महबूबा ने खोया आपा, कहा- कश्मीर में जो मारे गए वह दूध लेने या टॉफियां खरीदने नहीं गए थे

Last Updated 25 Aug 2016 05:46:25 PM IST

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गुरुवार को अपना आपा खो दिया और अचानक ही वह प्रेस वार्ता खत्म कर दी.


प्रेस वार्ता के दौरान महबूबा ने खोया आपा

इस प्रेस वार्ता को महबूबा और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह संबोधित कर रहे थे. दरअसल, महबूबा उस वक्त बिफर पड़ीं जब राज्य के मौजूदा संकट से निपटने में उनकी भूमिका से जुड़े गए सवाल पूछे गए.

एक सवाल का जवाब देने के बाद महबूबा अचानक से उठ खड़ी हुईं और पत्रकारों को ‘शुक्रिया’ कहा, जबकि राजनाथ वहां बैठे ही रहे. इसके बाद राजनाथ भी हिचकिचाते हुए उठे और महबूबा के आवास पर आयोजित यह प्रेस वार्ता खत्म कर दी गई.

सवालों के जवाब देते हुए महबूबा ने पत्थरबाजी और पिछले 47 दिनों में कश्मीर में हुई हिंसा के अन्य स्वरूपों की निंदा की. उन्होंने कहा कि जब हिंसा पर उतारू भीड़ सुरक्षा बलों के शिविरों, पुलिस पिकेटों और पुलिस थानों पर हमले करेगी तो कुछ नुकसान तो होगा ही.

महबूबा ने अपनी पहले की एक टिप्पणी को स्पष्ट करते हुए कहा कि कश्मीर के महज पांच फीसदी लोग हिंसक विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके कहने का मतलब यह है कि 95 फीसदी लोग समस्या का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं और पांच फीसदी लोगों ने हिंसा में शामिल होकर पूरे मुद्दे को ‘हथिया लिया’ है.

मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा, ‘‘मैं कश्मीर मुद्दे के समाधान के पक्ष में हूं. वार्ता होनी चाहिए. लेकिन पत्थरबाजी करके और शिविरों पर हमला करके कोई मुद्दा नहीं सुलझने वाला. हम मुद्दे को दरकिनार नहीं कर रहे. हम समाधान चाहते हैं.’’

मुख्यमंत्री ने पिछले कुछ दिनों में हुए नुकसान, खासकर नौजवानों की मौत और उनके घायल होने के तरीकों को विस्तार से समझाने की कोशिश की. कश्मीर में नौजवानों की मौत और उनके घायल होने पर सरकार को काफी आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है.

\'कश्मीर के 95 फीसदी लोग चाहते हैं अमन\'

महबूबा ने कहा, ‘‘मारे गए लोगों में से 95 फीसदी, जिसमें ज्यादातर नौजवान हैं, जवाबी कार्रवाई में उस वक्त मारे गए जब वे सुरक्षा इकाइयों पर हमले कर रहे थे.’’

उन्होंने कहा, ‘‘लोग सड़कों पर उतर आए. हमने कर्फ्यू लगाया. क्या बच्चे सेना के शिविरों में टॉफियां खरीदने गए थे? दक्षिण कश्मीर के दमहाल हांजीपुरा में पुलिस थाने पर हमला करने वाला 15 साल का लड़का वहां दूध लेने गया था?’’

महबूबा ने यह भी कहा कि उन्होंने ऐसे सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया जो इस महीने की शुरूआत में पुलवामा जिले के खयू इलाके में एक लेक्चरर के मारे जाने के मामले में शामिल थे.

उन्होंने कहा, ‘‘लेक्चरर का एक मामला है. इसमें जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा दी जानी चाहिए. मैं इसका समर्थन करती हूं.’’

जब पत्रकार संकट के हालात में महबूबा की भूमिका के बारे में सवाल पूछते रहे तो राजनाथ ने बीच में दखल देते हुए कहा, ‘‘महबूबा जी आपमें से ही एक हैं.’’

बहरहाल, महबूबा पूरी तरह बिफरी हुई थीं. उन्होंने तपाक से कहा, ‘‘वे मुझसे क्या बोलेंगे? मैंने दक्षिण कश्मीर के नौजवानों को टास्क फोर्स (पुलिस का विशेष अभियान समूह) से बचाया है. मैंने उन लोगों को चाकुओं से बचाया है, जब उन्हें बंधुआ मजदूरी के लिए ले जाया जा रहा था.’’

\'दुनिया में हिंसक तरीकों की कोई जगह नहीं है\'

राजनाथ ने बार-बार महबूबा को शांत करने की कोशिश की, लेकिन मुख्यमंत्री ने बोलना जारी रखा. उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया में हिंसक तरीकों की कोई जगह नहीं है और यदि आप किसी मुद्दे को बदनाम करना चाहते हैं तो हिंसा करते रहिए.’’

एक पत्रकार ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि महबूबा ने सत्ता में वापसी के बाद से अपना रूख बदल लिया है. साल 2010 में हुए प्रदर्शनों के दौरान विपक्ष की नेता के तौर पर महबूबा ने गिरफ्तारियों और अलगाववादी नेताओं को नजरबंद किए जाने पर उमर अब्दुल्ला सरकार की आलोचना की थी, लेकिन अब सत्ता में आकर उन्हीं तौर-तरीकों को अपना रही है.

इस पर मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुए कहा, ‘‘आपका विश्लेषण गलत है. साल 2010 में एक वजह थी. मछिल में एक फर्जी मुठभेड़ हुई थी जिसमें तीन आम लोग मारे गए थे. इसके बाद शोपियां में दो महिलाओं के बलात्कार और उनकी हत्या कर दिए जाने के आरोप थे. कहने का मतलब यह है कि लोगों के गुस्से की एक वजह थी.’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस साल एक मुठभेड़ हुई. तीन आतंकवादी मारे गए. सरकार का क्या कसूर था?’’

कश्मीर के 95 फीसदी लोगों द्वारा विरोध-प्रदर्शन का समर्थन न करने की अपनी पहले की टिप्पणी पर मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मेरे कहने का मतलब यह था कि लोग मुद्दों का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं. लेकिन हिंसा में शामिल पांच फीसदी लोगों ने मुद्दे को हथिया लिया है. सुरक्षा बलों के शिविरों पर हमलों के लिए उपद्रवियों की ओर से उन्हें इस्तेमाल किया जा रहा है. वे लोग चाहते हैं कि गरीब और नौजवान लोग मारे जाएं, उनकी आंखों की रोशनी चली जाए. क्या आपको यह बात समझ में नहीं आती?’’



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