राजीव गांधी हत्याकांड: सजा माफी का अधिकार राज्यों को नहीं

Last Updated 02 Dec 2015 11:00:46 AM IST

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया है.


राजीव गांधी हत्याकांड: सजा माफी का अधिकार राज्यों को नहीं (फाइल फोटो)

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सात दोषियों की रिहाई के तमिलनाडू सरकार के फैसले के खिलाफ उठे संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाते हुए कहा की राज्य सरकारों वैसे किसी भी मामले में दोषी क़रार लोगों की सजा माफ़ नहीं कर सकती जिन मामलों की जाँच सीबीआई जैसी केंद्रीय एंजेसियों ने की हो और अपराध सिद्ध किया हो.

इस फैसले के साथ ये भी साफ हो गया की राजीव गांधी के हत्यारों को अब पूरी उम्र जेल में गुज़ारनी पड़ेगी. साथ ही संवैधानिक पीठ राज्यों की किसी भी दोषी को मिली जेल की सजा को घटाने के अधिकारों पर भी अपना फैसला सुनाया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हत्यारों की रिहाई नहीं की जाएगी. माफ़ी का अधिकार राज्यों को नहीं है. वहीं, कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि केन्द्र को ही सज़ा माफ़ी का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उम्रक़ैद का मतलब ताउम्र जेल में रहना ही है.

राजीव गांधी हत्याकांड में मौत की सजा से राहत पाने वाले सभी दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

तमिलनाडु सरकार के उस फैसले के खिलाफ जिसमें हत्या से जुड़े सभी 7 दोषियों को छोड़ने का फैसला किया गया, उसे सुप्रीम कोर्ट की ही दो सदस्यीय बैंच ने रोक लगा दिया था.

मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू समेत पांच जजों ने छोटी बैंच के कई सवालों पर बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ था. मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू के कार्यकाल के अंतिम दिन दिए जाने वाले फैसले में छोटी बैंच के उठाये गये 7 सवालों पर अपना फैसला सुना सुनाया.

(1) क्या ऐसे मामलों में राज्य सरकारें किसी भी दोषी की सजा को कम कर सकती है, जहां उस दोषी का अभियोजन किसी केन्द्रीय एजेंसी जैसे सीबीआई ने किया हो.

(2) क्या सजा कम करने को लेकर राज्य की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति, गर्वनर और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ले लेने के बाद भी लागू की जा सकती है.

(3) क्या किसी दोषी की सजा जिसकी मौत की सजा को पहले ही उम्रकैद में तब्दील किया जा चुका है उसकी सजा को राज्य सरकार अपने कार्यकारी शक्ति से

और कम कर सकती है.

(4) क्या उम्रकैद की सजा का मतलब ताउम्र जेल में रहना है या उसकी सजा को भी राज्य सरकार अपनी शक्तियों से कम कर सकती है.

(5) क्या जघन्य हत्या जैसे मामलों में किसी विशेष श्रेणी की सजा तय की जा सकती है जिसमें मौत की सजा को घटाकर ताउम्र और 14 साल से अधिकतम की

सजा के बीच में हो, जिसको राज्य सजा कम करने की की अपनी शक्तियों से घटा न सके.

(6) संविधान की 7वीं अनूसूची में समवर्ती लिस्ट में सजा कम करने को लेकर केन्द्र और राज्य की प्रधानता के विषय में भी संवैधानिक पीठ अपना रुख साफ कर

दिया.

(7) संवैधानिक पीठ के सामने ये भी प्रश्न था कि सजा माफी के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल को दी जाने वाली सजा माफी की अर्जियां, क्या सजा को अंतिम तौर पर दिए जाने के सिद्धान्त का उल्लघंन करती है.

राज्य सरकार ने राजीव गांधी हत्याकांड में मौत की सजा से राहत पाने वाले सभी दोषियों संथन, मुरुगन, पेरारीवलन और उम्रकैद की सजा काट रहे नलिनी श्रीहरन, रॉबर्ट पायस, रविचंद्रन और जयकुमार को रिहा करने का आदेश दिया था.

लेकिन, इसके खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि मामले की जांच सीबीआई ने की थी और इस केस में केंद्रीय कानून के तहत सजा सुनाई गई. ऐसे में रिहा करने का अधिकार केंद्र का है.

सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता सरकार के फैसले पर रोक लगाकर मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था. कोर्ट ने सारे राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था और फैसला आने तक उम्रकैद के कैदियों को रिहा न करने के आदेश दिए थे.

Shree Nivash


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