हमारी विश्वसनीयता पर संदेह कर रहे लोग : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 14 Nov 2017 06:24:22 AM IST

जजों के नाम पर रिश्वत लेने के प्रकरण ने सुप्रीम कोर्ट के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं.


सुप्रीम कोर्ट

रित कांड की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि मौजूदा घटनाक्रम ने हमारी विश्वसनीयता पर संदेह पैदा कर दिया है. मामले को तूल देने पर अदालत ने वकील प्रशांत भूषण की नीयत पर गंभीर सवाल उठाए.

जस्टिस राजेश कुमार अग्रवाल, अरुण मिश्रा और अजय खानविलकर की बेंच ने जज रिश्वत कांड में वकील कामिनी जायसवाल की याचिका पर सुनवाई की. इसी याचिका पर जस्टिस जस्ती चेलमेर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय बेंच ने नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की संविधान पीठ के गठन का आदेश दिया था.

बेंच ने वरिष्ठ वकील शांति भूषण और उनके बेटे प्रशांत भूषण से सवाल किया कि मनपसंद अदालत के लिए एक ही तरह की दो याचिकाएं दायर की गईं. क्या इससे अदालत की मर्यादा और गरिमा प्रभावित नहीं हुई. बेंच ने सवाल किया कि सीजेआई पर आरोप लगाने वाले लोगों को पहले अपने गिरेवां में झांककर देखना चाहिए. यह कैसे कह सकते हैं कि सीजेआई को इस मामले से दूर रहना चाहिए जबकि दो याचिकाएं दायर करके खुद  ही अदालत के नियमों की अवहेलना की.

वकील शांति भूषण ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 और 144 के तहत वरिष्ठतम जज को सम्पूर्ण न्याय के सिद्धांत के तहत पांच वरिष्ठतम जजों की संविधान पीठ के गठन का आदेश देने का अधिकार है. प्रशांत भूषण ने कहा कि जस्टिस चेलमर की अध्यक्षता वाली बेंच के आदेश का पालन न करके अदालत सुप्रीम कोर्ट के जज पर शक की उंगली उठा रही है. सुप्रीम कोर्ट की गरिमा के लिए यह ठीक नहीं है.

भूषण ने यह भी कहा कि दस नवंबर को संविधान पीठ का गठन करके जस्टिस चेलमेर की अध्यक्षता वाली बेंच के आदेश को निष्क्रिय करने में जल्दबाजी क्यों दिखाई गई. यदि पांच वरिष्ठतम जज की संविधान पीठ मामले पर सुनवाई करती तो पहाड़ नहीं गिर जाता. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि इस घाटाले की निष्पक्ष जांच हो ताकि किसी भी जज पर छाए संदेह के बादल छंट जाए. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के रिटार्यड जज की अध्यक्षता की निगरानी में एसआईटी के गठन का आदेश देने का अनुरोध किया है.

इसी बीच अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि याचिकाकर्ता को इसे वापस ले लेना चाहिए क्योंकि इसने इस संस्था की प्रतिष्ठा का नुकसान पहुंचाया है. अदालत ने कहा कि याचिका सुनवाई योग्य (मेटेनबिलटी) है या नहीं, इस पर मंगलवार को निर्णय दिया जाएगा. जस्टिस जे चेलमेर और एस अब्दुल नजीत की बेंच ने नौ नवंबर को अपने आदेश में कहा था कि याचिका पर शीर्ष अदालत के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए.

हालांकि अगले ही दिन दस नवंबर को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने जस्टिस चेलमेर की अध्यक्षता वाली बेंच का आदेश पलट दिया था. संविधान पीठ ने कहा था, यदि ऐसा कोई आदेश किसी अन्य पीठ ने दिया है तो वह टिक नहीं सकता है क्योंकि यह संविधान पीठ के आदेश के समानांतर होगा.

सीबीआई ने 19 सितंबर को दर्ज  प्राथमिकी में उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश इशरत मसरूर कुद्दुसी सहित अनेक व्यक्तियों को भ्रष्टाचार के आरोप  में अभियुक्त बनाया था. कुद्दुसी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी रह चुके हैं. उन्हें लखनऊ  स्थित प्रसाद इंस्टीट्य़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के चेयनमैन बीपी यादव, उनके पुत्र प्रकाश यादव और तीन अन्य को नए छात्रों को प्रवेश देने से प्रतिबंधित एक मेडिकल कालेज से संबंधित मामले का कथित रूप से निबटारा कराने के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

विवेक वार्ष्णेय
सहारा न्यूज ब्यूरो


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