पाक को लेकर भारत और सोवियत संघ के बीच हो सकता था सैन्य टकराव

Last Updated 01 Sep 2015 09:07:13 PM IST

सीआईए की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान को लेकर भारत और सोवियत संघ के बीच सैन्य टकराव हो सकता था.


राजीव गांधी

शीत युद्ध के समय भारत और सोवियत संघ भले ही मित्र राष्ट्र के तौर पर देखे जाते रहे हों, लेकिन सीआईए की एक रिपोर्ट की माने तो राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान हालात कुछ बदलते नजर आये और एक समय यह भी अनुमान लगाया गया कि अगर मॉस्को द्वारा ‘पकिस्तान को सैन्य कदम के जरिए प्रभावी ढंग से घेरा गया’ तो भारत वहां के प्रतिद्वन्द्वी राजनीतिक गुटों का समर्थन कर सीधे सोवियत संघ से टकराव की ओर बढ़ सकता था.
    
सीआईए के इस गोपनीय दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस योजना पर विचार किया था कि अगर पाकिस्तान की तत्कालीन जिया सरकार को मास्को अपदस्थ करता है तो वह पाकिस्तान में रूस विरोधी नागरिक समूहों का समर्थन करेगी.
    
उस समय के सीआईए के दस्तावेज के अनुसार राजीव चाहते थे कि दक्षिण एशिया में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही हस्तक्षेप नहीं करें.
    
ये दस्तावेज सूचना की आजादी अधिनियम के तहत सामने आए हैं. अमेरिका का यह अधिनियम भारत के सूचना के अधिकार कानून की तरह है.
    
भारत और सोवियत संघ के ऐतिहासिक संबंधों का संज्ञान लेते हुए सीआईए की अप्रैल, 1985 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत इस क्षेत्र में सोवियत संघ के प्रभाव को लेकर चिंतित हो सकता है तथा अगर पाकिस्तान को सैन्य कदम के जरिए नियंत्रित किया जाता है तो नयी दिल्ली खुद को सोवियत संघ से सैन्य टकराव की दिशा में बढ़ता पा सकता है.
    
सीआईए के 31 पृष्ठों वाले दस्तावेज में कहा गया है, ‘‘प्रधानमंत्री राजीव गांधी चाहते हैं कि दक्षिण एशिया में सोवियत संघ और अमेरिका दोनों का हस्तक्षेप नहीं हो.’’
    
इस दस्तावेज का शीर्षक ‘द सोवियत प्रजेंस इन अफगानिस्तान: इंप्लीकेशंस फॉर द रिजनल पावर्स एंड द यूएस’ है.
    
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘‘अगर (जनरल) जिया (उल हक) की सरकार गिरने वाली होगी तो भारत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तानी समूहों का समर्थन करके पाकिस्तान पर वर्चस्व स्थापित करने से सोवियत संघ को रोकेगा. अगर पहले से ही नियंत्रित हो चुके पाकिस्तान के खिलाफ सोवियत संघ की सेना आगे बढती है तो भारत के साथ सैन्य टकराव भी हो सकता है.’’
    
इसके छह महीने बाद जब राजीव गांधी संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर जनरल जिया से मुलाकात करने की योजना बना रहे थे तो सीआईए के अनुसार राजीव पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर जिया पर बहुत अधिक दबाव बनाने वाले नहीं थे, हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री की इस मुद्दे पर सख्त राय थी.
    
सीआईए के एक अक्तूबर, 1985 की तिथि वाले एक दस्तावेज में कहा गया है, ‘‘राजीव गांधी की ओर से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर जिया पर अधिक दबाव बनाने के आसार नहीं हैं, हालांकि शायद वह इसको लेकर चिंता व्यक्त करेंगे.’’
    
इसमें आगे कहा गया है, ‘‘अपनी ओर से जिया भी द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के उपायों पर कुछ विचार रख सकते हैं. वह व्यापार, संचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर ध्यान केंद्रित करने वाले साझा आयोग के साथ ही दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय राजनयिक वार्ता का सुझाव दे सकते हैं.’’
    
दस्तावेज के मुताबिक ‘जिया भारतीय प्रधानमंत्री से इस बारे में विचार व्यक्त करने का आग्रह कर सकते हैं कि क्या सोवियत संघ अफगानिस्तान में स्थिति के समाधान के बारे में बातचीत को लेकर गंभीर हो रहा है.’
    
सीआईए की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘नयी दिल्ली पाकिस्तान को वह स्थान मानता है जहां सोवियत संघ को आगे बढने से रोका जा सके (स्ट्रैटजिक बफर) तथा वह पाकिस्तान पर वर्चस्व स्थापित करने के मॉस्को के प्रयास का विरोध करेगा. नयी दिल्ली और मॉस्को दोनों पाकिस्तान के भीतर परस्पर विरोधी समूहों का समर्थन कर सकते हैं.’’
    
रिपोर्ट के अनुसार ‘उस स्थिति में भारतीय मॉस्को पर अपनी निर्भरता को काफी कम करना और सोवियत संघ के साथ रणनीतिक साझेदारी को फिर से व्यवस्थित करना चाहेंगे.’
    
इसमें कहा गया है कि सोवियत संघ ने पाकिस्तान के इरादों और अमेरिका के साथ उसके सुरक्षा संबंधों के बारे में भारत के संदेह को बढ़ाने का प्रयास किया ताकि भारत-पाकिस्तान तनाव को हवा दी जा सके और मॉस्को पर नयी दिल्ली की निर्भरता को बढ़ाया जा सके.
    
रिपोर्ट कहती है, ‘‘सोवियत के विचार में, भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष मॉस्को की अफगान समस्या को हल करने की दिशा में काम करेगा और इससे मॉस्को को दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का मौका भी मिलेगा.’’    



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