संयुक्त मेडिकल प्रवेश परीक्षा के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कुछ राज्य व मेडिकल कॉलेज

Last Updated 02 May 2016 05:02:55 PM IST

कुछ राज्यों एवं निजी चिकित्सकीय कॉलेजों ने एमबीबीएस एवं बीडीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए अपनी अलग परीक्षा जारी रखने की अनमुति मांगने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.


मेडिकल परीक्षा की निगरानी के लिए कमेटी गठित

मध्‍यप्रदेश में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के मैनेजमेंट कोटे में आधी सीटें राज्‍य की प्रवेश परीक्षा के जरिये भरने के मध्‍य प्रदेश सरकार के कानून को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपना फैसला देते हुए राज्‍य सरकार के कानून को सही ठहराया है.

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के जरिए कॉलेजों में होने वाली दाखिला प्रक्रिया की निगरानी के लिए रिटायर्ड चीफ जस्‍टिस आरएम लोढ़ा की अध्‍यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी में पूर्व सीएजी विनोद राय और आईएलबीएस के निदेशक शिव सरीन भी सदस्‍य होंगे.

सुप्रीम कोर्ट में ये मामला पहले से लंबित था, इसलिए आज फैसला आया है. हालांकि एनईईटी वाला फैसला आ जाने की वजह से आज के फैसले का राज्‍य में खास असर नहीं पड़ेगा.

मध्‍यप्रदेश सरकार ने डेंटल एवं अन्‍य मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटें सरकार द्वारा ली जाने वाली प्रवेश परीक्षा के तहत भरे जाने के लिए एक कानून पास किया गया था. सरकार के इस कानून के विरोध में मध्‍यप्रदेश सरकार के प्राइवेट डेंटल कॉलेजों और मेडिकल कॉलेजों की ओर से एक याचिका दायर की गई थी. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ था.

गौरकलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एमबीबीएस और बीडीएस के पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए देश भर में एक ही साझा प्रवेश परीक्षा ‘राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा\' (एनईईटी) इसी अकादमिक सत्र यानी 2016-17 से आयोजित करने का आदेश दिया है. यह परीक्षा दो चरणों में होगी जिसमें इस साल 6.5 लाख उम्मीदवारों के शामिल होने की संभावना है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक मई को होने वाली अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) को एनईईटी-1 मानते हुए केंद्र, सीबीएसई और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की ओर से अपने समक्ष रखे गये कार्यक्रम को मंजूरी दे दी.

जिन छात्रों ने एआईपीएमटी के लिए आवेदन नहीं किया है, उन्हें 24 जुलाई को एनईईटी-दो में शामिल होने का मौका दिया जाएगा और दोनों परीक्षा के नतीजे 17 अगस्त को जारी किए जाएंगे ताकि दाखिला प्रक्रिया 30 सितंबर तक पूरी हो सके. यह आदेश सभी सरकारी कॉलेजों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और निजी मेडिकल कॉलेजों पर लागू होगा. ये सभी एनईईटी के दायरे में आएंगे. इनमें से जिन संस्थानों के लिए मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं हो चुकी हैं या अलग से होनी है, उन्हें रद्द माना जाएगा.

सभी अनिश्चितताएं दूर करने वाला यह आदेश तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और एसोसिएशन ऑफ कर्नाटक मेडिकल कॉलेजेज के अलावा सीएमसी वेल्लोर जैसी अल्पसंख्यक संस्थाओं की ओर से एनईईटी आयोजित करने के विरोध को खारिज करते हुए पारित किया गया. उनकी दलील थी कि उन पर एनईईटी थोपा नहीं जाना चाहिए. उच्चतम न्यायालय के आदेश से 21 दिसंबर 2010 की वह अधिसूचना बहाल हो गयी है जो एनईईटी के जरिए एक साझा प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए जारी की गयी थी.

हालांकि, इसमें एक स्पष्टीकरण है कि इस मुद्दे पर कोई चुनौती उच्चतम न्यायालय में ही दी जा सकती है और इसमें कोई उच्च न्यायालय दखल नहीं कर सकता. न्यायालय का मानना था कि चूंकि उसने 11 अप्रैल का अपना आदेश वापस ले लिया है, इसलिए एक साझा परीक्षा आयोजित कराने में कोई दिक्कत नहीं है.

न्यायमूर्ति ए आर दवे, न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह और न्यायमूर्ति ए के गोयल की पीठ ने कहा, ‘प्रतिवादियों (केंद्र, सीबीएसई, एमसीआई) की तरफ से दी गई दलीलों के मद्देनजर, हम दर्ज करते हैं कि प्रतिवादियों के पक्ष के मुताबिक ही एनईईटी आयोजित की जाएगी. हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि एनईईटी न आयोजित करने को लेकर पहले किसी अदालत की ओर से पारित किए गए आदेश के बावजूद यह आदेश प्रभावी होगा. लिहाजा, अभी और कोई आदेश पारित करने की जरुरत नहीं.\'

एनईईटी को रद्द करने वाले 18 जुलाई 2013 के फैसले के मद्देनजर एनईईटी आयोजित कराना उचित न होने की दलील खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ‘हम पहली दलील से सहमत नहीं हैं क्योंकि उक्त फैसला पहले ही 11 अप्रैल 2016 को वापस लिया जा चुका है और इसलिए 21 दिसंबर 2010 की अधिसूचना आज भी प्रभावी है.\' पीठ ने कहा, ‘बहरहाल, यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि इस आदेश से उन याचिकाओं की सुनवाई प्रभावित नहीं होगी जो इस अदालत के समक्ष लंबित हैं.\'
 



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