हाजी अली दरगाह मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का महिला कार्यकर्ताओं ने किया स्वागत

Last Updated 26 Aug 2016 04:31:01 PM IST

मुंबई में हाजी अली दरगाह में मजार के हिस्से तक महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी देने के बंबई उच्च अदालत के आदेश से तृप्ति देसाई के नेतृत्व वाली शहर की भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की सभी सदस्य बेहद उल्लासित हैं.


हाजी अली दरगाह (फाइल फोटो)

यह ब्रिगेड सभी धर्मस्थलों पर लैंगिग समानता के लिए लड़ाई का नेतृत्व कर रही है और इस सप्ताहंत में वे हाजी अली दरगाह पर जाएंगी.

यहां अपने कार्यालय के बाहर इस फैसले पर खुशी मना रही तृप्ति ने कहा, ‘‘हम उच्च अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं. यह दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाने वाले लोगों के चेहरों पर करारा तमाचा है. महिला शक्ति के लिए यह जीत बहुत बड़ी है.’’

तृप्ति ने कहा, ‘‘यह फैसला मील के पत्थर की तरह है. महिलाओं को जो अधिकार मिलने चाहिए, संविधान में उन्हें जो अधिकार दिए गए हैं, वह हमसे किसी तरह छीन लिए गए. यह प्रतिबंध हाजी अली दरगाह में महिलाओं के मजार क्षेत्र में प्रवेश पर लगा था.’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम महिलाओं को दिए गए दोयम दज्रे के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं.’’

तृप्ति के नेतृत्व में महिलाओं का यह समूह 28 अगस्त को हाजी अली पहुंचेगा.

उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि उच्च न्यायालय ने हाजी अली दरगाह न्यास की याचिका के आधार पर अपने आदेश पर छह हफ्ते के लिए रोक लगा दी है इसलिए 28 अगस्त को हम उस स्थान तक ही जाएंगे जहां तक महिलाओं को जाने की अनुमति है.’’

बीते अप्रैल में तृप्ति ने दरगाह की मजार तक महिलाओं के जाने पर पाबंदी के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ा था लेकिन अंतिम समय पर विभिन्न संगठनों के विरोध के चलते वे वहां प्रवेश नहीं ले पाई थीं.

महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले महिला अधिकार समूह भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता बीबी खातून ने भी इस फैसले पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा, ‘‘सबसे पहले तो मैं उच्च अदालत के न्यायमूर्ति कानाडे सर का शुक्रिया अदा करती हूं.’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘अपने इस अधिकार को पाने के लिए कभी न कभी लड़ाई छेड़ चुकी सभी महिलाएं समाज के डर से अपने कदम वापस खींच चुकी थीं. उन्हें डर लगता था कि समाज क्या कहेगा. लेकिन अब समाज जो कुछ भी कहना चाहता है उसे कहने दीजिए, लेकिन हम वही करेंगे जो हम करना चाहते हैं.’’

बीबी खातून ने कहा, ‘‘सूफी संतों को जन्म देने वाली भी महिलाएं ही हैं तो फिर हमारे प्रवेश (दरगाह के मजार वाले क्षेत्र में) पर रोक क्यों है? अगर फैसला हमारे पक्ष में नहीं आता तो हम उच्चतम न्यायालय की शरण में जाते. लेकिन आज हम बहुत खुश हैं क्योंकि न्यायालय ने हमारा पक्ष लिया है.’’

हाजी अली दरगाह में बिना किसी भेदभाव के प्रवेश देने का मसला सबसे पहले बीएमएमए ने उठाया था. इस संगठन ने ‘‘महज लैंगिक आधार पर घोर भेदभाव’’ किए जाने के खिलाफ अगस्त 2014 में बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी.

दरगाह न्यास ने अपने फैसले का यह कहते हुए बचाव किया था कि कुरान में यह उल्लेख है कि किसी भी महिला को पुरूष संत की दरगाह के करीब जाने की अनुमति देना गंभीर गुनाह है. जबकि पुरूषों को न केवल दरगाह तक जाने की स्वतंत्रता है बल्कि उन्हें मजार को छूने की भी इजाजत है.



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