है. आज चाहे सब्सिडी वाली एलपीजी हो या कल कोई और सुविधा भी हो, ताकि इसका लाभ किसी ज्यादा जरूरतमंद परिवार को मिल सके.

उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा, "आइए, हम सभी अपनी तमाम सुविधाओं को एक साथ जोड़कर देखें. और इसके बाद हम अपने ही जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले, उन वंचित देशवासियों की ओर देखें, जो आज भी वहीं खड़े हैं, जहां से कभी हम सबने अपनी यात्रा शुरू की थी."

राष्ट्रपति ने कहा, "हम सभी अपने-अपने मन में झांकें और खुद से यह सवाल करें 'क्या उसकी जरूरत, मेरी जरूरत से ज्यादा बड़ी है? परोपकार करने और दान देने की भावना, हमारी युगों पुरानी संस्कृति का हिस्सा है. आइए, हम सब इस भावना को, और भी मजबूत बनाएं."

राष्ट्र निर्माण एक भव्य और विशाल अभियान है. साथ ही साथ, यह लाखों ही नहीं, बल्कि करोड़ों छोटे-बड़े अभियानों को जोड़कर बना एक सम्पूर्ण अभियान है. ये सभी छोटे-बड़े अभियान समान रूप से महत्वपूर्ण हैं.



उन्होंने कहा कि 'वसुधव कुटुंबकम्' हमारा आदर्श है, जिसका अभिप्राय है कि पूरा संसार एक परिवार है. राष्ट्रपति ने कहा कि यह आदर्श आज के तनाव और आतंकवाद के समय में भले ही अव्यावहारिक लगता हो, लेकिन भारत के लिए यही आदर्श हजारों साल से प्रेरणा का स्रोत रहा है. इस आदर्श को हमारे संवैधानिक मूल्यों में महसूस किया जा सकता है.

कोविंद ने कहा कि नागरिकों को चरित्र निर्माण पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि संस्थाओं को सिद्धांतों और मूल्यों के आधार पर चलाने और समाज से अंधविश्वास असमानता को मिटाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि बेटियों को बेटों की ही तरह शिक्षा, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने की सुविधाएं देने से खुशहाल परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण होगा. महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए सरकार कानून लागू कर सकती है और नीतियां भी बना सकती हैं, लेकिन ऐसे कानून और नीतियां तभी कारगर होंगे, जब परिवार और समाज बेटियों की आवाज को सुनेंगे.

राष्ट्रपति ने कहा, "हमारे 60 प्रतिशत से अधिक देशवासी 35 वर्ष से कम उम्र के हैं. इन पर ही हमारी उम्मीदों का दारोमदार है. इनोवेटिव बच्चे ही एक इनोवेटिव राष्ट्र का निर्माण करते हैं. इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें एक जुनून के साथ जुट जाना चाहिए."

उन्होंने कहा, "रटंत विद्या के बजाय हमें बच्चों को सोचने और तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए."

राष्ट्रपति ने कहा, "आजादी के बाद हमने बहुत सारी उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन हमें अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है. वर्ष 2020, में हमारा गणतंत्र सत्तर साल का हो जाएगा. और 2022 में हम अपनी स्वतंत्रता की पचहत्तरवीं वर्षगांठ मनाएंगे."

कोविंद ने कहा, "हम दीर्घकालिक विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. इन लक्ष्यों के तहत हम गरीबी मिटाने, सबके लिए उत्तम शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने और हमारी बेटियों को हर-एक क्षेत्र में समान अवसर दिलाने के लिए वचनबद्ध हैं."

 

आईएएनएस


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