सपना ही बनती जा रही पीएम की स्मार्ट पुलिस योजना

Last Updated 27 Nov 2015 05:23:13 AM IST

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट पुलिस के सपने को पलीता लगा रहा है.


सपना ही बनती जा रही पीएम की स्मार्ट पुलिस योजना

अनुसंधान परियोजनाएं आवंटित करने के नाम पर खास लोगों को उपकृत करने का ब्यूरो का धंधा जोरों पर है. यही नहीं जिन लोगों ने पूर्व में आवंटित परियोजनाएं पूरी नहीं की हैं, उन्हीं खास लोगों को फिर से बीपीआरएंडडी के अधिकारियों द्वारा लाखों रुपए की परियोजनाएं लगातार आवंटित करने से भी गुरेज नहीं किया जा रहा है.

तमाम अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के मामलों में ब्यूरो के स्पेशल डीजी राधाकृष्णन की भूमिका भी संदेह के घेरे में है, मगर तथ्यों के आधार पर हुई अनेक शिकायतों के बावजूद ब्यूरो के डीजीपी आरएन वासन इन मामलों में त्वरित कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठा रहे हैं. जिनके काम पर उंगलियां उठी हैं, उनमें पूर्व सीबीआई निदेशक अिनी कुमार और दिल्ली के पूर्व संयुक्त पुलिस आयुक्त मैक्सवेल परेरा भी शामिल हैं. मामला जो भी हो इससे साफ है कि कहीं न कहीं अधिकारियों के बीच दाल में काला है.

राष्ट्रीय सहारा के पास उपलब्ध बीपीआरएंडडी से संबंधित सैकड़ों दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि पुलिस आधुनिकीकरण से संबंधित पुलिस संगठन वर्ष 2008 के बाद से पूरी तरह ढह गया है. सूत्रों के अनुसार, रवीन्द्र सिंह यादव ब्यूरो के बेहद चहेते हैं. इतने चहेते हैं कि रवीन्द्र सिंह यादव, जिनका बैतूल में आई केयर एनजीओ है, को अयोग्य होने के बावजूद अनुसंधान परियोजना आवंटित कर दी गई.

चूंकि रवीन्द्र सिंह इस परियोजना के लिए योग्य नहीं थे, इसलिए परियोजना को डॉ. पुष्पा रानी आर्य के नाम पर अनुसंधान करने के लिए रिसर्च स्टडी और स्टेटस ऑफ कनेक्शनल प्रोग्राम इनक्लूडिंग प्रेजन इंडस्ट्रीज इन द रिहैबिलिटेशन ऑफ प्रेजन के नाम से आवंटित कर दिया गया. इस बाबत 2011-12 में 13 लाख 17 हजार 154 रुपए भी दे दिए गए.

सूत्रों के अनुसार, इससे पहले भी रवीन्द्र सिंह यादव के गैर-योजना मद में ऑन रोल ऑफ द एनजीओ प्रिजनर्स रिफाम्रेशन एंड रिहैबिलिटेशन नामक अनुसंधान परियोजना आवंटित की गई थी. इस एवज में रवीन्द्र सिंह यादव को वर्ष 2010-11 में 3 लाख 32 हजार 334 रुपए का भुगतान भी किया गया था जबकि यह परियोजना पांच वर्ष बीतने के बावजूद भी पूरी नहीं हो पाई.

गौरतलब है कि रवीन्द्र सिंह यादव द्वारा भी पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारी के विरुद्ध धन लेने संबंधी शिकायत की गई थी और ब्यूरो के उपनिदेशक बीके झा द्वारा बैतूल जाकर जांच भी कराई गई थी, मगर जांच का परिणाम वही ढाक के तीन पात निकला, क्योंकि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की मिलीभगत के कारण मामले को दबाने का प्रयास किया गया.

इस मामले में हो रही कई शिकायतों के बाद ब्यूरो के डीजी एनआर वासन ने अपने अधीनस्थ को बचाने का अनोखा फामरूला ईजाद किया और धोखाधड़ी एवं जालसाजी कर जनता के टैक्स के पैसे लेने वाले रवीन्द्र सिंह यादव से अनुसंधान परियोजना के एवज में दी गई राशि वापस लेने के बदले मामले को रफा-दफा कर दिया गया, जबकि ऐसी स्थिति में अन्य मामले में सीधे मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है.

सूत्रों के अनुसार ऐसा किया जाता तो ब्यूरो में भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके एक आला आईपीएस अधिकारी के लिए परेशानी खड़ी हो जाती, इसलिए ब्यूरो के प्रमुख मामले को निपटाने में जुट गए. इस मामले की शिकायत प्रधानमंत्री से लेकर केन्द्रीय गृह सचिव तक की गई है, मगर साफ दामन का दंभ भरने वाले सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

कुणाल
एसएनबी


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