PM के लिए प्रणब बेहतर कैंडिडेट थे, पर सोनिया ने मुझे चुना: मनमोहन

Last Updated 13 Oct 2017 10:17:37 PM IST

केन्द्र में 2004 से 2014 तक लगातार दो बार संप्रग गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर चुके पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आज दावा किया कि प्रधानमंत्री बनने के मामले में उनके पास तो कोई विकल्प ही नहीं बचा था तथा पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इस बात को अच्छी तरह जानते थे.


पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुस्तक 'द कोलिशन इयर्स' के उद्घाटन के अवसर उनके साथ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह.

उन्होंने यह बात आज दिल्ली के तीन मूर्ति सभागार में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुस्तक 'द कोलिशन इयर्स' के उद्घाटन के अवसर पर कही जो इस दौर में केन्द्र की विभिन्न गठबंधन सरकारों का लेखाजोखा है. डा. सिंह ने पूर्व राष्ट्रपति को प्रतिष्ठित एवं जिंदादिल सांसद एवं कांग्रेस जन के रूप में याद करते हुए कहा कि पार्टी में हर कोई उनसे जटिल एवं मुश्किल मुद्दों के हल की उम्मीद करते थे.

मनमोहन ने वर्ष 2004 में अपने प्रधानमंत्री बनने का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में चुना और प्रणबजी मेरे बहुत ही प्रतिष्ठित सहयोगी थे. 

उन्होंने कहा,  इनके (मुखर्जी के) पास यह शिकायत करने के सभी कारण थे कि मेरे प्रधानमंत्री बनने की तुलना में वह इस पद (प्रधानमंत्री) के लिए अधिक योग्य हैं... पर वह इस बात को भी अच्छी तरह से जानते थे कि मेरे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था. 

उनकी इस टिप्पणी पर न केवल मुखर्जी तथा मंच पर बैठे सभी नेता बल्कि श्रोताओं की अग्रिम पंक्ति में बैठी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया सहित सभी श्रोता हंसी में डूब गये. मुखर्जी की पुस्तक के लोकार्पण अवसर पर मुखर्जी, मनमोहन के साथ-साथ माकपा नेता सीताराम येचुरी, भाकपा नेता सुधाकर रेड्डी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, द्रमुक नेता कानिमोई मंच पर मौजूद थें. श्रोताओं में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी मौजूद थे.

सिंह ने कहा कि इससे उनके और मुखर्जी के संबंध बेहतरीन हो गये तथा सरकार को एक समन्वित टीम की तरह चलाया जा सका. जिस प्रकार से उन्होंने भारतीय राजनीति के संचालन में महान योगदान दिया है, वह इतिहास में दर्ज होगा.

मनमोहन ने मुखर्जी के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा कि वह 1970 के दशक से ही उनके साथ काम कर रहे हैं. डा. सिंह ने कहा कि वह दुर्घटनावश राजनीति में आये जबकि मुखर्जी एक कुशल एवं मंझे हुए राजनीतिक नेता हैं.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री रहने के दौरान सरकार को जब भी किसी जटिल मुद्दे का हल निकालना होता था तो मंत्री समूह का गठन किया जाता था और अधिकतर जीओएम की अध्यक्षता उस समय मुखर्जी ही कर रहे होते थे.

इस अवसर पर मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने इस पुस्तक में राजनीतिक कार्यकर्ता की नजर से 1996-2004 तक की लंबी राजनीतिक यात्रा को समझने एवं समीक्षा का प्रयास किया. उन्होंने कहा कि उन्हें संसद में लम्बा अनुभव रहा है और उन्हें संसद में देश के कई बड़े नेताओं को सुनने का मौका मिला.

उन्होंने कहा कि यह पुस्तक किसी इतिहासकार की नजर से नहीं बल्कि एक राजनीतिक कार्यकर्ता के नजर से लिखी गयी है. उन्होंने कहा कि 1996 से लेकर 2004 के बीच पुस्तक में देवगौड़ा सरकार, गुजराल सरकार, वाजपेयी सरकार और मनमोहन सरकार के कामकाज का ब्यौरा दिया गया है.

उन्होंने पुस्तक लोकार्पण समारोह में कहा कि कांग्रेस स्वयं में एक गठबंधन है क्योंकि यह सभी विचारों को एक मंच पर लाती है. उन्होंने कहा,   भीतर के साथ-साथ बाहर गठबंधन होना कठिन है. किन्तु यह किया गया.   

मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने पुस्तक में गठबंधन वर्षो का उल्लेख किया है और किसी व्यक्तिगत मामलों को शामिल नहीं किया गया.

इस अवसर पर माकपा नेता सीताराम येचुरी ने मुखर्जी के साथ अपने लंबे अनुभवों का जिक्र  करते हुए कहा कि भारत स्वयं में ही एक महागठबंधन है जिसमें बहुलतावादी विचार शामिल हैं. उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के प्रथम कार्यकाल में कई जटिल मुद्दों पर मुखर्जी के साथ उनका विचार विमर्श हुआ और उनके अनुभवों का लाभ उठाया गया. 

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुखर्जी के लंबे राजनीतिक अनुभवों का जिक्र  करते हुए कहा कि उनकी इस पुस्तक को पढ़कर हम जैसे युवा पीढ़ी के नेता काफी कुछ सीख सकते हैं और आगामी चुनावों में उसका उपयोग कर सकते हैं. उन्होंने कहा,  हम जैसे राजनीति में शुरूआत करने वालों और जब (हमें) गठबंधन का मौका मिल सकता हो , के लिए यह पुस्तक काफी महत्वपूर्ण होगी. 

अखिलेश ने मंच पर बैठे विभिन्न दलों के सदस्यों की ओर संकेत करते हुए कहा,   इन सभी को नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के साथ बात करने का अनुभव होगा और अब उनका हमारे साथ भी अनुभव हो जाएगा..यह अच्छी बात होगी.  

इस अवसर पर द्रमुक सांसद कानिमोई और भाकपा नेता सुधाकर रेड्डी ने मुखर्जी के लंबे अनुभव का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने संसद में मुखर्जी से काफी सीखा.

भाषा


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