ममता जन्म से विद्रोही हैं, उनकी अनदेखी करना असंभव : प्रणव

Last Updated 18 Oct 2017 10:08:58 AM IST

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने ममता बनर्जी को जन्मजात विद्रोही करार दिया और उन क्षणों को याद किया जब वह एक बैठक से सनसनाती हुई बाहर चली गई थीं और वह खुद को कितना अपमानित और बेइज्जत महसूस कर रहे थे.


पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी (फाइल फोटो)

मुखर्जी ने अपने नयी किताब द कोएलिशन ईअर्स  में उनके :ममता के: व्यक्तित्व की उस आभा का जिक्र  किया है जिसका विवरण कर पाना मुश्किल और अनदेखी करना असंभव है. 
    
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि ममता ने निडर और आक्रामक रूप से अपना रास्ता बनाया और यह उनके खुद के संघर्ष का परिणाम था.
    
उन्होंने लिखा, ममता बनर्जी जन्मजात विद्रोही हैं. उनकी इस विशेषता को वर्ष 1992 में पश्चिम बंगाल कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव के एक प्रकरण से बेहतर समझा जा सकता है, जिसमे वह हार गयी थी.

प्रणव ने याद किया कि उन्होंने अचानक अपना दिमाग बदला और पार्टी इकाई में खुले चुनाव की मांग की.

 पूर्व राष्ट्रपति ने याद किया कि मीडिया रिपोटरे में कहा गया था कि बनर्जी समेत पश्चिम बंगाल कांग्रेस के शीर्ष नेता खुले चुनाव को टालना चाहते थे, क्योंकि इससे पार्टी की गुटबाजी का बदरंग चेहरा सामने आ सकता था, जिसके बाद प्रधानमंत्री और कांग्रेस प्रमुख पी वी नरसिम्हा राव ने उनसे मध्यस्थता करने और समाधान निकालने के लिए कहा.
   
उन्होंने कहा,  उस साल सर्दियों के मौसम के एक दिन मैंने ममता बनर्जी से मुलाकात का अनुरोध किया ताकि (संगठनात्मक चुनावों) की प्रक्रिया के बारे में उनके द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों पर चर्चा की जा सके. 


    
उन्होंने किताब में कहा, चर्चा के दौरान अचानक ममता नाराज हो गई और मुझ पर तथा अन्य नेताओं पर उनके (ममता के) खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया. अब उन्होंने संगठनात्मक चुनाव की मांग की और कहा कि वह हमेशा से चुनाव चाहती थीं ताकि संगठनात्मक मामलों में जमीनी स्तर के कार्यकर्ता भी अपनी राय रख सकें. 
      
उन्होंने लिखा है कि ममता उन्हें और अन्य पर आरोप लगाती रहीं और संगठन के पद आपस में बांट लेने का आरोप लगाकर चुनाव प्रक्रिया को बर्बाद करने की बात कही. मुखर्जी ने लिखा कि ममता की इस प्रतिक्रिया से वह भौचक्के रह गए और उन्होंने कहा कि वह तो उनके और अन्य नेताओं के अनुरोध पर मामले का कोई  समाधान निकालना चाहते थे.

लेकिन उन्होंने दावा किया कि वह उनके रूख से कतई सहमत नहीं हैं और खुले चुनाव चाहती हैं. इतना कहने के बाद वह तेजी से बैठक से चली गई और मैं स्तब्ध था और खुद को अपमानित महसूस कर रहा था.

 

भाषा


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