सरकार का कांग्रेस पर पलटवार, कहा- राफेल डील को 10 साल तक लटकाये रखना शर्मनाक

Last Updated 17 Nov 2017 05:45:17 PM IST

सरकार ने राफेल सौदे पर विपक्ष के सभी आरोपों को खारिज करते हुए आज पलटवार किया. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कांग्रेस नीत सरकार ने रक्षा तैयारियों को नजरंदाज कर दस साल तक इस सौदे को लटकाये रखा जो शर्मनाक है.


रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण

साथ ही उन्होंने कहा कि वहीं मोदी सरकार ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए तात्कालिक जरूरत पूरा करने के लिए 36 विमान खरीदने का निर्णय लिया.

फ्रांस सरकार के साथ लड़ाकू विमान राफेल की खरीद के सौदे पर कांग्रेस और उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा गंभीर सवाल उठाये जाने और इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एकतरफा फैसला बताये जाने के बाद सरकार के बचाव में उतरी रक्षा मंत्री ने दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कांग्रेस ने बिना ‘होमवर्क’ के अनाप-शनाप आरोप लगाये हैं जो पूरी तरह निराधार हैं.

उन्होंने कहा कि यह सौदा पूरी तरह पारदर्शी है और इसमें रक्षा खरीद प्रक्रिया के सभी नियमों का पालन किया गया है. उन्होंने देश को आश्वस्त किया कि इस सौदे में राफेल विमान की कीमत कांग्रेस के शासन में किये गये सौदे से बहुत कम है.

दोनों सरकारों द्वारा किये गये सौदे में तय हुई कीमत के बारे में पूछे जाने पर सीतारमण ने कहा कि यह कोई रहस्य नहीं है और रक्षा सचिव इसकी जानकारी मीडिया को दे सकते हैं हालांकि संवाददता सम्मेलन में मौजूद रक्षा सचिव भी इस सवाल को टाल गये. दोबारा पूछे जाने पर रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि कांग्रेस नीत सरकार तो इस सौदे में किसी अंतिम राशि पर पहुंची ही नहीं थी तो तुलना कैसे की जा सकती है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने सौदे को 10 साल तक लटका कर देश का नुकसान किया है और अब वह तथ्यों को नजरअंदाज कर मोदी सरकार पर आरोप लगा रही है जो शर्मनाक है.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नीत सरकार ने फ्रांस की कंपनी डसाल्ट एवियेशन से 126 बहुउद्देशीय हल्के लड़ाकू विमान राफेल खरीदने का समझौता किया था लेकिन इस सौदे के लंबे समय तक सिरे नहीं चढ़ने पर मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद इसे रद्द कर दिया और सीधे फ्रांस सरकार से ही उड़ने की स्थिति में तैयार 36 राफेल विमान खरीदने का समझौता किया.
सीतारमण ने कहा कि 2000 में जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी तो वायु सेना में बहुउद्देशीय हल्के लड़ाकू विमान की खरीद की जरूरत बतायी गयी थी और सरकार ने रक्षा तैयारियों को प्राथमिकता मानते हुए वायु सेना की इस जरूरत को पूरा करने पर बातचीत शुरू की थी. लेकिन 2004 में कांग्रेस नीत सरकार के सत्ता में आने के बाद दस साल तक वह इस बारे में अंतिम निर्णय नहीं ले सकी इससे विदेशों में सरकार की छवि खराब हुई और देश की रक्षा तैयारी भी प्रभावित हुई.

उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में और कुछ तो तय नहीं हुआ लेकिन इतना जरूर तय हुआ कि वायु सेना के लिए राफेल विमान ही खरीदा जाना है.

उन्होंने कहा कि 2014 में भाजपा नीत सरकार के सत्ता में आने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्थिति बतायी गयी तो उन्होंने वायु सेना को ताकत प्रदान करने के लिए राफेल की खरीद पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया और इसके लिए वायु सेना को भी विश्वास में लिया गया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अप्रैल 2015 में अपनी पेरिस यात्रा के दौरान सीधे फ्रांस सरकार से 36 राफेल विमान की खरीद की घोषणा की जो उड़ने के लिए पूरी तरह तैयार स्थिति में होंगे. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच पांच दौर की वार्ता हुई और इस सौदे को लेकर मंत्रिमंडल की समिति से मंजूरी ली गयी और सितम्बर 2016 में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की सक्रिय हिस्सेदारी के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गये.

रक्षा मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ने एक मित्र राष्ट्र के साथ यह सौदा वायु सेना में लड़ाकू विमानों की कम होती संख्या को देखते हुए एक तरह से आपात स्थिति में किया जिसमें आप के पास सौदेबाजी का ज्यादा समय नहीं होता और वैसे भी इस सौदे पर पिछले 10 सालों से बातचीत हो रही थी जो बहुत नकारात्मक स्थिति थी. सौदे में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से जुड़े ‘ऑफसेट’ के प्रावधान को लेकर विपक्ष के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब आप केवल 36 विमान की खरीद का सौदा करते हैं तो इसमें आर्थिक औचित्य नहीं होता और इससे फायदे की जगह नुकसान होता. साथ ही उन्होंने कहा कि 126 विमानों की खरीद में ‘ऑफसेट’ का आर्थिक औचित्य है. 

वार्ता


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