जम्मू-कश्मीर मसले के लिए शाह ने नेहरू की ऐतिहासिक गलती को बताया जिम्मेदार

Last Updated 29 Jun 2016 04:06:13 PM IST

भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने दिवंगत जवाहरलाल नेहरू पर कश्मीर के मुद्दे पर ‘ऐतिहासिक भूल’ करने का आरोप लगाया और देश के विभाजन के लिए तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना की.


भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह
   
शाह ने वर्ष 1948 में उस संघर्षविराम की घोषणा का हवाला दिया, जब पाकिस्तान के कबाइली हमलावरों को कश्मीर से खदेड़ा जा रहा था. शाह ने कहा कि यदि यह फैसला ना किया गया होता तो जम्मू-कश्मीर की समस्या आज होती ही नहीं.
    
नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय में आयोजित एक समारोह के दौरान शाह ने कहा, ‘‘अचानक ही. बिना किसी कारण के..और वह कारण आज तक ज्ञात नहीं है.. संघर्षविराम की घोषणा कर दी गई. देश के किसी भी नेता ने ऐसी ऐतिहासिक भूल नहीं की होगी. यदि जवाहरलाल जी ने उस समय संघर्षविराम की घोषणा न की होती तो कश्मीर का मुद्दा आज होता ही नहीं.’’
    
शाह ने दावा किया कि यह फैसला ‘‘अपनी (नेहरू की) ‘छवि’’ सुधारने के लिए किया गया था. उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि इस फैसले की वजह से आज कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के पास है.
    
नई दिल्ली में समारोह का आयोजन भारतीय जन संघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की याद में किया गया था. यहां त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय ने एक व्याख्यान दिया.
    
अपने व्याख्यान में रॉय ने वर्ष 1953 में कश्मीर में मुखर्जी की मौत से जुड़ी परिस्थितियों पर सवाल उठाए. तब मुखर्जी एक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए वहां गए थे. उन्होंने घटनाओं से निपटने के नेहरू के तौर तरीकों और मुखर्जी की मौत के कारणों की जांच न करने के नेहरू के फैसले पर सवाल उठाए.
    
शाह ने कहा कि एक ‘बड़ा तबका’ मानता है कि मुखर्जी की मौत दरअसल ‘हत्या’ थी और यदि इसकी जांच की गई होती तो सच सामने आ सकता था.
    
जन संघ के संस्थापक की भूमिका की सराहना करते हुए शाह ने कहा कि उन्होंने बंगाल में हिंदुओं से जुड़ी चिंताएं उठाने में एक अहम भूमिका निभाई थी और ‘‘यदि कोलकाता भारत का हिस्सा है तो इसका श्रेय एक व्यक्ति को जाता है और वह व्यक्ति हैं श्यामा प्रसाद मुखर्जी.’’
   
शाह ने दावा किया कि यदि आजादी के समय कांग्रेस नेतृत्व ने जल्दबाजी न की होती तो भारत का विभाजन रोका जा सकता था.
   
शाह ने कहा, ‘‘आजादी के समय पूरा कांग्रेस नेतृत्व आजाद होने के लिए बेचैन था. वे सब बूढ़े हो रहे थे. इसमें देरी से भी उन्हें चिंता हो रही थी. लेकिन उस समय एक युवा नेता ने सोचा कि गलती नहीं होनी चाहिए और बंगाल को बचा लिया गया था.’’
 
 



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