'सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति पर चर्चा के लिए पूर्ण अदालत बुलाई जाए'

Last Updated 12 Jan 2018 07:08:16 PM IST

देश के एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश व दो अन्य पूर्व न्यायाधीशों ने सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ कार्यरत न्यायाधीशों द्वारा शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय प्रशासन के खिलाफ उठाई गई शिकायत को 'अभूतपूर्व' बताया और कहा कि जल्द ही पूर्ण अदालत की एक बैठक बुलाई जानी चाहिए.


सर्वोच्च न्यायालय (फाइल फोटो)

पूर्व प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन ने मीडिया से कहा कि चार न्यायाधीशों ने जो किया, वह न तो उसके पक्ष में है और न खिलाफ हैं. उन्होंने कहा, "जो भी कुछ घटित हो रहा है, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे बचा जाना चाहिए."

बालकृष्णन ने कहा, "न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं होना चाहिए और ये घटनाएं आम आदमी को यह एहसास करा सकती हैं कि चीजें सही तरीके से नहीं चल रही हैं. पूर्ण अदालत की बैठक तुरंत बुलाई जानी चाहिए."

शीर्ष अदालत से बतौर न्यायाधीश सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस ने कहा, "अब गेंद प्रधान न्यायाधीश (दीपक मिश्रा) के पाले में है, जो इस मुद्दे को हल करने में सबसे सक्षम व्यक्ति हैं."

थॉमस ने कहा, "ऐसा कभी नहीं हुआ है कि न्यायाधीशों ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया हो. मैंने पत्र में पढ़ा है कि चार न्यायाधीशों ने प्रक्रियागत खामियों की बात की और अब सीजेआई को अपनी बात रखनी है. पूर्ण अदालत बुलाई जानी चाहिए."

शीर्ष अदालत के एक अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश के.एस.राधाकृष्णन ने कहा कि न्यायाधीशों का सात पृष्ठों का पत्र 'सामान्य' है.
 
राधाकृष्णन ने कहा, "पत्र में साफ तौर बताया जाना चाहिए था कि कौन-सा मामला है और यह विवरण है. सामान्य नियम है कि यदि किसी न्यायाधीश का किसी मामले में किसी भी तरह का हित जुड़ा है तो उसे उस न्यायाधीश द्वारा नहीं सुना जाना चाहिए."

सर्वोच्च न्यायालय में दूसरा स्थान रखने वाले न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर ने अपने निवास पर शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया. इसमें न्यायाधीशों ने कहा कि उन्हें इसे लेकर कोई खुशी नहीं है कि जिस बात को लेकर वे परेशान थे, उसे उन्हें सार्वजनिक करने को मजबूर होना पड़ा है.

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के साथ न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति मदन बी.लोकुर भी थे.

उन्होंने कहा, "हम सभी का मानना है कि जबतक इस संस्था को बचाया नहीं जाता और इसे इसकी जरूरतों अनुरूप बनाया नहीं रखा जाता, देश में या किसी भी देश में लोकतंत्र नहीं जिंदा नहीं रह पाएगा."

 

--आईएएनएस


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