बंगाल में केके भंडारी के नाम से रहते थे नेताजी,मुखर्जी आयोग ने नकारा
सरकार की 27 मई को नेताजी से जुड़ी डिक्लासीफई की गई कुछ फाइलों से खुलासा हुआ है कि शायद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 1963 तक नॉर्थ बंगाल के एक आश्रम में केके भंडारी के नाम से रहते थे.
(फाइल फोटो) |
फाइलों में सामने आए बातों से यह जानकारी भी मिलती है कि सरकार से संबंधित लोग भी इस शख्स के बारे में चर्चा करते थे.
इस मामले की शुरुआत शालमुरी आश्रम के सेक्रेटरी रमानी रंजन दास द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को लिखे पत्र से होती है. पत्र लिखने वाली घटना के बाद पीएम के निजी सचिव के. राम की ओर से इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर बीएन मलिक को 23 मई, 1963 को सौंपे गए टॉप सीक्रिट मेमो में इसका जिक्र मिलता है.
12 जून को मलिक ने के.के. भंडारी पर टॉप सीक्रिट नोट का जवाब दिया था. इसी साल 7 सितंबर को पीएमओ ने टॉप सीक्रिट दस्तावेज में भंडारी का उल्लेख किया था. इसके बाद 11 नवंबर को भी सरकार ने इसका जिक्र किया था. इस पर इंटेलिजेंस ब्यूरो ने 16 नवंबर को जवाब दिया था.
मुखर्जी आयोग ने यह मानने से इनकार कर दिया कि नॉर्थ बंगाल के आश्रम में रहने वाले केके भंडारी नेताजी नहीं थे. दरअसल 1999 में गठित किए गए जस्टिस मुखर्जी आयोग ने इन टॉप सीक्रिट्स नोट के लिए दबाव बनाया था, जिसके बाद इन्हें पीएम ऑफिस ने इस फाइल को डाउनग्रेड करते हुए टॉप सीक्रिट से सीक्रिट का दर्जा दिया और कमिशन को 2000 में उपलब्ध कराया.
उस वक्त शालुमरी बाबा को लेकर देश भर में चर्चाएं चल पड़ी थीं कि सुभाष चंद्र बोस वापस आ गए हैं. लेकिन मुखर्जी आयोग ने इस बात से साफ इनकार करते हुए कहा कि शालुमरी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे.
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