अपने ही निर्वाचन में लोकतंत्र नहीं बचा पा रहे राहुल!

Last Updated 14 Oct 2017 04:50:40 AM IST

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी संगठन का चुनाव वास्तविक ढंग से कराने की बात करके पुराना ढर्रा बदल देना चाहते थे, लेकिन जब उनके अध्यक्ष बनने का मौका आया तब उन्होंने भी हथियार डाल दिए.


कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)

राहुल हमेशा अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहते रहे हैं कि वह चाहते हैं कि पार्टी में लोकतंत्र इतना मजबूत होना चाहिए कि जमीनी कार्यकर्ता पार्टी में उच्च पदों तक पहुंच सकें. उनमें यह हीन भावना न हो कि आगे बढ़ने के लिए पारिवारिक पृष्ठभूमि होना जरूरी है. जैसा कि हम जैसे लोगों को इसका फायदा मिल जाता है. लेकिन जब उनके खुद के अध्यक्ष बनने का नम्बर आया तो उनके इस दावे की हवा निकल गई. उनके निर्वाचन के लिए सभी राज्य इकाइयों को दिल्ली से निर्देश दिए गए कि वो चुनाव की बजाय अपने यहां सभी अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष को देने संबंधी प्रस्ताव पारित करके भेजें. सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद से कांग्रेस में यही रिवाज चल रहा है और राहुल ने भी इसे खारिज नहीं किया.

जब दिल्ली इकाई से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया और फिर बाकी राज्यों ने भी इसका अनुसरण किया तो राहुल ने उसे भी नहीं रोका. संगठन चुनाव से साफ झलका है कि राहुल वादा करने के बाद भी बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों के स्थान पर साधारण घरों के लड़के-लड़कियों को कांग्रेस की राजनीति में आगे बढ़ाने का प्रयोग करने में नाकाम रहे. हाल यह रहा कि कई राज्यों में बड़े नेताओं के यहां बाप-बेटा दोनों ही प्रदेश प्रतिनिधि चुनकर आ गए. प्रदेश प्रतिनिधि संगठन के लिहाज से महत्वपूर्ण हैसियत रखता है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उसे वोट देने का अधिकार रहता है.

पार्टी के भीतर चुनाव नीचे से ही साफ-सुथरे नहीं हुए हैं. नेता जिस जिले से पार्टी का सदस्य बना था, अगर वहां दूसरा गुट भारी पड़ा तो वह प्रदेश प्रतिनिधि बनने के लिए दूर के जिले में खिसक लिया. यानि घर कहीं और पार्टी का चुना हुआ प्रतिनिधि कहीं और का. कहीं कोई तालमेल नहीं. जैसा बड़े नेताओं को एडजस्टमेंट कराना था, उन्होंने खुलकर कराया. एडजस्टमेंट के इस खेल में कई नेता पहले प्रदेश प्रतिनिधि बन गए और उनके पते और व्यक्ति विवरण प्रदेश इकाइयों के पास बाद में पहुंचे. इससे दिल्ली समेत कोई प्रदेश इकाई अछूती नहीं है.

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के कोठड़ी ब्लॉक  में ऐसा नेता प्रदेश प्रतिनिधि बन गया है, जिसे 2013 में वेगू से विधानसभा चुनाव कांग्रेस के खिलाफ लड़ने की वजह से पार्टी से निकाला गया था. दिलचस्प यह है कि पार्टी दावे से यह कहने की स्थिति में नहीं है कि उनकी पार्टी में वापसी हुई है अथवा नहीं. मध्य प्रदेश में ऐसे भी नेता प्रदेश प्रतिनिधि चुने गए हैं जिनकी कांग्रेस की सक्रिय सदस्यता के बारे में पार्टी से बताते नहीं बन रहा है. हरियाणा, मध्य प्रदेश समेत आधा दर्जन राज्यों में बड़े नेताओं का झगड़ा दिल्ली तक आ गया है.

अजय तिवारी
सहारा न्यूज ब्यूरो


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