मानहानि के मामलों को राजनीतिक हथियार न बनायें: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानहानि मामलों को सरकारों की आलोचनाओं के खिलाफ राजनीतिक जवाबी हथियारों के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट |
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए इसी तरह के एक मामले में डीएमडीके प्रमुख तथा कलाकार से नेता बने विजयकांत और उनकी पत्नी प्रेमलता के खिलाफ जारी गैरजमानती वारंट पर रोक लगा दी.
जस्टिस दीपक मिश्रा और रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने कहा कि सरकार को भ्रष्ट या सही नहीं कहने वाले किसी भी व्यक्ति पर मानहानि मामला नहीं चलाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आलोचना के लिए सहिष्णुता होनी चाहिए. मानहानि मामले राजनीतिक जवाबी हथियार के रूप में प्रयुक्त नहीं हो सकते. सरकार या नौकरशाहों की आलोचना करने पर दर्ज होने वाले मामलों का हतोत्साहित करने वाला प्रभाव होता है.
अदालत ने मुख्यमंत्री जयललिता की आलोचना पर उनकी तरफ से तमिलनाडु में लोक अभियोजकों द्वारा दायर मानहानि मामलों की सूची दो हफ्तों में मांगी. बेंच ने कहा कि मानहानि से जुड़े कानूनी प्रावधानों (भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500) को विरोध को दबाने के लिए प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. अगर कई मानहानि मामले दायर करके लोगों को परेशान करने का निरंतर प्रयास होता है तो अदालत को दखल देना चाहिए.
अदालत ने तमिलनाडु सरकार के वकील को बताया कि मानहानि प्रावधानों का दुरु पयोग नहीं होना चाहिए. तिरुपुर की एक निचली अदालत ने बुधवार को मानहानि मामले में अदालत में हाजिर नहीं होने पर विजयकांत और उनकी पत्नी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया था.
मामला तिरूपुर जिले के लोक अभियोजक द्वारा इस आरोप पर दर्ज कराया गया था कि उन्होंने जयललिता के खिलाफ झूठी टिप्पणियां कीं और छह नवम्बर, 2015 को राज्य सरकार के कामकाज की आलोचना की थी.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मानहानि मामले की कार्यवाही पर रोक की मांग वाली विजयकांत द्वारा दायर याचिका पर जयललिता को नोटिस जारी किया था. जयललिता के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि की मुकदमा दायर करने वाले सरकारी वकील को भी नोटिस जारी किया है.
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