समान नागरिक संहिता पर मोदी सरकार ने लॉ कमीशन से मांगी रिपोर्ट
देश में समान नागरिक संहिता पर केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए लॉ कमीशन से इसे लागू करने को लेकर आ रही दिक्कतों की पड़ताल कर रिपोर्ट मांगी है.
(फाइल फोटो) |
समान नागरिक संहिता के अंतर्गत देश में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए एक ही तरह का कानून होगा जो सभी धर्म और संप्रदाय पर लागू होगा. वर्तमान में भारत में हिन्दू और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग कानून हैं और अलग तरीके से लागू होते हैं.
देश में अब तक इसे लेकर कई बार बहस हो चुकी है और ज्यादातर इसे धर्मनिरपेक्षता के मामले से जोड़कर देखा जाता रहा है. जहां बीजेपी हमेशा से ही इसके पक्ष में रही है वहीं कांग्रेस लगातार इसका विरोध करती आई है.
खबर के अनुसार इस मामले से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि कानून मंत्रालय ने लॉ कमीशन को पत्र लिखकर मामले में डिटेल रिपोर्ट की मांग की है. एक अखबार के अनुसार पत्र में लॉ कमीशन से सिविल कोड मामले की पड़ताल कर रिपोर्ट देने को कहा है.
लॉ कमीशन की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जिस्टस बलबीर सिंह कर रहे हैं जो कि कमीशन से जुड़े संबंधित पक्षों और एक्सपर्ट्स के साथ बैठक कर रिपोर्ट तैयार करेंगे. संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है.
अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाएगा तो सभी धर्मों के लिए शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे जैसे मामलों में एक ही कानून लागू होगा.
समान नागरिक संहिता भारतीय राजनीति में सबसे पहले 1985 में सामने आई जब शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो जो कि एक मुस्लिम महिला थी उसे उसके पति को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा था. बाद में राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए एक विवादित बिल भी प्रस्तुत किया था.
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समान नागरिक संहिता पर अब तक राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं बन पायी, उस पर अब मौजूदा सरकार एक मत बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है. आजादी के इतने सालों के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब किसी सरकार ने लॉ कमीशन से रिपोर्ट तलब की है.
अगर यह लागू हो जाता है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक तरह का पर्सनल लॉ होगा.
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