मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा है आतंकवाद: सुषमा

Last Updated 23 Sep 2017 09:43:06 PM IST

आतंकवाद को मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा करार देते हुए भारत ने आज कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद आतंकवादियों को प्रतिबंधित सूची में डालने पर सहमत नहीं हो सकती तो फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय आतंकवाद की समस्या का कैसे मुकाबला करेगा.


विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संयुक्त राष्ट्र महासभा के 72वें सत्र को संबोधित करते हुए.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 72वें सत्र को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जिन समस्याओं का समाधान तलाश रहा है उनमें आतंकवाद सबसे ऊपर है.

उन्होंने कहा, अगर हम अपने शत्रु को परिभाषित नहीं कर सकते तो फिर मिलकर कैसे लड़ सकते हैं? अगर हम अच्छे आतंकवादियों और बुरे आतंकवादियों में फर्क करना जारी रखते हैं तो साथ मिलकर कैसे लड़ेंगे? अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद आतंकवादियों को सूचीबद्ध करने पर सहमति नहीं बना पाती है तो फिर हम मिलकर कैसे लड़ सकते हैं? 

सुषमा सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य चीन का परोक्ष रूप से हवाला दे रही थीं जिसने जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने के भारत के प्रयास को बार-बार अवरद्ध करने का काम किया है.

उन्होंने कहा, मैं इस सभा से आग्रह करना चाहूंगी कि इस बुराई को आत्म-पराजय और निर्थक अंतर के साथ देखना बंद किया जाए. बुराई तो बुराई होती है. आइए स्वीकार करें कि आतंकवाद मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा है. इस निर्मम हिंसा को कोई किसी तरह से उचित नहीं ठहरा सकता.  

सुषमा ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से इसी साल अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि को लेकर समझौते पर पहुंचने के लिये नयी प्रतिबद्धता दिखाने का आह्वान किया.



उन्होंने कहा कि यद्यपि भारत ने 1996 में भी अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि (सीसीआईटी) का प्रस्ताव दिया था लेकिन दो दशक बाद भी संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद की परिभाषा पर सहमत नहीं हो सका है.

उन्होंने कहा, हम भयानक और यहां तक कि दर्दनाक आतंकवाद के सबसे पुराने पीड़ित हैं. जब हमने इस समस्या के बारे में बोलना शुरू किया तो दुनिया की कई बड़ी शक्तियों ने इसे कानून व्यवस्था का मुद्दा बताकर खारिज कर दिया. अब वे इसे बेहतर तरीके से जानते हैं. सवाल है कि हम इस बारे में क्या करें. 

सुषमा ने कहा, हम सबको आत्ममंथन करना चाहिये और खुद से पूछना चाहिये कि क्या हमारी चर्चा, जो कार्रवाई हम करते हैं कहीं से भी उसके करीब है. हम इस बुराई की निंदा करते हैं और अपने सभी बयानों में इससे लड़ने का संकल्प जताते हैं. सच्चाई यह है कि ये सिर्फ दस्तूर बन गए हैं. 

उन्होंने कहा, तथ्य यह है कि जब हमें इस शत्रु से लड़ने और उसका नाश करने की जरूरत है तो कुछ का स्वहित उन्हें दोहरेपन की ओर ले जाता है. 

भाषा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment