हिंसा को खारिज करने वालों से बातचीत के लिए तैयार: महबूबा

Last Updated 28 Aug 2016 08:07:25 PM IST

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि जो भी हिंसा को खारिज करने और शांति बहाली में मदद के लिए तैयार है, उनसे कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए बातचीत की जानी चाहिए.


जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती
 
 
उन्होंने यह भी कहा कि यदि अलगाववादी शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं तो बातचीत की प्रक्रिया में उन्हें भी शामिल करने से कोई परहेज नहीं होना चाहिए. 
    
महबूबा ने कहा कि बातचीत के लिए एक ‘‘सौहार्दपूर्ण माहौल’’ बनाने की जरूरत है और नौजवानों को सुरक्षा शिविरों के ‘‘घेराव और हमले’’ के लिए उकसाने वाले ‘‘मुट्ठी भर लोगों’’ को हिंसा भड़काना बंद करना चाहिए.
    
भविष्य के कदम पर चर्चा के लिए शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल चुकीं महबूबा ने रविवार को इस बात पर जोर दिया कि बातचीत का स्वरूप पहले से बेहतर होना चाहिए, जब केंद्र सरकार ने वार्ताकारों की नियुक्ति की थी और कार्य समूहों का गठन किया था. 
    
महबूबा ने कहा कि बातचीत की ‘‘कड़ी’’ को वहां से जोड़ने की जरूरत है जहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे छोड़ा था. उन्होंने कहा कि वाजपेयी ने बाहरी मोर्चे पर पाकिस्तान और अंदरूनी मोर्चे पर हुर्रियत एवं आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन को बातचीत की प्रक्रिया में शामिल कर ‘‘काफी गंभीर कोशिश’’ की थी. 
    
कश्मीर में कायम मौजूदा अशांति के बीच महबूबा ने कहा, ‘‘मैं जिस बात को लेकर चिंतित हूं और प्रधानमंत्री को भी बताया, वह यह है कि लोगों को अब बातचीत पर यकीन नहीं रहा. लिहाजा, पहले एक संस्था के तौर पर बातचीत बहाल की जानी चाहिए.’’ 
    
गौरतलब है कि पिछले 51 दिनों से कश्मीर में जारी अशांति में 68 लोग मारे जा चुके हैं.
     
महबूबा ने कहा, ‘‘हमें ऐसे लोगों को इसमें शामिल करना चाहिए जिनकी पृष्ठभूमि भरोसेमंद हो और जो दूसरे पक्ष से संवाद कर सके.’’ 
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘‘इस मसले को सुलझाने के लिए’’ बातचीत के प्रति सहमति जाहिर की है. 
     
मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘‘कश्मीर मसले का हल चाहने वालों को समझना चाहिए कि कुछ दिनों या महीनों में हल नहीं निकलने वाला.’’ 
उन्होंने कहा, ‘‘क्या हल निकलने तक हम जिंदगी को इतनी मुश्किल बना लेंगे? क्या हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे मारे जाएं? क्या हम चाहते हैं कि वे ऐसा कुछ करें जिससे जवाबी कार्रवाई हो या वे घायल हों? सभी को इस पर सेाचने की जरूरत है.’’ 
     
यह पूछे जाने पर कि बातचीत में किसे शामिल किया जाना चाहिए, इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंसा को खारिज करने के लिए जो भी तैयार हो, जो हिंसा का समर्थन न करे और शांति बहाली में मदद करे, उनसे केंद्र सरकार को बात करनी चाहिए. 
     
क्या हुर्रियत से बातचीत का कोई फायदा होगा, यह पूछे जाने पर महबूबा ने कहा कि हर उस शख्स से बातचीत होनी चाहिए जो शांतिपूर्ण समाधान चाहता है और हालात पर काबू पाने में मदद के लिए तैयार है.
     
बातचीत शुरू करने से पहले शांति कायम करने का सुझाव देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘आज बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन बातचीत होने के लिए, आपको सौहार्दपूर्ण माहौल चाहिए.’’
    
महबूबा ने कहा कि हिंसा से कुछ भी हासिल नहीं होगा. उन्होंने कहा कि हत्याओं और मौतों से मामला सुलझने से ज्यादा उलझ जाएगा.
    
इस संदर्भ में मुख्यमंत्री ने कहा कि कश्मीर पिछले 27 साल से हिंसा का गवाह बनता रहा है, लेकिन सिवाय मौतों के इससे कुछ हासिल नहीं हुआ और बच्चे अनाथ हो गए एवं महिलाएं विधवा हो गईं.
    
हुर्रियत और अन्य अलगाववादी संगठनों को दिए गए संदेश में महबूबा ने कहा, ‘‘यदि वे नौजवान और कीमती जिंदगियों को बचाना चाहते हैं तो उन्हें इन लोगों को सच्चाई बतानी चाहिए कि इन हत्याओं, इन मौतों से मसला सुलझने वाला नहीं, बल्कि यह और उलझ जाएगा. यह बुनियादी मुद्दे को भी हथिया लेता है और हिंसा का दर्द देता है.’’ 
    
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘पूरी दुनिया हिंसा से तंग आ चुकी है. कोई भी हिंसा की आवाज सुनने के लिए तैयार नहीं है. लिहाजा, जो भी शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सकता है, उसे शांतिपूर्ण तरीके से ही सुलझाना चाहिए.’’ 
    
महबूबा ने हुर्रियत नेताओं से कहा कि हिंसा पर उतारू होने वाले नौजवानों पर उनका ‘‘जो भी प्रभाव’’ है, उन्हें इसका इस्तेमाल इस बात में करना चाहिए कि उन्हें सद्बुद्धि आए. 
    
उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें (हुर्रियत नेताओं को) इन नौजवानों के बारे में वैसे ही महसूस करना चाहिए जैसे हम अपने बच्चों के बारे में महसूस करते हैं. क्योंकि यदि हमने उन्हें जाकर सुरक्षा बलों के शिविरों पर हमला करने दिया और भावनात्मक रूप से यह समझाने लगे कि इससे कश्मीर मसले का हल हो सकता है, तो हम ईमानदार नहीं रह जाते. हम उन्हें गुमराह कर रहे हैं और उन्हें खतरनाक स्थिति में डाल रहे हैं.’’
    
श्रीनगर के बादामी बाग में थलसेना की छावनी के ‘घेराव’ के लिए हुर्रियत की ओर से पिछले हफ्ते किए गए आह्वान का हवाला देते हुए महबूबा ने कहा, ‘‘यह नहीं चलेगा. यदि आप नौजवानों को इन शिविरों के पास जाने या लोगों पर घात लगाकर हमला करने के लिए कह रहे हैं तो नतीजा क्या होने वाला है?’’ 
    
यह पूछे जाने पर कि क्या यह भड़काने वाले कदम जानबूझकर उठाए जा रहे हैं, इस पर मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘यह ऐसा कुछ है जो नहीं होना चाहिए क्योंकि सुरक्षा बलों के प्रतिष्ठानों पर हर हमले का मतलब यह है कि सुरक्षाकर्मी यदि ज्यादा से ज्यादा संयत बरतें, तो भी कोई न कोई घायल होगा.’’ 
    
उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें (हुर्रियत नेताओं को) अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि कोई नुकसान न हो.’’ 
    
महबूबा ने कहा, ‘‘हिंसा चाहने वाले ये कौन लोग हैं? मुद्दे को सुलझाने में दिलचस्पी रखने वालों को समझना चाहिए कि पिछले 27 साल में हिंसा से कुछ हासिल नहीं हुआ, सिवाय इसके कि कई लोगों की मौत हुई. इससे कुछ भी सुलझ नहीं सका है.’’ 
    
यह पूछे जाने पर कि क्या बातचीत के लिए कोई वार्ताकार नियुक्त किया जाना चाहिए, इस पर उन्होंने कहा, ‘‘यह देखना प्रधानमंत्री और एनडीए सरकार का काम है कि पहले से बेहतर तरीके से इस दिशा में कैसे बढ़ा जाए. आपने वार्ताकारों, कार्य समूहों को परखा. लेकिन जिनके साथ बातचीत की जानी है, उन्हें भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की जरूरत है ताकि स्थिति शांत हो सके.’’ 
    
उन्होंने कश्मीर मसले को आजादी, जब राज्य ने द्विराष्ट्र सिद्धांत को खारिज कर भारत में शामिल होने का फैसला किया, के बाद ‘‘किसी भी प्रधानमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती’’ करार दिया.
    
महबूबा ने कहा, ‘‘फिर चीजें उल्टी दिशा में क्यों चली गईं? कश्मीरी लोगों ने ही (पाकिस्तानी) आक्रमणकारियों को खदेड़ा और जब भी मौका आया, पाकिस्तान के खिलाफ खड़ी हुई. लेकिन कहीं पर कुछ हुआ..विश्वास की काफी कमी थी.’’ 
    
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि हर सरकार ने इस विश्वास को बहाल करने की कोशिश की, हो सकता है कि कभी-कभी यह अधूरे मन से किया गया हो, और कभी सही तरीके से नही किया गया हो.’’ 
    
महबूबा ने कहा कि वाजपेयी ने गंभीर कोशिश की थी और अब मोदी इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे.
    
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री अपनी ताकत, अपने अधिकारों को समझते हैं. काफी लंबे समय बाद हमें ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो इतने बड़े जनादेश के साथ आया है और वह इस बात को समझते हैं. ऐसे जनादेश का इस्तेमाल वह इस मानवीय समस्या, मानवीय त्रासदी का हल तलाशने के लिए कर सकते हैं.’’
 



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