पंजाबी लेखिका ने पद्मश्री लौटाया, कन्नड़ लेखक ने साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाया

Last Updated 14 Oct 2015 06:46:18 AM IST

मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में जानीमानी पंजाबी लेखिका और पद्मश्री से सम्मानित दलीप कौर तिवाना ने मंगलवार को अपना अवॉर्ड लौटाने का फैसला किया.


जानीमानी पंजाबी लेखिका और पद्मश्री से सम्मानित दलीप कौर तिवाना

देश में मुसलमानों पर ‘बार-बार हो रहे अत्याचार’ और ‘बढ़ती असहनशीलता’ के विरोध में जानीमानी पंजाबी लेखिका और पद्मश्री से सम्मानित दलीप कौर तिवाना ने मंगलवार को अपना अवॉर्ड लौटाने का फैसला किया.

वहीं, अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा रहे लेखकों की कड़ी में आज एक और कन्नड़ लेखक शामिल हो गए. केंद्र को लिखे एक पत्र में तिवाना ने कहा, ‘गौतम बुद्ध और गुरू नानक देव की भूमि पर सांप्रदायिकता के कारण 1984 में सिखों पर हुआ दमन और बार-बार मुस्लिमों पर हो रहा अत्याचार हमारे देश और समाज के लिए काफी शर्मनाक है.’

साल 2004 में पद्मश्री सम्मान पाने वाली तिवाना ने यह भी कहा, ‘सच्चाई और इंसाफ के पक्ष में खड़े होने वाले लोगों की हत्या करना हमें दुनिया और ईर की आंखों में लज्जा का पात्र बनाता है . लिहाजा, मैं विरोध में पद्मश्री अवॉर्ड लौटाती हूं.’ ‘बढ़ती असहिष्णुता’ के विरोध में अपने अवॉर्ड लौटा रहे लेखकों की फेहरिस्त में शामिल होते हुए कन्नड़ लेखक प्रोफेसर रहमत तारीकेरी ने आज कहा कि विद्वान एम एम कलबुर्गी और अंधविास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर एवं गोविंद पानसरे की हत्या के विरोध में वह अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा रहे हैं.

कृष्णा सोबती और अरूण जोशी के भी अवॉर्ड लौटाने के फैसले के बाद नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी सहित कम से कम 25 लेखक अपने अकादमी अवॉर्ड लौटा चुके हैं और पांच लेखकों ने साहित्य अकादमी में अपने आधिकारिक पदों से इस्तीफा दे दिया है. साहित्य अकादमी ने इन घटनाक्र मों पर चर्चा के लिए 23 अक्टूबर को आपात बैठक बुलाई है.
तिवाना ने कहा, ‘मैं तो सिर्फ बीज बोने का काम कर रही हूं. आपको बीज बोने पड़ते हैं, ताकि पेड़ बढ़े . यदि आप 100 साल पहले रूस में हुई क्रांति पर गौर करेंगे तो यह कार्ल मार्क्‍स के लेखनों से प्रभावित था.’

राष्ट्रपति को लिखे गए एक पत्र में तारीकेरी ने कहा, ‘यह बड़े दुख की बात है कि साहित्य अकादमी ने कलबुर्गी की जघन्य हत्या की निंदा नहीं की. पानसरे, दाभोलकर और कलबुर्गी की हत्या एक असहनशील समाज बनाने की कोशिश है.’ हम्पी कन्नड़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तारीकेरी ने कहा, ‘गोमांस खाने की अफवाह पर हाल ही में हुआ दादरी कांड भी इसी असहनशीलता का हिस्सा है.’ सोबती ने कहा, ‘घर वापसी, दादरी कांड, चचरें पर हमले और कल शिवसेना की ओर से अंजाम दी गई घटना जैसे मुद्दों के कारण मैंने अपना अवॉर्ड लौटाया है.’

इस बीच, लेखक चेतन भगत ने ट्विटर पर कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाना एक दिखावा और राजनीति है. भगत ने लिखा, ‘पुरस्कार स्वीकार करना और फिर इसे लौटाना पुरस्कार तथा निर्णय समिति का अपमान है. यह दिखावा है. यह राजनीति है.’

