प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों की बगावत

Last Updated 12 Jan 2018 09:52:08 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय में शीर्ष स्तर पर असंतोष तब खुलकर बाहर आ गया, जब इसके चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने सार्वजनिक रूप से शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर मामलों को उचित पीठ को आवंटित करने के नियम का पालन नहीं करने का आरोप लगाया.


सीजेआई के खिलाफ 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों की बगावत.

इसमे से एक मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के न्यायाधीश बी.एच. लोया की रहस्यमय परिस्थिति में हुई मौत से संबंधित याचिका को उचित पीठ को न सौंपे जाने का मामला शामिल है.

न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर के आवास पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए चारों न्यायाधीशों ने कहा कि "सर्वोच्च न्यायालय का प्रशासन ठीक से काम नहीं कर रहा है और यहां तक कि आज सुबह भी एक खास मुद्दे पर हम चारों एक खास अनुरोध के साथ प्रधान न्यायाधीश से मुलाकात करने गए. दुर्भाग्यवश हम उन्हें समझा पाने में विफल रहे. इसके बाद इस संस्थान को बचाने का इस देश से आग्रह करने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं रह गया."

उन्होंने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को लिखे बिना तिथि वाला एक पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा है कि प्रधान न्यायाधीश सर्वेसर्वा (मॉस्टर ऑफ रॉस्टर) हैं, लेकिन यह व्यवस्था "साथी न्यायाधीशों पर कानूनी या तथ्यात्मक रूप से प्रधान न्यायाधीश के किसी आधिपत्य को मान्यता नहीं है."

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की मौजूदगी में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने हालांकि इस बात का उल्लेख नहीं किया कि वह प्रधान न्यायाधीश द्वारा किस मामले को उचित पीठ को नहीं दिए जाने के बारे में बात क रहे हैं. जब न्यायाधीशों से विशेष रूप से यह पूछा गया कि क्या वे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बृजगोपाल हरिकृष्ण लोया की मौत की जांच की मांग करने वाले मामले को लेकर नाराज हैं? जवाब में न्यायमूर्ति गोगोई ने "हां" कहा.

न्यायाधीश लोया गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख के उस मामले की सुनवाई कर रहे थे, जो उसे कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ में मार गिराए जाने से संबंधित था. इस मामले के आरोपियों में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का भी नाम था. न्यायाधीश लोया का कथित तौर पर हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया था. उनके परिजनों ने उनके निधन की परिस्थितियों पर सवाल उठाया था, और मामले की स्वतंत्र जांच कराए जाने की मांग की थी.

इस मामले की जांच की मांग करने वाली याचिकाएं शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए पेश की गईं, और शीर्ष न्यायालय ने इस मामले पर चिंता जताते हुए इसे 'गंभीर मामला' बताया. न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को इस मामले से जुड़े सारे दस्तावेज 15 जनवरी तक न्यायालय के समक्ष पेश करने के निर्देश दिए.

सात पृष्ठों के पत्र में हालांकि चारों न्यायाधीशों ने कहा कि वे संस्थान को शर्मिदगी से बचाने के लिए विस्तृत जानकारी नहीं दे रहे हैं, क्योंकि 'इस तरह कुछ हदतक संस्थान की छवि पहले ही खराब हो चुकी है.'

सर्वोच्च न्यायालय में र्शीर्ष स्तर पर इस तरह का असंतोष ऐसे समय में सामने आया है, जब पिछले वर्ष नवंबर में न्यायमूर्ति मिश्रा ने घोषणा की थी कि प्रधान न्यायाधीश ही सर्वोच्च न्यायालय के सर्वेसर्वा हैं और उनके पास विशेषाधिकार है कि वह किस मामले को किस न्यायाधीश को देंगे.

इससे एक दिन पहले न्यायमूर्ति चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने आदेश दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय में पांच शीर्ष न्यायाधीशों की पीठ को भ्रष्टाचार के उस मामले की जांच करनी चाहिए, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामले के निपटारे को लेकर कथित रूप से रिश्वत ली गई थी.

