‘SC में एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था का विरोध करे सरकार’

Last Updated 25 Sep 2016 02:04:50 PM IST

केंद्र सरकार की ओर से तीन तलाक के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में सख्त रूख अपनाने की संभावना के बीच देश की कुछ प्रमुख मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकार को देश की सबसे बड़ी अदालत में इस ‘महिला विरोधी’ प्रथा का विरोध करना चाहिए और इस पर रोक सुनिश्चित कराना चाहिए.


(फाइल फोटो)

सरकार के सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि सरकार न्यायालय में यह पक्ष रखेगी कि एक साथ तीन तलाक को शरीयत के तहत अपरिहार्य तथा अपरिवर्तनीय बताना ‘पूरी तरह गलत’ है और यह ‘अनुचित, अतार्किक और भेदभावपूर्ण है’ क्योंकि दुनिया के ढेर सारे मुस्लिम देशों में शादी के कानून को लेकर नियमन की व्यवस्था है. इस महीने के अंत में कानून मंत्रालय उच्चतम न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे पर अपना जवाब दाखिल करेगा.

‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ की सह-संस्थापक नूरजहां सफिया नियाज ने कहा, ‘‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को खुद तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने के लिए प्रयास करना चाहिए था. पर उसने ऐसा नहीं किया. अब सरकार को इस बारे में सख्त रूख अपनाना चाहिए और उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की बात करनी चाहिए.’’

सामाजिक कार्यकर्ता और स्तम्भकार नाइश हसन का कहना है, ‘‘शाह बानो मामले के समय ही पर्सनल लॉ बोर्ड को एक साथ तीन तलाक के मसले पर सोचना चाहिए था. ये लोग जो उस समय कर रहे थे, वही बात अब कर रहे हैं. ये मुस्लिम महिलाओं को उनका हक नहीं देना चाहते.’’

नाइश हसन ने कहा, ‘‘अब सरकार अगर एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था के खिलाफ कोई कदम उठाने जा रही है तो हम इसका स्वागत करते हैं. हमारी मांग है कि सरकार मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के पक्ष में रूख अपनाए.’’

मुस्लिम एवं दलित महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करने वाले संगठन ‘तहरीक-ए-निसवां’ की अध्यक्ष ताहिरा हसन का कहना है कि एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था महिला विरोधी है और सरकार को इस पर रोक के लिए प्रयास करने चाहिए.

ताहिरा ने कहा, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठे मौलाना लोग एक साथ तीन तलाक की पैरवी क्यों कर रहे हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश और कई मुस्लिम देशों में इस पर रोक लग चुकी है. इस महिला विरोधी व्यवस्था का खत्म होना जरूरी है.’’

सूत्रों के अनुसार केन्द्र की यह भी सोच है कि इस मुद्दे को समान नागरिक संहिता के चश्मे से नहीं देखा जाए, बल्कि इसे लैंगिक न्याय और महिलाओं की बुनियादी स्वतंत्रता के मुद्दे के तौर पर देखा जाना चाहिए.

गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्तमंत्री अरूण जेटली, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने पिछले हफ्ते बैठक की थी और एक साथ तीन तलाक कहने (तलाक-ए-बिदअत) पर उच्चतम न्यायालय में सरकार के संभावित रूख पर चर्चा की थी.

इन मंत्रियों ने बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ पर भी चर्चा की थी. निकाह हलाला में तलाक के बाद अगर महिला और पुरूष को फिर से आपस में शादी करनी हो तो उसके लिए जरूरी होता है कि महिला किसी अन्य से शादी करे और उसके बाद फिर नए शौहर को तलाक दे कर पूर्व पति से शादी करे.

भाषा


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