विवाह के बाद जाति को नहीं बदला जा सकता

Last Updated 21 Jan 2018 06:19:36 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सामान्य जाति की लड़की के दलित पुरु ष से विवाह करने पर उसे अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता. जाति जन्म के आधार पर तय होती है. विवाह के बाद जाति को नहीं बदला जा सकता.


उच्चतम न्यायालय

जस्टिस अरुण मिश्रा और मोहन शांतानौगोदार की बेंच ने केन्द्रीय विद्यालय में हिंदी की अध्यापक के रूप में महिला की नियुक्ति को निरस्त कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनीता सिंह ने जाटव समुदाय के वीर सिंह से विवाह किया था. सुनीता वैश्य जाति की थी, लेकिन विवाह के बाद उसने अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र हासिल करने के लिए आवेदन किया और बुलंदशहर के जिला मजिस्ट्रेट ने नवम्बर 1991 में उसे अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट जारी कर दिया.

सुनीता की शैक्षणिक योग्यता और उसके जाति प्रमाण पत्र के आधार पर उसे पंजाब के पठानकोट में नौकरी मिल गई. केन्द्रीय विद्यालय में वह हिन्दी की पीजीटी नियुक्त हुई.

अनुसूचित जाति के लिए तयशुदा आरक्षण का लाभ उसे मिला. दिसंबर 1993 में उसकी नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए गए. अध्यापन के दौरान सुनीता ने एमएड की डिग्री भी हासिल कर ली.

नौकरी के 21 साल के बाद सुनीता के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई. शिकायत में कहा गया कि वह अग्रवाल जाति की है. यह जाति सामान्य वर्ग में आती है, इसलिए एससी का प्रमाण पत्र फर्जी है. बुलंदशहर के सिटी मजिस्ट्रेट ने जांच के बाद सर्टिफिकेट गलत पाया. सिटी मजिस्ट्रेट ने जुलाई 2013 में केन्द्रीय विद्यालय के उपायुक्त को इसकी जानकारी दी. इसमें कहा गया कि जाटव जाति के आधार पर सुनीता को जारी जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया गया है.

सुनीता ने जिला मजिस्ट्रेट और मेरठ के आयुक्त से जाति प्रमाण पत्र बहाल करने की गुहार की लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. केन्द्रीय विद्यालय ने भी मई 2015 में उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया. बर्खास्तगी के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निस्संदेह जाति जन्म के आधार पर तय होती है. दलित वर्ग में शादी करने पर सामान्य वर्ग की महिला की जाति बदल नहीं सकती. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 21 साल तक के अध्यापन के बाद बर्खास्तगी के आदेश को ज्यादा सख्ती वाला कदम बताया. शीर्ष अदालत ने कहा कि सुनीता के हाईस्कूल प्रमाण पत्र और अंक तालिका में साफतौर पर उसकी जाति अग्रवाल दर्शाई गई है. इसके बावजूद केन्द्रीय विद्यालय ने उसे टीचर की नौकरी देते समय आपत्ति दर्ज नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए बर्खास्तगी के आदेश को जबरन सेवानिवृत्ति में तब्दील कर दिया.

विवेक वार्ष्णेय


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