उत्तराखंड की आग से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा: वैज्ञानिक

Last Updated 03 May 2016 11:15:44 PM IST

वैज्ञानिकों की माने तो उत्तराखंड के जंगलों में लगी विकराल आग से पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने से गंगा नदी में जल की कमी होने के अलावा ओजोन परत को भी नुकसान होने से मानसून का चक्र बिगड़ सकता है.


उत्तराखंड की आग से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा (फाइल फोटो)

सूत्रों के अनुसार जंगलों में लगी आग से उठने वाले धुएं से आसमान में ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन होता है, जो काफी समय तक बादलों में एकत्रित होता रहता है. यह स्थिति काफी नुकसान दायक है, जिससे असमय वर्षा या तापमान में एकाएक बढ़ोतरी हो सकती है. उत्तराखण्ड में लगी आग से तापमान अचानक .02 डिग्री बढ़ गया है.
     
सूत्रों के अनुसार यहां लगी आग और इससे निकलने वाला कार्बन तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों को पिघलाने का कारक होता है. काला कार्बन एवं राख हवा में उड़कर ग्लेशियर पर जाकर जमा हो जाती है, जिसके बाद ग्लेशियर गर्मी और रोशनी को ग्रहण करने लगता है, जिसके बाद इसके पिघलने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ने लगती है.  
    
उत्तराखण्ड के जंगलों में धधकती  आग से जहां लगभग 3000 हेक्टैयर जंगलों को प्रभावित किया है, वहीं छह से अधिक लोगों तथा सैंकडों जानवरों की जाने जा चुकी हैं. इसके साथ ही करोडों की वन संपदा खाक हो चुकी है.  आग बुझाने के लिये सरकारी अमला युद्धस्तर पर जुटा हुआ है लेकिन हालात अभी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं है.

सूत्रों के अनुसार ग्लेशियर में जमा बर्फ साधारतणत: गर्मी एवं लाईट को रिफ्लेकट करके वापस लौटा देती है. जिससे ग्लेशियर ठोस चट्टान का रूप ले लेते है लेकिन कार्बन और राख के कारण उसका यह गुण खंडित हो जाता है. इससे ग्लेशियर के साथ साथ पूरे पर्यावरण पर असर पड़ सकता है. नदियों में जल की कमी हो सकती है. तापमान बढने से मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.



सूत्रों के अनुसार जंगलों में आग लगने की मुख्य वजह बारिश कम होने के कारण जमीन में नमी का समाप्त होना और जंगलों का शुष्क होना है. मानवीय अथवा प्रकृतिक कारणों से लगने वाली छोटी आग भी विकराल रूप धारण कर सकती है, जिससे कम समय में आग तेजी से फैल कर एक बड़े इलाकें में फैल सकती है.

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड की पर्वतमालाओं में स्थित ग्लेशियर से कई प्रमुख नदियां निकलती हैं, जो उत्तर भारत और पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए जीवन दायनी मानी जाती हैं. ग्लेशियर इन नदियों के प्राणदाता है जिन्हें नुकसान पहुंचने से नदियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा सकता है.

 

 



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