शिया वक्फ बोर्ड का मसौदा, अयोध्या में 'मंदिर' और लखनऊ में बने 'मस्जिद'

Last Updated 20 Nov 2017 03:19:43 PM IST

उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने अयोध्या में विवादित रामजन्मभूमि से अपना दावा छोड़ते हुये बाबरी मस्जिद के स्थान पर लखनऊ में मस्जिद-ए-अमन को तामीर कराये जाने सम्बन्धी प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत कर दिया है.


शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि और बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने आज लखनऊ में संयुक्त सम्मेलन में संवाददाताओं को यह जानकारी दी. रिजवी ने बताया कि गत 18 नवम्बर को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में प्रस्ताव पेश किया है.

पांच सूत्रीय प्रस्ताव में शिया वक्फ बोर्ड ने अयोध्या के विवादित धर्मस्थल से अपना दावा वापस लेते हुए वहां राम का भव्य मंदिर बनाने की याचना की है.

शिया वक्फ बोर्ड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश किये गये प्रस्ताव में श्री रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्य गोपालदास, न्यास के सदस्य और पूर्व अध्यक्ष परमहंस रामचन्द्रदास के उत्तराधिकारी दिगम्बर अखाड़ा के महंत सुरेशदास, पूर्व सांसद और न्यास के सदस्य डॉ रामविलासदास वेदान्ती, पक्षकार महंत धर्मदास और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि के भी हस्ताक्षर हैं.

प्रस्ताव में कहा गया है कि अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद स्थल पर हिन्दू समाज का कहना है कि वहां राम मंदिर था. वह उनकी आस्था का केन्द्र है. इसका सम्मान करते हुए उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड विवादित स्थल से राष्ट्रहित में विवाद को समाप्त करने के लिये बोर्ड अपना अधिकार सम्पूर्ण भूमि पर छोड़ने को तैयार है.

समझौते के रूप में तैयार मसौदे (प्रस्ताव) में कहा गया है कि हिन्दू समाज को अधिकार होगा कि विवादित स्थल पर अपनी आस्था के अनुरुप भव्य मंदिर का निर्माण करें. इसमें शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को कोई आपत्ति नहीं होगी. प्रस्ताव में स्वीकार किया गया है कि अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद का अस्तित्व अब खत्म हो गया है.

शिया वक्फ बोर्ड द्वारा पेश किये गये प्रस्ताव में कहा गया है बोर्ड मानता है कि इस मसौदे से हिन्दू और मुसलमानों के बीच आपसी सद्भाव बना रहेगा. इससे अवध की गंगा-जमुनी तहजीब बहाल रहेगी. मंदिर-मस्जिद का विवाद समाप्त करने की दृष्टि से अयोध्या से संबंधित धार्मिक परिक्रमाओं की सीमा से बाहर लखनऊ के हुसैनाबाद स्थित घण्टाघर के सामने खाली पड़ी नजूल की भूमि में से एक एकड़ जमीन शिया समाज को राज्य सरकार आवंटित कर दे.

प्रस्ताव के अनुसार आवंटन के लिये शिया वक्फ बोर्ड द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार से लिखित रूप से आवेदन किया जा चुका है. प्रस्तावित जमीन को चिन्हित कर इस कारण यह प्रस्ताव किया जा रहा है कि उक्त भूमि शिया समाज की आबादी के निकट है. शहर में है और हिन्दू समाज की सभी परिक्रमाओं से दूर है.

प्रस्ताव के चौथे बिन्दु में कहा गया है कि राज्य सरकार यदि मस्जिद निर्माण के लिये वह भूमि आवंटित करती है तो शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड कमेटी गठित कर मस्जिद का मानचित्र स्वीकृत करायेगा. बोर्ड द्वारा गठित कमेटी मस्जिद निर्माण के लिये के अपने स्तर से धन मुहैया कर मस्जिद का निर्माण करेगी. यह निर्माण शिया सेण्ट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा निर्धारित शर्तों के तहत किया जायेगा.

प्रस्ताव के अनुसार वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि के अति संवेदनशील विवाद को समाप्त करने के लिये मंदिर से संबंधित पक्षकारों के समक्ष जो समझौता प्रस्तुत किया है उसका मन्तव्य राष्ट्रहित में बताया गया है. प्रस्ताव के अनुसार बाबरी मस्जिद के बजाय प्रस्तावित मस्जिद का नाम किसी मुगल बादशाह या मीर बाकी के नाम पर नहीं रखा जायेगा, क्योंकि इसी के कारण एक बड़े विवाद ने जन्म लिया और उससे हजारों लोगों को जान और माल का नुकसान हो चुका है.

प्रस्ताव के मुताबिक शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड प्रस्तावित मस्जिद का नाम मस्जिद-ए-अमन रखा जाये, ताकि पूरे देश में इस मस्जिद से आपसी भाई चारे और शांति का संदेश फैले.
इस अवसर पर मौजूद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि ने कहा कि शिया वक्फ बोर्ड का प्रस्ताव बहुत अच्छा है. अब इसी आधार पर अन्य मुस्लिम संगठनों को भी मंदिर निर्माण के लिये सहयोग देते हुए आगे आना चाहिये.

गिरि ने कहा कि प्रस्ताव के अमल में आते ही हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा बढ़ेगा. विवाद समाप्त होगा और दोनो समुदायों की आने वाली पीढ़ियां बेहतर रूप से रह सकेंगी.

शिया वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव की कानूनी हैसियत नहीं : जिलानी

अयोध्या में मंदिर-मस्जिद मुद्दे को सुलह-समझौते से तय करने संबंधी उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के सुप्रीम कोर्ट में पेश किये गये प्रस्ताव को हास्यास्पद बताते हुए आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने कहा है कि विवाद में जिसकी कोई कानूनी हैसियत नहीं है, उसके इस तरह के मसौदे का क्या मतलब है.

आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सचिव और मामले में पक्षकार सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि शिया वक्फ बोर्ड का इस मामले से दावा 1946 में ही समाप्त हो गया था. शिया वक्फ बोर्ड ने कह दिया था कि इस मामले से उसका कोई लेना देना नहीं है. 1989 में शिया वक्फ बोर्ड ने फिर पक्षकार बनने की कोशिश की थी. तीस सितम्बर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ विशेष पूर्ण पीठ का फैसला आने के बाद भी कुछ नहीं कहा गया. अब उनके प्रस्ताव का क्या मतलब.

जिलानी ने कहा कि अयोध्या मसला वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी का घर नहीं है कि जब चाहे किसी से समझौता कर लें. क्या कोई ताजमहल के बारे में समझौता कर सकता है. रिजवी का प्रस्ताव ताजमहल के बारे में समझौता करने जैसा है.

उन्होंने कहा कि शिया समुदाय ने भी रिजवी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. आल इण्डिया शिया पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि उनका समुदाय पर्सनल ला बोर्ड के साथ है. पर्सनल ला बोर्ड का निर्णय ही शिया समुदाय को मान्य होगा. पर्सनल ला बोर्ड ने कई बार कहा है कि इस ऐतिहासिक मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही माना जायेगा.
 

 

वार्ता


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