चारों न्यायाधीशों ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश समकक्ष न्यायाधीशों में सिर्फ पहला स्थान भर रखते हैं. चारों न्यायाधीशों ने कहा कि रॉस्टर निर्धारण के मामले में प्रधान न्यायाधीश के लिए एक सुव्यवस्थित और स्पष्ट दिशानिर्देश है, जिसके अनुसार पीठ की क्षमता के आधार पर ही किसी विशेष मामले को उसे सौंपा जाता है.

सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठता के आधार पर दूसरे नंबर के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर के आवास पर जल्दबाजी में बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में न्यायाधीशों ने कहा, "यह भारतीय न्याय व्यवस्था, खासकर देश के इतिहास और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक असाधारण घटना है. हमें इसमें कोई खुशी नहीं है, जो हम यह कदम उठाने पर मजबूर हुए हैं. सर्वोच्च न्यायालय का प्रशासन ठीक से काम नहीं कर रहा है. पिछले कुछ महीनों में ऐसा बहुत कुछ हुआ है, जो नहीं होना चाहिए था. देश और संस्थान के प्रति हमारी जिम्मेदारी है. हमने प्रधान न्यायाधीश को संयुक्त रूप से समझाने की कोशिश की कि कुछ चीजें ठीक नहीं हैं और तत्काल उपचार की आवश्यकता है."

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, "दुर्भाग्यवश इस संस्थान को बचाने के कदम उठाने के लिए भारत के प्रधान न्यायाधीश को राजी करने की हमारी कोशिश विफल साबित हुई है."



चारों न्यायाधीशों ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए, जिसपर पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय और सरकार के बीच तकरार चल रही है.

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने पत्रकारों से कहा कि हम चारों इस बात से सहमत हैं कि "लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए निष्पक्ष न्यायाधीश और न्याय प्रणाली की जरूरत है."

उन्होंने कहा, "हम चारों इस बात से सहमत हैं कि जबतक इस संस्थान को इसकी आवश्यकताओं के अनुरूप बचाया और बरकरार नहीं रखा जाएगा, इस देश का लोकतंत्र या किसी भी देश का लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह सकता. किसी लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए, ऐसा कहा गया है.. किसी लोकतंत्र की कसौटी स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायाधीश होते हैं."

उन्होंने कहा, "हमने ढेर सारे विद्वानों को इस तरह की बातें करते सुना है..लेकिन मैं नहीं चाहता कि कुछ विद्वान आज के 20 वर्ष बाद हमसे भी कहें कि हम चारों न्यायाधीशों ने संस्थान और देश की हिफाजत करने के बदले अपनी आत्मा को बेच दिया. हमने इसे जनता के समक्ष रख दिया है. हम यही कहना चाहते थे."

आखिर वास्तव में मुद्दा क्या है? न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, "कुछ महीने पहले, हम चारों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश को एक हस्ताक्षरित पत्र लिखा था. हम एक विशेष विषय के बारे में चाहते थे कि उसे विशेष तरीके से किया जाए. यह हुआ, लेकिन इससे कई सवाल भी खड़े हुए."

न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा कि वे लोग "देश के प्रति अपना कर्ज उतार रहे हैं."

केंद्रीय कानून राज्य मंत्री पी.पी. चौधरी ने कहा, "हमारी न्यायप्रणाली विश्व भर में पहचानी जाने वाली और मान्यता प्राप्त न्यायिक प्रणाली है. यह एक स्वतंत्र न्यायपालिका है. मेरे विचार से किसी भी एजेंसी को हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है. प्रधान न्यायाधीश और अन्य सदस्यों को एकसाथ बैठना चाहिए और मामले को सुलझाना चाहिए. घबराने का कोई जरूरत ही नहीं है."

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा के नेता डी. राजा ने न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर से मुलाकात की और उसके बाद उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय में पैदा हुई इस तरह की समस्याओं के निपटारे के लिए संसद को तरीके विकसित करने होंगे.

समझा जाता है कि न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव ने न्यायमूर्ति चेलमेश्वर से मुलाकात की है.

आईएएनएस


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