निजी वाहन का कमर्शियल इस्तेमाल पड़ा भारी
प्राइवेट गाड़ी का कमर्शियल इस्तेमाल करने पर यदि उसमें बैठी सवारी दुर्घटना का शिकार हो जाती है तो बीमा कंपनी नहीं बल्कि वाहन मालिक मृतकों के वारिसों को मुआवजा देगा.
सुप्रीम कोर्ट |
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि गाड़ी की क्षमता के अनुसार सभी सवारियों का बीमा नहीं कराया गया है तो बीमा कंपनी के बजाय वाहन मालिक मुआवजे की सम्पूर्ण रकम अदा करेगा.
जस्टिस जस्ती चेलामेर और अभय मनोहर सप्रे की बेंच ने दो विधवाओं तथा उनके बच्चों को राहत देते हुए यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी से कहा कि गाड़ी के मालिक का अता-पता नहीं है, लिहाजा दोनों विधवाओं की खराब आर्थिक स्थिति के मद्देनजर उन्हें भुगतान करे और बाद में वाहन के मालिक से रकम की वसूली करे.
कोर्ट का फैसला उन लोगों के लिए खास है जो रोजमर्रा में आवागमन के लिए निजी वाहनों का इस्तेमाल करते हैं. जानकारी के अभाव में निजी गाड़ियों में यात्रा करते हैं जबकि बीमा सिर्फ गाड़ी का और उसके मालिक का होता है, जो ड्राइवर की भूमिका भी अदा करता है.
इस्माइल हुसैन और निराद प्रसाद मोहंती अन्य यात्रियों के साथ टाटा सूमो से गुवाहाटी से नगोन जा रहे थे. तीन जुलाई, 2001 को जोरबाट के समीप सामने से आ रहे ट्रक से सीधे भिड़ंत में दोनों की मौत हो गई. इस्माइल की विधवा मनूरा खातून तथा पांच नाबालिग बच्चों ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) में 55 लाख का दावा दायर किया. निराद की विधवा ममोनी सैकिया मोहंती व उसके तीन बच्चों ने 54 लाख का मुआवजा मांगा.
पंचाट ने अपने फैसले में कहा कि दुर्घटना के लिए टाटा सूमो का ड्राइवर जिम्मेदार है. ट्रक चालक की कोई गलती नहीं थी. न्यायाधिकरण ने कहा कि टाटा सूमो कमर्शियल गाड़ी के रूप में पंजीकृत नहीं थी. लिहाजा उसमें बैठी सवारियों का बीमा नहीं था. हालांकि टाटा सूमो का बीमा यूनाइटेड इंडिया इंश्यारेंस से था. इस कारण बीमा कंपनी की जिम्मेदारी मृतकों के वारिसों को मुआवजा प्रदान करने की नहीं है. वाहन के मालिक राजेश कुमार सिंह को मुआवजे की रकम अदा करनी होगी.
एमएसीटी ने अगस्त 2008 में दिए निर्णय में मनूरा खातून और अन्य वारिसों को 24 लाख 89 हजार तथा ममोनी मोहंती और अन्य उत्तराधिकारियों को 24 लाख नौ हजार का मुआवजा दिया. दोनों विधवाओं ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में अपील दायर की लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट आया.
याचियों की ओर से वकील एमएल लाहौटी ने कहा कि वाहन के मालिक का पता नहीं है. स्थानीय अखबारों में भी इश्तहार छपवाकर उसे अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया गया, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है. कोर्ट ने कहा कि दोनों महिलाएं 16 साल से मुआवजे के लिए लड़ रही हैं. उनकी आर्थिक हालत के मद्देनजर मुआवजा तुरंत दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी पहले दावेदारों का मुआवजा दे और फिर यह रकम गाड़ी के मालिक से वसूले. साढ़े सात प्रतिशत ब्याज के साथ कुल रकम करीब एक करोड़ दस लाख है जिसका भुगतान किया जाए. बीमा कंपनी वाहन मालिक से यह रकम किस तरह वसूलेगी, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ही गाइडलाइंस बनाई हुई हैं.
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