भारत ने किया अग्नि-1 मिसाइल का सफल परीक्षण

Last Updated 27 Nov 2015 12:26:44 PM IST

भारत ने लक्ष्य को भेद सकने वाली स्वदेशी तौर पर विकसित अग्नि-1 मिसाइल का शुक्रवार को सफल परीक्षण किया.


फाइल फोटो

भारत ने परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम और 700 किलोमीटर तक की दूरी पर स्थित लक्ष्य को भेद सकने वाली स्वदेशी तौर पर विकसित अग्नि-1 मिसाइल का शुक्रवार को सफल परीक्षण किया. यह परीक्षण ओडिशा तट से निकट स्थित एक परीक्षण रेंज से ‘स्ट्रेटेजिक फोर्सेज कमांड’ के प्रशिक्षण अभ्यास के तहत किया गया.
    
जमीन से जमीन पर मार करने में सक्षम यह एकल चरणीय मिसाइल ठोस प्रणोदकों से संचालित होती है. इसका परीक्षण अब्दुल कलाम द्वीप (व्हीलर द्वीप) पर स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज के लॉन्च पैड-4 से 10 बजकर दो मिनट पर किया गया.
    
रक्षा सूत्रों ने इसे एक ‘उत्तम प्रक्षेपण’ करार देते हुए कहा कि यह परीक्षण ‘भारतीय सेना के स्ट्रेटेजिक फोर्सेज कमांड के प्रशिक्षण अभ्यास का हिस्सा’ था.
    
उन्होंने कहा, ‘यह अभ्यास उत्तम ढंग से अंजाम दिया गया और परीक्षण सफल रहा.’
    
सूत्रों ने कहा, ‘यह प्रक्षेपण संचालनात्मक तत्परता को मजबूती देने के लिए एसएफसी द्वारा समय-समय पर की जाने वाली प्रशिक्षण गतिविधियों के तहत अंजाम दिया गया.’
 
इस परीक्षण के प्रक्षेपण पथ पर आधुनिक रेडारों, टेलीमेट्री प्रेक्षण केन्द्रों, इलेक्ट्रोऑप्टिक यंत्रों और नौवहन पोतों के जरिए सटीकता के साथ नजर रखी गई. यह निगरानी इसके प्रक्षेपण स्थल से लक्षित क्षेत्र तक पहुंचने तक की गई.

अग्नि-1 मिसाइल में आधुनिक नेविगेशन पण्राली लगी है, जो कि मिसाइल का बेहद सटीकता और परिशुद्धता के साथ तय लक्ष्य तक पहुंचना सुनिश्चित करता है.
    
सूत्रों ने कहा कि मिसाइल को पहले ही सशस्त्र बलों में शामिल किया जा चुका है. इसने मारक दूरी, सटीकता और मारक क्षमता के क्र म में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन को साबित किया है.
  
12 टन के वजन और 15 मीटर की लंबाई वाली अग्नि-1 मिसाइल अपने साथ एक टन से ज्यादा का पेलोड ले जा सकती है. इसकी मारक दूरी को पेलोड कम करके बढ़ाया जा सकता है.
   
अग्नि-1 का विकास डीआरडीओ की प्रमुख मिसाइल विकास प्रयोगशाला एडवांस्ड सिस्टम्स लेबोरेट्री ने रक्षा अनुसंधान विकास प्रयोगशाला और अनुसंधान केंद्र इमारत के साथ मिलकर किया। इसका समाकलन भारत डायनेमिक्स लिमिटेड, हैदराबाद द्वारा किया गया.
   
अग्नि-1 का पिछला परीक्षण 11 सितंबर 2014 को इसी बेस से किया गया था और वह सफल रहा था.



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