सिंगूर मामला: टाटा को सुप्रीम कोर्ट से झटका, किसानों को जमीन वापसी के आदेश

Last Updated 31 Aug 2016 06:15:08 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने सिंगूर में टाटा मोटर्स की महत्वाकांक्षी नैनो कार उत्पादन संयंत्र लगाने के लिए 997.11 एकड़ जमीन के विवादास्पद अधिग्रहण को निरस्त कर दिया.


सिंगूर मामला: टाटा को SC से झटका
 
 
फैसला ऑटो कंपनी के लिए बड़े झटके के तौर पर आया. यह फैसला न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति अरूण मिश्र की पीठ ने सुनाया. पीठ ने 2006 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन बुद्धदेव भट्टाचार्य नीत वाम मोर्चा सरकार की ओर से की गई भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को निरस्त कर दिया.
    
2011 में पहली बार सत्ता में आई ममता बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस सरकार को इससे बल मिला क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने उसके राजनैतिक घोषणापत्र पर मुहर लगा दी कि भूमि किसानों को लौटा दी जानी चाहिए. 
    
दोनों न्यायाधीश अधिग्रहण प्रक्रिया को निरस्त करने और भूस्वामियों और किसानों को 10 साल तक अपनी जमीन के इस्तेमाल से वंचित किए जाने को लेकर दिए गए मुआवजे को बरकरार रखने को लेकर सर्वसम्मत थे. उन्होंने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए उन्होंने अपना अलग-अलग कारण दिया.
     
उन्होंने सहमति जताई कि भूमि सर्वेक्षण, पहचान और अन्य औपचारिकताएं 10 सप्ताह के भीतर पूरी किए जाने के बाद भूस्वामियों और किसानों को 12 सप्ताह में भूमि लौटा दी जानी चाहिए.
    
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकार भूमि खोने वालों को दिये गए मुआवजे की राशि वापस नहीं मांग सकती क्योंकि उसने 10 साल तक अधिग्रहण की गई जमीन पर अधिकार का इस्तेमाल किया.
    
दोनों न्यायाधीशों के बीच दो बिंदुओं पर असहमति थी. न्यायमूर्ति गौडा ने कहा कि टाटा मोटर्स द्वारा सार्वजनिक उद्देश्य के लिए सीधे तौर पर भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया था जबकि न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए जमीन के अधिग्रहण में कुछ भी अवैधता नहीं थी क्योंकि इससे पश्चिम बंगाल में हजारों लोगों को रोजगार मिलता.
    
फैसला आने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने फैसले को ऐतिहासिक जीत बताया और कहा, ‘‘हमने इस फैसले के लिए 10 साल तक इंतजार किया और यह किसानों की जीत है.’’
    
उनकी पार्टी के लोकसभा के सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बंदोपाध्याय ने कहा कि यह फैसला भूमि अधिग्रहण के मामलों में ‘आंखें खोलने वाला’ होने जा रहा है.
    
उन्होंने कानूनी लड़ाई की अगुवाई की थी.
    
उन्होंने कहा, ‘‘10 साल लंबी राजनैतिक और कानूनी लड़ाई के बाद शीर्ष अदालत ने हमारे द्वारा अपनाए गए रख को सफलतापूर्वक स्वीकृति दी है कि अधिग्रहण अवैध था.’’
 
 
 

 

दोनों न्यायाधीशों ने इस बात पर सहमति जतायी कि भूस्वामियों और किसानों की आपत्तियों पर राज्य के प्राधिकारियों और उसके साधनों ने वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार नहीं किया और राज्य मंत्रिमंडल के फैसले से प्रभावित थे.

    
पीठ ने अधिग्रहण की प्रक्रिया और उसके बाद भूमि अधिग्रहण कलक्टर द्वारा मुआवजे की गणना में त्रुटि पाई और माना कि किसानों के दावों से सही तरीके से नहीं निपटा गया.
    
पीठ ने कहा कि किसानों को कंपोजिट अवार्ड दिये जाने की कानून के तहत अनुमति नहीं है.
    
भूमि अधिग्रहण को निरस्त करने पर न्यायमूर्ति गौड़ा के साथ सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि यद्यपि भूमि की जरूरत उस उद्देश्य के लिए नहीं थी, जिसके लिए इसका अधिग्रहण किया गया था क्योंकि परियोजना सिंगूर से साणंद स्थानांतरित कर दी गई थी. शीर्ष अदालत भूमि को मूल मालिकों को लौटाने के उद्देश्य के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 (उच्चतम न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति) का इस्तेमाल कर सकती है.
    
पीठ ने कुछ किसानों और एनजीओ की अपील को मंजूर करते हुए ये निर्देश दिये और कलकत्ता उच्च न्यायालय के 18 जनवरी 2008 के आदेश को निरस्त कर दिया.
    
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केदारनाथ यादव समेत विभिन्न किसानों और एनजीओ ने अपील दायर की थी.
    
यह आरोप लगाया गया कि भूमि का अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के प्रासंगिक प्रावधानों और अन्य नियमों के खिलाफ था.
    
याचिकाओं में तत्कालीन सरकार पर सर्वाधिक उपजाऊ और बहुमूल्य जमीन टाटा मोटर्स जैसे कॉरपोरेट घराने के नाम करने का आरोप लगाया गया था.
    
यह भी दावा किया गया था कि तत्कालीन राज्य सरकार और डब्ल्यूबीआईडीसी ने राज्य में व्यापार, वाणिज्य और उद्योग का विकास सुनिश्चित करने के लिए पश्चिम बंगाल औद्योगिक आधारभूत संरचना विकास निगम अधिनियम, 1974 के उद्देश्यों के अनुसार मास्टर प्लान नहीं तैयार किया.
    
न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करते हुए अपीलों में कहा गया था कि अधिग्रहण की गई जमीन इतनी उपजाऊ थी कि उनपर साल में दो या तीन बार फसल उपजायी जा रही थी और सार्वजनिक उद्देश्यों के नाम पर अधिग्रहण करके किसानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया.
 



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