अगर समलैंगिक संबंधों पर गंभीर है सरकार तो हटाए धारा 377 : मनीष तिवारी

Last Updated 29 Nov 2015 02:33:39 PM IST

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने रविवार को कहा है कि यदि सरकार समलैंगिक संबंधों के मुद्दे पर गंभीर है तो आईपीसी से धारा 377 हटाने की जरूरत है.


अगर समलैंगिक संबंधों पर गंभीर है सरकार तो हटाए धारा 377 : मनीष तिवारी (फाइल फोटो)

कांग्रेस नेता का यह बयान उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम के बाद आया है. उन्होंने कहा कि चिदंबरम ने कुछ भी गलत नहीं कहा है. हमें खुद को किताबों और सामयिक सोशल मीडिया फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने की संस्कृति से आजाद रखने की जरूरत है. उनके मुताबिक, यदि सरकार समलैंगिक संबंधों के मुद्दे पर गंभीर है तो आईपीसी से धारा 377 हटाने की जरूरत है.

चिदंबरम ने शनिवार को कहा था कि सलमान रुश्दी की किताब पर बैन राजीव सरकार की गलती थी. चिदंबरम ने 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में इमरजेंसी (आपातकाल) लगाने के फैसले को एक गलती करार दिया था. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सलमान रुश्दी की किताब 'सेटेनिक वर्सेज' पर प्रतिबंध लगाने का तत्कालीन राजीव गांधी सरकार का निर्णय भी पूरी तरह से अनुचित था.

चिदंबरम, राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में गृह राज्यमंत्री थे. अक्टूबर 1988 में 'सेटेनिक वर्सेज' पर प्रतिबंध लगाया गया था. इस किताब पर प्रतिबंध लगाने वाला भारत पहला देश था.

चिदंबरम का यह बयान कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है. जाहिर है, ऐसे वक्त जब मोदी सरकार पर असहिष्णुता को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए विरोधी दल राजग सरकार पर लगातार हमलावर हैं, इस स्थिति में चिदंबरम का यह बयान कांग्रेस को बैकफुट पर ला सकता है.

आपातकाल संबंधी सवाल पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इंदिरा गांधी ने 1980 में खुद यह स्वीकार किया था कि इमरजेंसी लगाकर उन्होंने गलत की है, अब अगर वह फिर से सत्ता में आईं तो आपातकाल कभी नहीं लगाएंगी. जनता ने उन पर विश्वास किया और इस प्रकार सत्ता में उनकी फिर वापसी हुई.

असहिष्णुता के मुद्दे पर वह बोले कि मेरे लिए यह गंभीर चिंता का विषय है. हमने पहले भी असहिष्णुता देखी है. हाल के दिनों में असहिष्णुता बढ़ी है. हालांकि हमने हमेशा इसे नाकाम किया है.चिदंबरम ने कहा कि आज के समय खाप पंचायतें अधिक प्रभावी व खुल्लम-खुल्ला 'कंगारू जस्टिस' (न्याय के मानकों की परवाह किए बिना निर्णय देना) दे रही हैं. बहुत से प्रतिबंध लग रहे हैं. जींस पहनने से लेकर लोगों के खाने-पीने, आने-जाने के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे है. एनजीओ पर प्रतिबंध थोपे जा रहे हैं.



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