16 साल का अनशन खत्म करेंगी इरोम शर्मिला

Last Updated 27 Jul 2016 04:56:47 PM IST

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला ने चुनाव मैदान में उतरने का मन बना लिया है. इरोम ने साफ कहा कि वो अकेली पड़ गई है. कोई भी उनके आंदोलन में साथ नहीं दे रहा है.


इरोम शर्मिला (फाइल फोटो)
इरोम का जन्म 14 मार्च 1972 में इंफाल के एक गांव में हुआ. इरोम शर्मिला 5 भाईयों और 3 बहनों में सबसे छोटी हैं. एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली ईरोम शर्मिला 
की माता घरेलू महिला और पिता सरकारी पशु चिकित्सा विभाग में नौकरी करते थे.
 
सन् 2000 में इरोम हृयूमन राईट्स अलर्ट नामक संस्था से जुड़ी. इस संस्था से जुड़ने के बाद इरोम ने अफस्पा कानून के प्रभावो और कार्यप्रणाली को गहराई से जाना. इरोम शर्मिला 
ने कहा था कि जब सरकार अफस्पा हटा देगी तभी वह अपना अनशन तोड़ेंगी. लेकिन लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद भी कई सरकारें आई और गई. लेकिन किसी ने भी अफस्पा नहीं हटाया.
 
 इस बीच इरोम को मणिपुर की आयरन लेडी कहा जाने लगा. अनशन तोड़ने और राजनीति में कदम रखने का फैसला कर चुकी इरोम ने अपने साथी के साथ शादी करने का भी 
फैसला किया है. उन्होंने कहा कि अगर सब कुछ सही रहा तो वो शादी भी करेंगी. इस बात पर उनके घर वालों ने भी काफी खुशी जताई है. साथ ही उनकी मां ने अपनी बेटी के संघर्ष को खाली न जाने की बात करते हुए जीत की उम्मीद की है.

 साल 2000 से शुरू किया था अनशन-
इरोम शर्मिला ने नवंबर साल 2000 से अनशन शुरू किया जब असम राइफल्स के जवानों से मुठभेड़ में कई नागरिकों की मौत हो गई थी. इसके बाद शर्मिला को गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया. इरोम शर्मिला के नाम सबसे लंबी भूख हड़ताल और सबसे ज्यादा बार जेल से रिहा होने का रिकॉर्ड है.
 
रिहा होने के तीन दिन बाद ही सरकार ने इरोम पर आत्महत्या करने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया.  तब से अब तक इरोम को भरतीय संविधान के एक धारा के तहत (किसी व्यक्ति को एक साल से ज्यादा समय तक न्यायिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता) एक साल पूरे होते ही रिहा कर दिय जाता है और फिर कुछ दिनों के बाद गिरफ्तार कर लिया जाता है. कैद से छूटने के बाद इरोम एक टेंट में रहती हैं. कुछ दिनों बाद इन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया जाता है.
अफस्पा कानून क्या है-
अफ्सपा यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट). इसके तहत सुरक्षा बलों को बिना वारंट के ही तलाशी करने, गिरफ्तार करने और जरूरत पड़ने पर शूट करने का भी अधिकार है. मौजूदा अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हो सकती है. इस कानून में संदेह के आधार पर भी गिरफ्तार किया जा सकता है.
 
इसके लिए उन्हें उस वक्त इजाजत नहीं लेनी पड़ती है. शुरुआत में इसे असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में लागू किया गया था. साल 2004 में इसे मणिपुर के कुछ हिस्सों से हटा लिया गया था. जम्‍मू-कश्‍मीर में अफस्पा 1990 में लागू किया गया था. तब से आज तक जम्‍मू-कश्‍मीर में यह कानून सेना को प्राप्‍त हैं. 
 

 



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