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने पुरस्कार लौटाने के लेखकों के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि कोई सत्ता में बैठी सरकार को पसंद नहीं करता तो क्या वे अपने पासपोर्ट या सरकारी कॉलेज की डिग्री लौटा देंगे ? ‘सिर्फ एक पुरस्कार ही क्यों? भगत को सोशल मीडिया पर अपने ट्वीट को लेकर नाराजगी का सामना करना पड़ा था, ‘‘ठीक है क्या मुझे भी अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा देना चाहिए ? रुको-रुको . मुझे तो अभी तक यह मिला ही नहीं है.’

कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा, ‘क्या कोई ऐसा कार्यालय है जहां पुरस्कार लौटाया जाए? और क्या वे ब्लैक स्टाइल के लोगों की तरह कुछ ऐसा कर देंगे कि आप हमेशा के लिए भूल जाएं कि आपको कोई पुरस्कार मिला था.’ ‘मेन इन ब्लैक’ एक फिक्शन फिल्म थी जिसमें एलियन से लड़ने वाले नायक स्मृति मिटाने के लिए एक उपकरण का इस्तेमाल करते हैं. भगत ने कहा, ‘जो राजनीतिक नेता दादरी घटना का विरोध नहीं कर रहे हैं, वे भी अपने वोट बैंक का खेल, खेल रहे हैं. और जो विरोध कर रहे हैं, वे भी अपने वोट बैंक की खातिर ऐसा कर रहे हैं. न इससे ज्यादा, न इससे कम.’

महेश शर्मा ने लिया अपने बयान से यू टर्न

केन्द्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने पर अपने पिछले बयान से यू टर्न लेते हुए मंगलवार को कहा कि वह लेखकों का सम्मान करते हैं क्योंकि वे राष्ट्र के गौरव हैं.  उन्होंने कहा कि उनके पिछले बयान को अखबारों में तोड़-मरोड़ कर छापा गया है. शर्मा ने पिछले बयान पर अपनी सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने यह कहा था कि लेखकों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिए गलत मंच (साहित्य अकादमी) का इस्तेमाल किया है. उन्हें विरोध करने के और तरीके अपनाने चाहिए लेकिन मीडिया ने गलत ढंग से उनके बयान को पेश किया.

गौरतलब है कि गत दिनों मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार शर्मा ने कहा था कि पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों के बारे में यह पता लगाया जाना चाहिए कि उनकी विचारधारा क्या है. अगर वे नहीं लिख पा रहे हैं तो लिखना छोड़ दें. केन्द्रीय संस्कृति मंत्री ने अब अपने बयान से हटते हुए कहा कि ये लेखक हमारे देश के गौरव हैं. उन्होंने अपनी उपलब्धियों से देश को गौरवान्वित किया है. वह उनसे अपील करते हैं कि उन्हें कोई शिकायत हैं तो वे सरकार को लिखे, प्रधानमंत्री को लिखे, अकादमी को लिखे, लेकिन इस तरह पुरस्कार न लौटाएं.

उन्होंने कहा कि वह भी कन्नड़ के लेखक एनएन कलबुर्गी की हत्या का विरोध करते हैं, कोई भी लेखक मारा जाए या किसी की भी हत्या हो, वह ¨नदनीय है लेकिन कानून एवं व्यवस्था राज्य का विषय है. उन्होंने कहा, हम लेखकों के साथ हैं. हम उनके स्वर में स्वर मिलाते हैं पर पुरस्कार लौटाना उचित नहीं है. जिस संस्था ने उन्हें सम्मान दिया है, वह कोई राजनीतिक संस्था नहीं हैं. साहित्य अकादमी के पुरस्कार लेखकों की चयन समिति देती है. ये पद्म पुरस्कार की तरह नहीं हैं, जो सरकार देती हैं.

इस बीच गत 4 सितम्बर से अब तक 25 से अधिक लेखक अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं तथा अभी कुछ और लेखकों के पुरस्कार लौटाने की संभावना है. कोंकणी भाषा के लेखक भी बड़ी संख्या में पुरस्कार लौटाने का निर्णय लेने वाले हैं. चार सितंबर को हिन्दी के चर्चित लेखक उदयप्रकाश ने सबसे पहले अकादमी पुरस्कार लौटाया था. उसके बाद अंग्रेजी की मशहूर लेखिका नयन तारा सहगल के पुरस्कार लौटाने के बाद से पुरस्कार लौटाने की झड़ी लग गयी है.



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