मेडिकल कॉलेज घोटाले में रिश्वत का मामला : जजों के नाम पर पैसे लिए तो खैर नहीं
न्यायपालिका में व्याप्त कथित भ्रष्टाचार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक साहसिक कदम उठाया है.
उच्चतम न्यायालय |
मेडिकल कॉलेजों को अदालत से अपने पक्ष में फैसले दिलाने के नाम पर खुले घोटाले की जांच एसआईटी से कराने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ के सुपुर्द कर दी. संविधान पीठ 13 नवम्बर को इसपर सुनवाई करेगी. संविधान पीठ में सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जज को शामिल करने का भी आदेश दिया गया है. इस घोटाले में उड़ीसा हाई कोर्ट के एक रिटार्यड जज गिरफ्तार किए गए थे.
जस्टिस जस्ती चेलमेर और एस. अब्दुल नजीर की बेंच ने कहा कि 19 सितम्बर को सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में लगे आरोप परेशान करने वाले हैं. सीबीआई की प्राथमिकी में एक आरोपी के रूप में उड़ीसा हाई कोर्ट के रिटार्यड जज इशरत मसरूर कुद्दूसी का नाम भी है. सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया था. वह फिलहाल जमानत पर हैं. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने दलील दी कि चूंकि इस प्राथमिकी का मुद्दा मेडिकल में प्रवेश है और इससे संबंधित मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने की थी, इसलिए न्यायिक और प्रशासनिक पक्ष में वह शामिल नहीं होने चाहिए.
दवे के कथन की पृष्ठभूमि में संविधान पीठ का सदस्य पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों को बनाने का फैसला बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. बेंच ने सारे मामले की जांच के लिए पूर्व सीजेआई की अध्यक्षता में एसआईटी गठित करने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी निगरानी करने के अनुरोध के साथ दायर इस याचिका पर केंद्र और सीबीआई को नोटिस जारी किए.
परिस्थितियों की समग्रता के मद्देनजर हम उचित समझते हैं कि इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ करे. याचिकाकर्ता वकील कामिनी जायसवाल की ओर से दवे ने सीबीआई की प्राथमिकी का हवाला दिया, जिसके आधार पर रिटार्यड जज कुद्दूसी को गिरफ्तार किया गया था.
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